बेहतरीन योजना मे एक कमजोर कड़ी पर ध्यान देने की आवश्यकता

हिमाचल डेस्क– संवेदनशील मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू ने अपने छात्र काल से ही निराश्रित की वेदना का बोझ अपने दिल के एक कोने में दबा कर रखा था। उन्होंने शपथ ग्रहण करते ही उसका निदान करने का प्रयास किया है। वर्ष 2023 का पहला दिन हिमाचल में रह रहे 6000 निराश्रित के लिए मुबारिक दिन बनकर आया है। सुखविंदर सिंह सुक्खू की सरकार ने हिमाचल प्रदेश के निराश्रित बच्चों के लिए 101 करोड़ रुपए का मुख्यमंत्री सुखाश्रेय कोष प्रारंभ किया है। इस कोष को प्रारंभ करते हुए सुक्खू ने अपने छात्र काल में एक निराश्रित सहपाठी का दर्द सांझा करते हुए कहा कि एक त्यौहार के दिन उन्होंने अपने निराश्रित सहपाठी से कहा आप अपने त्यौहार किस तरह से मनाएंगे तो उसका उत्तर सुनकर वह विचलित हो उठे और उन्होंने सोचा उसकी कुछ आर्थिक मदद करने को हाथ बढ़ाना चहा तो उसने कहा मेरे जैसे 100 और हैं उनको कौन देगा यह कहकर वहां चला गया उस सहपाठी की इस प्रतिक्रिया से मुख्यमंत्री सुक्खू के मन में निराश्रितों के लिए कुछ ऐसा ठोस करने का विचार घर कर गया जिससे उनका आत्मसम्मान भी बना रहे और वह उसे सहर्ष स्वीकार भी कर ले।

101 करोड़ रुपए का मुख्यमंत्री सुख आश्रम कोष क्या है

प्रदेश में जितने भी बिना मां बाप के अनाथ आश्रमों में, लोगों के घरों में या किसी अन्य स्थानों पर निराश्रित रह रहे हैं वह 1 जनवरी 2023 से हिमाचल प्रदेश सरकार के बेटे बेटी है और सरकार उनकी मां बाप हैं। सुक्खू की सरकार उनकी शिक्षा-दीक्षा ,खाने पहनने,रहने,घूमने फिरने का खर्च पढ़ाई खत्म होने व कामकाज शुरू होने तक उठाएगी। मुख्यमंत्री सुक्खू ने दोहराते हुए कहा कि जिस बेटी या बेटे को मेडिकल कालेज, इंजीनियरिंग कालेज,नर्सिंग कॉलेज या अन्य कलाओं की पढ़ाई जिस भी संस्थान में करनी होगी हिमाचल प्रदेश सरकार उसका एंड टू एंड खर्चा करेगी। हिमाचल प्रदेश सरकार अन्य बच्चों के अभिभावकों की तरह इन निराश्रित बच्चों को 4000 रूपए मासिक जेब खर्च भी देगी।

निराश्रित बच्चों, एकल नारी, बेसहारा वृद्धों को उत्सव अनुदान

मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू ने अनाथ बच्चों के साथ शक्ति सदन, नारी सेवा सदन में रह रही निराश्रित महिलाओं व एकल नारी व वृद्धा आश्रम में रह रहे बेसहारा वृद्धों के हताश जीवन में ऊर्जा व उत्साह भरने के लिए भी कदम उठाया है। मुख्यमंत्री ने सदनों व आश्रमों में रहने वाले वृद्धों व एकल नारी के लिए हर तीज त्यौहार पर अन्य लोगों की तरह खुशियां मनाने के लिए ₹500 का उत्सव अनुदान प्रदान करने की अधिसूचना जारी की है। सुखविंदर ने कहा कि उनकी सरकार समाज के हर वंचित व पिछड़े वर्ग को समाज की अग्रणी पन्क्ति में खड़ा करने के लिए प्रतिबद्ध है। मुख्यमंत्री आगे कहते हैं कि हिमाचल प्रदेश सरकार ने 101 करोड रुपए का कोष स्थापित कर निराश्रितों पर एहसान नहीं किया है बल्कि उनका हक दिया है। देखभाल संस्थानों में रह रहे बच्चों, संस्थागत देखभाल फास्टर केयर के अंतर्गत लाभान्वित हो रहे सभी बच्चों नारी सदनों, शक्ति सदनों में रह रही महिलाओ और वृद्ध आश्रम में रह रहे लोगों को इस योजना का लाभ मिलेगा।

कैसे लें निराश्रित अपने हक का हिस्सा

मुख्यमंत्री सुखाश्रेय कोष द्वारा दी जाने वाली सहायता की प्रक्रिया सभी सरकारी बंधन से मुक्त है। इसमें कोई आय प्रमाण पत्र या अन्य किस्म की सरकारी औपचारिकताएं जैसे पटवारी, प्रधान या अन्य अफसरों के यहां जाकर गिड़गिड़ाना नहीं पड़ेगा। इस योजना का लाभ उठाने के लिए इच्छुक बेटी या बेटा एक साधारण कागज पर लिखे आवेदन सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता विभाग द्वारा सहायता राशि लाभार्थी के खाते में डाल दी जाएगी।

मुख्यमंत्री सुखाश्रेय कोष में कोई भी व्यक्ति दे सकता है दान

मुख्यमंत्री सुख आश्रम कोष में कोई भी व्यक्ति दान दे सकता है। इस कोष में धन जुटाने के लिए कांग्रेस के सभी विधायक अपने वेतन में से एक लाख रुपए देंगे। इसके अलावा निजी कंपनियों आदि से सी एल आर के अंतर्गत आर्थिक सहायता लेने का प्रयास किया जाएगा ताकि देखभाल एवं संरक्षण वाले कमजोर वर्गों को सरकार और अच्छी और उच्च गुणवत्ता की सुविधाएं दे सके।

निराश्रितों की सराहनीय सुखाश्रेय कोष योजना की ध्यान देने योग्य एक कमजोर कड़ी

निस्संदेह सुखविंदर सिंह सुक्खू की निराश्रितों के लिए मुख्यमंत्री सुखाश्रेय कोष की स्थापना एक सराहनीय सोच है।वंचित पिछड़े व निराश्रितों में अपने सपने पूरे करने का उत्साह व आत्मविश्वास आएगा लेकिन इस कोष का लाभ केवल उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए मिल रहा है। उच्च शिक्षा के नामी-गिरामी संस्थानों में कदम रखने के लिए प्राथमिक, माध्यमिक व प्लस टू की शिक्षा मजबूत व गुणात्मक होनी जरूरी है। आज का दौर गला काट प्रतिस्पर्धा का है। अभिभावक अपने बच्चों को आई आई टी, एन आई टी, आई आई एम में भेजने के लिए सब कुछ दांव पर लगाकर उन्हें अच्छे-अच्छे स्कूल में पढ़ाते हैं। जब सुक्खू सरकार ने निराश्रित बच्चों को बेटा बेटी बना लिया है तो उनकी स्कूली शिक्षा पर भी वह अन्य अभिभावकों की तरह ही करवाएं ताकि वह प्रतिस्पर्धा में अपना जौहर दिखा सकें। सरकारी स्कूलों में तो शिक्षा सत्र शुरू होने के बाद छह छह महीने तक किताबे ही नहीं मिलती हैं अगर मिल जाए तो अध्यापक दो 2 महीने अपने तबादले के लिए शिमला में घूमते रहते हैं। ऐसे में आई आई टी और आईआईएन तो बहुत दूर की कौड़ी है बच्चे I am भी लिखना नहीं सीख पाते हैं।इस सच को विभिन्न सर्वे कई बार सिद्ध कर चुके है।

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