लगभग दो-ढाई दशकों से देहरा विधानसभा क्षेत्र के विकासात्मक कार्य लगभग ठप्प पड़े हुए है। विकास के इसी सूखे में उपजा लोकप्रिय प्रचार वाक्य “देहरा कोई नहीं तेरा”।1998 के चुनाव में तत्कालीन प्रागपुर (आरक्षित सीट) और मौजूदा देहरा से स्वर्गीय वीरेंद्र कुमार चुनाव जीते परंतु उनकी अकस्मात मृत्यु के बाद उनकी धर्मपत्नी निर्मला देवी ने उपचुनाव लड़ा और जीता। निर्मला देवी अपने पति वीरेंद्र की तरह प्रागपुर का प्रतिनिधित्व करने में असमर्थ रही । निर्मला देवी का बतौर जनप्रतिनिधि कमजोर प्रदर्शन के कारण 2003 में प्रागपुर से नवीन धीमान आजाद उम्मीदवार के रूप में जीते। निर्दलीय होने के नाते नवीन धीमान देहरा का आशातीत विकास नहीं करवा पाए, परिणाम हुआ की 2007 में यहां से कांग्रेस के उम्मीदवार योगराज चुनाव जीत गए। परंतु कांग्रेस 2007 में विधानसभा में विपक्षी पार्टी बनी जिसके कारण योगराज भी देहरा का विकास करवाने में असफल रहे

2012 में परिसीमन के बाद तत्कालीन थुरल विधानसभा क्षेत्र आरक्षित हो गया और वहां के विधायक एवं पूर्व मंत्री रविंद्र रवि ने प्रागपुर से चुनाव लड़ा और जीते। प्रागपुर की विडंबना देखें, इस बार प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनी और देहरा एक बार फिर विकास से वंचित हो गया। 2017 में होशियार सिंह ने बतौर निर्दलीय रविंदर रवि को चुनौती दी उन्होंने धरतीपुत्र का नारा दिया और चुनाव जीता। अपने 5 साल के विधायक कालखंड में उन्होंने अपने पैसों व विधायक निधि कुछ काम जैसे लिंक रोड, बिजली के खंभे, पानी के नल के लिए पाइप आदि आदि छोटे-मोटे काम करके देहरा में अपना प्रभुत्व तो जमा लिया परंतु कोई बड़ा काम करवाने या पोंग विस्थापितों के मुख्य मुद्दों पर कुछ नहीं कर पाए। यद्यपि 2022 में वह जातीय समीकरणों व छोटे-मोटे सामाजिक कल्याण के कार्यों के बल पर चुनाव तो जीत गए परंतु 15 महीने में कुछ कर नहीं पाए।

मुख्यमंत्री ने देहरा के विकास के लिए पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए एक मेगा परियोजना की घोषणा कर दी। इस परियोजना में 680 करोड़ का जूलॉजिकल पार्क व पोंग डैम में पर्यटन की सभी संभावनाओं को तलाशना है । देहरा के लोग ने मुख्यमंत्री की इस योजना जम कर सराहा है। इसी बीच होशियार सिंह ने विधानसभा से अन्य दो निर्दलीय विधायकों के साथ इस्तीफा दे दिया और भाजपा के टिकट पर पुनः चुनाव लड़ने की ताल ठोक दी । होशियार सिंह ने चुनाव की ताल ठोक तो दी परंतु उसमें लय नहीं बांध पा रहे हैं। उन्‍होंने भाजपा कार्यकर्ताओं के साथ-साथ अपने-आप पर से भी भरोसा खो दिया है, ऐसा प्रतीत होता है। वास्तव मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू ने अपनी धर्मपत्नी कमलेश ठाकुर, जिनका मायका देहरा में है , को चुनाव में उतार दिया और होशियार सिंह की लय और भाजपा के सभी सियासी समीकरण बिगाड़ दिए हैं।

कमलेश ठाकुर ने अपने चुनाव अभियान में यह स्थापित कर दिया है कि वह मात्र मुख्यमंत्री की धर्मपत्नी और देहरा की( ध्याण) बेटी होने के कारण ही चुनाव में नहीं उतरी है। उन्होंने दो हफ्तों में साबित कर दिया कि वह एक कुशल नेत्री है। राजनीति की बारीकियों को समझती हैं, वह देहरा की पीड़ा को जानती हैं। उन्होंने इस पीड़ा को सहा है और आज उनके पास इस पीड़ा का पुख्ता इलाज भी है। वह देहरा की पीड़ा के इलाज का खाका लोगों के समक्ष रखती हैं और साथ ही याद करवाती हैं कि वह उनकी ध्याण है और वह ध्याण होने का फर्ज देहरा का विकास करके निभाना चाहती हैं और उनसे इसके लिए एक मौका मांगती है। देहरा के लोग जो दशकों से विकास के लिए तरस रहे थे इस मौके को गंवाना नहीं चाहते हैं ।

कमलेश हर पंचायत, बड़े-बड़े गांव, महत्व पूर्ण लोगों, आमजन, प्रभावशाली महिलाओं, युवक व युवतियों के साथ सीधा संवाद करके बड़ी ही कुशलता से आत्मीयता का रिश्ता स्थापित कर रही हैं। हर दिन कमलेश ठाकुर 8 से 10 छोटी-बड़ी जनसभाएं कर रही हैं। मंच से भाषण के अलावा , लोगों से सीधा संवाद कोंग्रेस के लिए अक्षय ऊर्जा का काम कर रहा है। इस संवाद से कमलेश 800 से 1200 लोगों को हर दिन कोंग्रेस से जोड़ती हैं।

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