भारतीय जनता पार्टी हिम केयर योजना को लेकर सुखविंदर सिंह सुक्खू की सरकार पर पहले दिन से ही आक्रामक है। कांग्रेस सरकार द्वारा इस योजना के साथ हल्की सी भी छेड़छाड़ पर विपक्ष के नेता हमलावर हो जाते हैं, होना भी चाहिए क्योंकि पूर्व भाजपा सरकार की यह श्रेष्ठतम योजना है। जयराम ठाकुर की सरकार ने हिमाचल प्रदेश के मध्यम वर्ग के लोगों जो सरकारी नौकरी में नहीं हैं, खेती-बाड़ी, हाट-दुकान या किसी अन्य पेशे से जुड़े हैं, के लिए हिम केयर योजना एक वरदान जैसी सौगात दी है।

मध्यम वर्ग की इस सौगात को बनाए रखना सुक्खू सरकार का दायित्व है और समझती भी है। इसलिए इसकी अनुपालन में हो रही कोताही पर अंकुश लगाना और इसे लूट-खसोट का जरिया बनाने वालों को कानून के दायरे में रखने के लिए सुक्खू सरकार की जिम्मेदारी से काम कर रही है। हिम केयर योजना समाज के मध्यम वर्ग के गैर-सरकारी नौकरी पेशा लोगों के महंगे रोगों के इलाज में बहुत ही मददगार सिद्ध हुई है। इस वर्ग के लोग हजार रुपए का हेल्थ बीमा लेकर दो-तीन वर्ष के लिए बड़ी से बड़ी बीमारी से निपटने के लिए चिंता मुक्त हो जाते हैं। लोग इस योजना के अंतर्गत सरकार द्वारा पंजीकृत सरकारी व गैर-सरकारी अस्पतालों में जाकर अपना इलाज करवाते हैं। इस योजना का लाखों लोगों ने लाभ उठाया है और उठा रहे हैं।

          यह योजना लोगों के पैसे से, लोगों के इलाज के लिए सरकार द्वारा चलाई गई है। कालांतर में जिसका लाभ लोगों को कम और निजी अस्पतालों को ज्यादा मिला है। ऐसा नहीं कि लोगों का इलाज नहीं हुआ। निस्संदेह इलाज हुआ, परंतु कुछ निजी अस्पतालों ने इस योजना को सोने के अंडे देने वाली मुर्गी मान लिया है और लूट मचा दी है। निजी अस्पतालों में मरीज को इलाज की ऐसी प्रक्रिया में डाल दिया जाता है जो उसकी बीमारी को ठीक करने के लिए नहीं बनी है। टेस्ट, सीटी स्कैन इत्यादि, जिनकी जरूरत ना भी हो, करवा दिए जाते हैं। कुछ अस्पतालों में इंडोर मरीजों को अनावश्यक ही लंबे समय के लिए रखा जाता है।

         सरकार के प्रीमियर हॉस्पिटल में भी कथित तौर पर यह पाया गया है कि हृदय रोगियों को स्टंट डालने के मामले या फिर ऐसी सर्जरी जिनमें महंगा सामान प्रयोग होता है, हिम केयर और आयुष्मान योजना के आने के बाद तेजी से वृद्धि हुई है। संभवतः ,यह भी एक कारण है कि सरकार के देनदारी  के खाते में सप्लायर के करोड़ों रुपए  खड़े हैं। 
       निजी अस्पताल व क्लीनिक जो इस योजना से पहले वीरान होते थे, आयुष्मान और हिम केयर योजना के साथ पंजीकृत होने के बाद मालामाल हो गए हैं। दो-तीन कमरों में चलने वाले निजी अस्पताल व क्लीनिक बहुमंजिला आलीशान इमारतें बन गए हैं।

        सुक्खू सरकार ने निजी हॉस्पिटल की इस लूट पर पहले नकेल कसी, परंतु आशातीत परिणाम नहीं मिले तो उन्हें डीपैनल्ड कर दिया। हॉस्पिटल मालिकों ने इसको राजनीतिक व भावनात्मक मुद्दा बनाने के लिए विपक्ष के नेताओं को पकड़ा और उन्होंने भी राजनीतिक हित साधने के लिए इस मामले को हाथों-हाथ ले लिया और मीडिया में खूब उछाला। जनहित के इस तरह के मुद्दों को विपक्ष को ही नहीं अपितु मीडिया और आमजन को भी उठाना चाहिए, परंतु ऐसी योजनाओं में हो रही लूट-खसोट को भी नजरअंदाज नहीं करना चाहिए।

        हिमाचल प्रदेश में हाल ही में प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) की निजी अस्पतालों पर मल्टीपल रेड इस बात का प्रमाण है कि आयुष्मान व हिम केयर जैसी जनहित की योजना में जबरदस्त लूट हो रही है। सुक्खू सरकार ने निजी अस्पतालों की इस लूट का ईडी से पहले संज्ञान लेते हुए उन्हें डीपैनल्ड कर दिया। आम जन की नजर में सुक्खू सरकार यह कदम एकदम सही है परन्तु विपक्ष को इस में झोल नजर आती है। हिम केयर योजना चल रही है और वह सरकारी अस्पतालों में जारी है।

सरकार को सरकारी अस्पतालों में भी इन दोनों जनकल्याण की योजनाओं के अंतर्गत हो रहे इलाज पर कड़ी निगरानी रखनी चाहिए। यहां पर भी कथित तौर पर कमीशन के चक्कर में कुछ डॉक्टर “अनैतिक आचरण” के मार्ग पर चल पड़े हैं। प्रवर्तन निदेशालय को भी सरकारी अस्पतालों में छानबीन करने की रणनीति जल्द तैयार करनी चाहिए। यह मामला गंभीर है और आम जन के जीवन-मरण से जुड़ा है।

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