तस्वीर बयां कर रही है बदलती फिजाओं का।

पिंक सिटी जयपुर की जिन गलियों में 3 दिसंबर की शाम को गहमागहमी थी, जीते विधायकों में एक होड़ लगी थी कि कौन पहले पहुंचकर “घणी खम्मा” का जयकारा लगता है । आज वह गलियां वीरान सी लग रही है विधायक उन गलियों से गुजरने से बचते हुए लंबे रास्ते लेते हुए भारती भवन के प्रांगण में पहुंचने के लिए बेचैन कदमों से दौड़ रहे हैं “खम्मा घणी” कह रहे हैं। जो विधायक कल तक एक नाम लेकर दहाड़ रहे थे कि मुख्यमंत्री तो वह ही बनेगा जिसके साथ विधायक हैं।यह दहाड़ने वाले विधायक आज भी दहाड़ लगा रहे हैं परंतु उस बैल की तरह जो दहाड़ के साथ पतला गोबर भी करता है। कह रहे हैं कि हम पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा के साथ हैं परंतु हाईकमान जो फैसला लेगा हम उसके साथ होंगे

जब से भाजपा हाई कमान की आंधी जयपुर में आई है तब से हवा में कई नए नाम तैरने लगे हैं और जो पहले गुलाबी नगरी में हवा का रुख बांधे थे वह हवा हवाई हो गए हैं । विधायकों के लिए जो कल तक 13 सिविल लाइन शुभ नजर आ रही थी आज वह 13 काअंक अपशकुन लग रहा है और अब उन सब ने अपना डेरा भारती भवन के आसपास ही जमा लिया है ताकि उनकी कोई चुगली ना कर दे। नए पुराने विधायक आरएसएस के प्रकाश चंद और निंबा राम से मिलने के लिए कतारबद्ध खड़े हैं । विधायक केंद्रीय पर्यवेक्षकों के यहां भी उपस्थिति दर्ज करवाने में एक दूसरे को पीछे धकेलना में लगे हुए। कल तक जो नाम उनके लिए आराध्य थे आज वह उनसे नजर मिलाने में भी अपराध समझ रहे हैं

राजस्थान विधानसभा चुनावों में भाजपा के 115 विधायक जीतकर आए हैं जिनमें से 45 विधायक ऐसे हैं जो पहली बार जीत कर आए हैं। इनमें से लगभग एक डेढ़ दर्जन ऐसे हैं जिन्हें आरएसएस की कृपा से टिकट मिली और जीत कर आए। यह सब भारती भवन की शरण में है। कुछ निर्दलीय विधायक जिन्होंने भाजपा से बगावत कर चुनाव लड़ा और जीत गए हैं अब वह आरएसएस व पार्टी अध्यक्ष राठौर ,जो स्वयं चुनाव हार गए हैं, के घर के इर्द-गिर्द मंडरा रहे हैं

वसुंधरा राजे सिंधिया के यहां पहले दिन 50 से 60 विधायक डेरा जमाए थे और हाई कमान से दो दो हाथ करने को तैयार थे परंतु हाई कमान का डंडा चलाते ही यह विधायक दोनों हाथ जोड़कर उठक बैठक कर रहे हैं। नए विधायक राजस्थान में बनने वाली नई कैबिनेट में अपना नाम देखने का सपना देख रहे हैं ।

हाई कमान का खौफ जयपुर के सियासी गलियारों में इस हद तक है व्याप्त है कि कोई भी विधायक किसी के साथ चाय पीने से भी कनी काट रहा है। टोली और बोली का चलन जो राजनीति का मुख्य हथियार होता है, को जंग खा गया है राजस्थान की मुख्यमंत्री की कुर्सी की जंग खत्म हो चुकी है, बस इंतजार है हाई कमान के ऐलान का। इसे कहते हैं “मोदी है तो मुमकिन है”। अगर यह सब मुमकिन है तो क्या यह भी मुमकिन है कि कांग्रेसी विधायक भी पाल बदल लें….. ?

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