क्या पूर्वर्ती  सरकारों ने निवेशकों को असीम अधिकार दिए?

अडानी सीमेंट समूह द्वारा एसीसी  बरमाना और अंबुजा सीमेंट कारखानों पर ताले लगने के बाद  लगभग 30000 परिवारों की रोजी-रोटी को छिने हुए लगभग 2 माह हो गए हैं। दो माह पहले सीमेंट की ढुलाई को लेकर अडानी सीमेंट समूह प्रबंधन व भूहरवैया ट्रक ऑपरेटर यूनियन के बीच ढुलाई  के रेट को लेकर विवाद पैदा हुआ। अडानी सीमेंट समूह प्रबंधन ने ट्रक ऑपरेटर पर माल ढुलाई का भाड़ा कम करने का दबाव डाल रहा था और ट्रक ऑपरेटर अपने अपने पक्ष को रखते हुए कह रहे थे की माल भाड़ की दरें पूर्व में निर्धारित फार्मूले  के अनुरूप तह हैं अतः वह ढुलाई की दरें कम नहीं करेंगे। अडानी सीमेंट समूह है अपना पक्ष रखते हुए कहा की माल भाड़े की इतनी दरों पर उनको फैक्ट्रियों में घाटा हो रहा है इसलिए वह दोनों  फैक्ट्रियों को बंद कर रहे हैं।

 फैक्ट्रियों के बंद होने से 30,000 परिवार  लाचार स्थित में कभी सरकार और कभी संघर्ष के मार्ग  की ओर देख रहे हैं । विगत 2 महीनों में दाड़ला से लेकर स्वारघाट और बरमाणा से लेकर स्वारघाट मार्ग पर चल रहे सभी तरह के छोटे- बड़े  व्यापारिक आउटलेट सुनसान दिखाई देते हैं । पेट्रोल पंप, ढाबे ,चाय की दुकान ,मोटर मैकेनिक की वर्कशॉप,  पंचर लगाने वाले का खोखा, स्थानीय किसानों के कृषि उत्पाद बेचने की हट्टी  व सब्जी -भाजी वाले का ठेला   बंद हो गए हैं। इन सभी छोटे बड़े व्यापारियों को अपनी व अपने परिवारों की रोजमर्रा की जरूरतों को पूरा करने की गंभीर समस्या खड़ी हो गई है । ग्राम परिवेश की टीम ने पेट्रोल पंप मालिक और प्रबंधकों से जानने का प्रयास किया की उनके डीजल की बिक्री में फैक्ट्री बंद होने के बाद कितनी कमी आई है? बालाजी पेट्रोल पंप के मैनेजर जगदीश व जालपा पेट्रोल पंप के मैनेजर हेम राज बताते हैं कि फैक्ट्री बंद होने से पहले वह 15 से 20000 डीजल प्रतिदिन बेचते थे और अब 400 से 1000 लीटर की बेच पाते हैं। जिस पंप पर 15 से 20 लोग काम करते थे अब वहां तीन से चार लोगों से काम चलाया जा रहा है।  मैनेजर जगदीश कहते हैं की पेट्रोल पंप पर काम करने वाले लड़के जिनकी नौकरी चली गई है, वह बेहद हताश हैं।  स्थानीय किसानों की सब्जी खेतों में सड़ रही है वह मानसिक तौर पर प्रताड़ित महसूस कर रहे हैं। ट्रक ड्राइवर इधर-उधर छोटे-मोटे काम या दिहाड़ी पर काम ढूंढ रहे हैं। हालात बहुत खराब है। हताशा और आक्रोश दिन प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है हर व्यक्ति नकारात्मक सोच से ग्रस्त हो रहा है।

समझौता वार्ता अदानी समूह के अड़ियल रवैया से फेल 

सुखविंदर सिंह सुक्खू की सरकार पूरी गंभीरता के साथ विवाद का हल निकालने का प्रयास कर रही है। विगत कुछ दिनों में सरकार ने दोनों पक्षों से लगातार अलग-अलग और इकट्ठे कई दौर की वार्ता की है । हाल ही में हुई वार्ता से पहले ट्रक ऑपरेटर और सरकार समझौता हो जाने के प्रति आशावान थे क्योंकि ट्रक ऑपरेटर माल भाड़ा कम करके ₹10.70 पैसे करने को तैयार थे

इस रेट पर अडानी समूह भी सहमत होता नजर आ रहा था परंतु समझौता वार्ता में उसने रेट पहले से भी कम करके कोट किया और वार्ता फेल हो गई 

 उद्योग मंत्री के मध्यस्थता वाले बयान से लोग सन्न !

समझौता वार्ता फेल होने के बाद उद्योग मंत्री हर्षवर्धन ने कहा की सरकार विवादित पक्षों के बीच केवल मध्यस्था ही कर सकती है और वह लगातार कर रही है उनका यह बयान हिमाचल के लोगों को हैरान कर रहा है और वह कई तरह के प्रश्न अपने व अपनों से पूछ रहें हैं कि सरकार मध्यस्था से आगे बढ़कर प्रशासनिक  कदम क्यों नहीं उठा सकती है ? क्या ट्रक ऑपरेटर अनुचित माल भाड़े पर अड़े हैं ?क्या अडानी  सीमेंट समूह सरकार पर भारी पड़ रहा है? क्या सरकार विवाद सुलझाने में गंभीर नहीं है? या फिर पूर्ववर्ती सरकारों ने तत्कालीन कारखाना मालिकों के साथ हॉब्नाबिंग कर अपने हाथ काट कर दे दिए हैं ?यह सब सवाल फैक्ट्री बंद होने से प्रभावित परिवार ही नहीं अपितु सभी जागृति हिमाचलियों  को उत्सुक व आक्रोशित  कर रहे हैं । सोचने पर मजबूर कर रहे हैं की बाहरी  निवेशकों और धन्ना सेठों को हिमाचल में निवेश करने की सरकार की कोई  नीति है भी की नहीं? सरकार जिन निवेशकों को हाथ जोड़- जोड़ कर हिमाचल में निवेश करने के लिए बुला रही है और जमीन, बिजली ,पानी ,कर में भारी छूट देकर हिमाचल की हजारों एकड़ भूमि ₹1 प्रति बीघा लीज पर दे रही है और कृषि भूमि का अधिग्रहण कर रही है क्या उससे हिमाचली युवाओं व हिमाचलियों को कोई लाभ मिल रहा है?  क्या सरकार निवेशकों के रूप में  तिजारती ला रही हैं और वह अपनी तिजोरी भरकर फुर्र हो जाते हैं। अडानी समूह द्वारा कारखाने बंद करना और सरकार द्वारा यह बयान देना कि वह केवल मध्यस्था ही कर सकती है सरकार की निवेश नीति पर गंभीर प्रश्न खड़ा करता है । इस निवेश  नीति पर तुरंत बजट सत्र में चर्चा होनी चाहिए। इसमें बदलाव लाने होंगे मौजूदा निवेश नीति से ना तो हिमाचल और ना ही हिमाचली के हित में दिखाई देती है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *