ट्रक लादने वाले मजदूर,और ट्रांसपोटर्स बच्चों के पेट भरने को हुए मजबूर !

हिमाचल डेस्क – जब तक यह छप कर आपकी नजरों से गुजरेगा तब तक सेठ की दबंगई व सियासत पता नहीं आसमान के कौन से ग्रह को छू रही होगी। हां, पता है तो इतना कि सड़क के किनारे बैठने वाले ठेले का चूल्हा बुझ चुका होगा, टायर पर पंक्चर लगाने वाले की हवा निकल चुकी होगी, पेट्रोल पम्प के कर्मचारी बोरिया बिस्तर बांध चुके होंगे, ट्रक लादने वाले मजदूर बच्चों के पेट भरने में मजबूर होंगे, दोनों फैक्टरियों में काम करने वाले 1500 से 1800 कर्मचारी बच्चों की स्कूल फीस और बैंकों से लिए कर्ज की किस्तें चुकाने में लाचार होंगे, सीमेंट की ढुलाई करने वाले ट्रक चालकों व उपचालकों को वेतन देने में ट्रक मालिक के हाथ खड़े होंगे। बस अगर कुछ तेजी से चल रहा होगा तो सियासत और सरकार के बीच एक दूसरे को मात देने का खेल। हिमाचल प्रदेश के दो बड़े सीमेंट प्लांट एसीसी बरमाणा और अंबुजा दाड़़लाघाट अदानी ने खरीद लिए है और माल ढुलाई के किराए को लेकर कई दिनों से बंद पड़े है। ट्रक मालिकों का कहना है कि उनके ढुलाई के दाम बिल्कुल सही है और सेठ अदानी के प्रबंधन का तर्क है कि ट्रांस्पोर्ट के रेट बिल्कुल जायज नहीं है। इस समय अर्थात जब एसीसी और अंबुजा को खरीदा था तो प्रति क्विंटल का प्रति किलोमीटर का रेट 10.58 पैसे था। इस रेट को सरकार, फैक्टरी प्रबंधन व ट्रक मालिकों द्वारा एक समझौते के तहत एक फॉर्मूले के अनुरूप तय किया जाता है। ट्रक मालिकों का कहना है कि अदानी ने मनमाने तौर पर इस रेट को तय करने का निर्णय लिया और कहा कि कंपनी घाटे में चल रही है अत: वह इसको बंद कर रहे हैं।

सीमेंट फैक्टरी प्रबंधन व ट्रांसपोर्टस के संघर्ष का इतिहास !

सीमेंट ढुलाई की कीमतों को लेकर शुरू से ही सीमेंट फैक्टरी प्रबंधन व ट्रांसपोर्टरों के बीच संघर्ष होता रहा है। एसीसी गगल और ट्रक मालिकों के बीच वर्ष 1984 में जबर्दस्त संघर्ष हुआ था जिसमें कुछ लोगों जान भी गई और गाड़ियाँ भी जला दी उस समय इनके बीच समझौता हुआ और नीति क्षेत्र को ढुलाई काम न देकर एक्स सर्विसमैन ट्रक यूनियन को काम देने का फैसला हुआ था लेकिन 1993 एक बार फिर बरमाणा में दोनों पक्ष टकराऐ तत्पश्चात जब कभी कोई मसला उभरा तो सरकार ,फैक्टरी प्रबंधन व ट्रक मालिकों ने निपटा लिया। इसी तरह जब अंजुबा सीमेंट फैक्टरी लगी तो स्थानीय लोग जिनकी जमीन फैक्टरी लगाने में गई उनके साथ तीनों पार्टियों के बीच फैसला हुआ कि भू-हरवैया (लैंड लूजर) किसानों के परिवार में से एक व्यक्ति को नौकरी या ट्रक माल ढुलाई में लगाया जाएगा। हिमाचल प्रदेश सरकारों का भी हमेशा प्रत्यक्ष रूप में एक ही उद्देश्य रहा कि जो भी हिमाचल में फैक्टरी लगाएगा वह 70 प्रतिशत हिमाचलियों को नौकरियां देगा। यद्यपि इस शर्त की मूल भावना का कभी भी पालन नहीं हुआ। सभी सरकारों ने इसमें ढुलमुल रवैया रखा है। यही कारण है कि अदानी ने दोनो सीमेंट फैक्ट्रियों को खरीदते ही फैक्ट्री को घाटे में बताते हुए बंद कर दीं । दोनो प्लांटों से कम से कम 15 से 20 हजार परिवारों पेट भर रहा है।
दाड़ला सीमेंट फैक्टरी लगाने में कम से कम 3500 परिवार प्रभावित हुए हैं। इन 3500 परिवारों के घर जमीन पानी के स्त्रोत फैक्टरी लगाने में तबाह हुए जिसकी प्रतिपूर्ति में फैक्टरी मालिक को जमीन पर पानी स्त्रोतों पेड़ पौधों का पैसा देना था और राजगार देना था जो काफी हद तक दिया भी गया है। इस समय दाड़ला में 3500 भू-हरवैया परिवार व 3000 ट्रक मालिकों का अदानी प्रबंधन द्वारा अचानक फैक्टरी बंद करने से आर्थिक व मानसिक परेशानी हो रही है।

फैक्टरी बंद होने से लगभग दस हजार परिवार प्रभावित !

3500 भू-हरवैया परिवार और 3000 ट्रक मालिक, 6000 ट्रक चालक व उपचालक, 500 से 700 चाय ढाबे वाले, सैंकड़ों टायर पंक्चर वाले, मकैनिक, कलपुर्जे बेचने वाले, पट्रोल पम्प वाले, अस्थाई तौर पर ट्रक लोड करने वाले मजदूर व अन्य कारोबारी ठंड के मौसम साथ-साथ फैक्टरी बंद होने से आर्थिक मंदी की भी मार झेल रहे हैं।दाड़ला की अंबुजा के साथ-साथ एसीसी बरमाणा भी अदानी प्रबंधन सरकार और स्थानीय प्रशासन को सूचित किए ही बंद कर दिया है।

ACC बरमाणा मे लगे ताले से हज़ारों परिवारों को खाने के लाले !

एसीसी बरमाणा में लगभग 4000 ट्रक माल ढुलाई का काम करते हैं और 1000 के आसपास कर्मचारी हैं। एसीसी बरमाणा 1983 में स्थापित हुई और निजी ट्रक ऑप्रेटर को ढुलाई का काम दे दिया जिसका विरोध स्थानीय एक्स सर्विस मैन यूनियन ने जमकर विरोध हुआ। कुछ लोगों की जान भी गई, गाडिय़ों को भी जला दिया गया लेकिन प्रबंधन को एक्स सर्विसमैन की बात मानने पड़ी उसके बाद वर्ष 1995 में पुन: ट्रक यूनियन व प्रबंधन में संघर्ष हुआ लेकिन सरकार ट्रक मालिकों और प्रबंधन में समझौता हुआ जो अब तक मान्य रहा लेकिन अदानी ने आते ही मनमाने ढंग से फैक्टरी को घाटे में बताते हुए बंद कर दिया और 5000 परिवारों की रोजी-रोटी को छीन लिया। कुल मिलाकर दो सीमेंट प्लांट जो सीधे तौर पर 15 से 20 हजार परिवारों को रोजगार दे रहे थे आज वे सड़क पर आ गए हैं। इसी के साथ ही अप्रत्यक्ष रूप से हजारों अन्य परिवार जिनका जीवन इन फैक्टरियों के कारण सुखद था आज परेशानी में है।
दाड़ला अंजुबा फैक्टरी में भी समय-समय पर प्रबंधन व ट्रक मालिकों में किराए को लेकर कहासुनी होती है परंतु एसीसी बरमाणा जैसा खूनी संघर्ष नहीं हुआ। अगर सरकार प्रबंधन और ट्रक मालिक फेल हुए तो कोर्ट ने 2010 में सरकार को कमेटी बनाकर मसला हल करने के आदेश दिए। सरकार ने अभय शुक्ला कमेटी का गठन किया और एक सूत्र तैयार किया जिसके कारण आज तक किसी भी पक्ष को कोई परेशानी नहीं आई। रेट डीजल के भाव के अनुरूप तय होते रहे और दोनों पक्ष उससे सहमत रहे।

क्या है मंशा अदानी सेठ की ?

अदानी सेठ जो सीमेंट उत्पादन में इस समय देश में दूसरा बड़ा समूह है की प्लांट बंद करने के पीछे क्या मंशा है? प्रदेश में सीमेंट उत्पादन को ठप्प करने की या सीमेंट व्यापार का एकाधिपत्य स्थापित कर, हवाई अड्डों की तरह लूट मचाने की? अदानी समूह ने हवाई अड्डों पर एकाधिकार स्थापित कर कार- टैक्सी पार्किंग और प्रवेश शुल्क से लेकर हवाई अड्डों के अंदर विज्ञापन इश्तिहार से लेकर चाय के कप व पानी तक सबके रेट तीन से चार गुणा बढ़ा चुका है। क्या अदानी समूह सीमेंट में भी इस तरह करने जा रहा है या फिर कोई सियासी दांव सुक्खू की नई सरकार के साथ खेल रहा है या फिर दोनों चीजें एक साथ कर आकाओं को भी खुश करेगा और अपनी जेब भी भरेगा? यह सब वक्त ही बताएगा।

सुक्खू सरकार को सेठ की गंभीर चुनौती !
15000 टन रोज सीमेंट व क्लींकर तैयार करने वाली फैक्टरी को बिना प्रशासन या सरकार सूचित किए बंद करना सेठी की सरकार को खुली चुनौती से कम नहीं है। फैक्टरी बंद करने का अर्थ है कि 20 से 25 हजार परिवारों का चूल्हा चौका बंद, राज्य के सकल उत्पाद में कमी, सरकार द्वारा विभिन्न संस्थाओं से ऋण लेने में मुश्किल, प्रदेश के टैक्स में घाटा, सरकार तो पहले ही उधार पर चल रही है। अब उधार लेने के लिए भी बेजार हो सकती है। इन सबसे गंभीर और संवेदनशील बात है 20 से 25 हजार परिवारों का रोष। यह क्रोध अनियंत्रित होकर सेठ या सरकार को चित्त कर सकता है। यह बात इसलिए भी गंभीर है कि भाजपा ने इस पर सियासत करनी शुरू कर दी है। जिस तरह से भाजपा के नेताओं के ब्यान आने लगे हैं वह इशारा इस ओर ही कर रहे हैं। सुक्खू सरकार अभी तक प्रशासनिक तंत्र द्वारा ही मामले को सुलझाने तक नजर आ रही है क्योंकि सरकारी सीमेंट की खरीद दूसरी कंपनी से कर लेने से अदानी को कोई फर्क पड़ता नहीं नजर आ रहा है।

ट्रक ऑप्रेटरों की शंकाएं !

ट्रक मालिकों का मानना है कि अदानी समूह माल ढुलाई का काम या तो खुली बोली कर ट्रक कंपनियों को देने या फिर अपने ही ट्रक लेकर ढुलाई कर सकता है। ट्रक मालिक कहते हैं कि यह अदानी समूह के दोनों विचार ही सरकार की औद्योगिकीकरण की नीति की मूल भावना के विरूद्ध है। सरकार उद्योगों को सैंकड़ों रियायतें इसलिए देती है कि प्रदेश में स्थानीय लोगों को रोजगार और व्यापार करने के अवसर मिलें। प्रदेश के राजस्व में वृद्धि हो, प्रदेश का घरेलू सकल उत्पाद बढे। ट्रक मालिक कहते हैं कि अदानी समूह का प्रबंधन तर्क दे रहा है कि ट्रांसपोर्टर की ऊंची ढुलाई दरों के कारण वह मार्किट में अन्य सीमेंट कंपनी के साथ प्रतिस्पर्धा नहीं कर पा रहे, अगर यह बात सही है तो वह तर्क देते हैं कि बरमाणा में सीमेंट बैग की कीमत 455 रुपए जबकि रोपड़ में 400 रुपए जबकि वहां तक प्रति बैग किराया 50 रुपए जबकि बरमाणा में कोई किराया नहीं है। उनका तर्क है कि जब अल्ट्राटैक लगभग उसी किराए में ढुलाई का काम कर रहा है तो अदानी समूह को उसमें क्या दिक्कत है?

3 Responses

  1. How the ownership of Cement Plants is changing hands without any tax contribution to HP Government, particularly when 118 is applicable in the state,
    serious issue to be deliberated upon.

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