चीन भी श्रेय लेने की होड़ में

अफ्रीकी महाद्वीप के 55 राष्ट्रों की अफ्रीकन यूनियन को जी-20 की सदस्यता दिलवाने के लिए भारत पिछले कुछ वक्त से प्रयत्नशील था और भारत के प्रयास आज जी-20 शिखर सम्मेलन के पहले दिन फलीभूत हुए। जी-20 के सदस्य में अफ्रीकन यूनियन संघ को जी-20 में शामिल करने की सहमति जताई और एयू को स्थाई सदस्यता देने पर मोहर लगा दी। पड़ोसी देश चीन की मंशा थी कि अफ्रीकी यूनियन की सदस्यता का मामला किसी तरह से दिल्ली जी -20 शिखर सम्मेलन में अटक जाए। इसके लिए चीन प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से कूटनीति की चलें चलता रहा लेकिन भारत इसमें सफल हुआ।
भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जी-20 के सदस्यों को अफ्रीकन यूनियन को सदस्यता देने के लिए पत्र लिखें और उसके लिए जबरदस्त लाबिंग भी की थी। दुसरी ओर चीन जो छद्म तौर पर अड़ंगे लगा रहा था अब श्रेय लेने की होड़ में लग गया है। उसके डिप्लोमेट दावा कर रहे हैं की चीन ने इसके लिए सबसे पहले अफ्रीकन यूनियन को इस संगठन में शामिल करने के लिए कदम उठाए थे।
अफ्रीकन यूनियन को जी-20 के सदस्यता मिलने पर भारत को श्री इसलिए भी मिला है कि यह काम भारत की अध्यक्षता में हुआ है वास्तव में चीन और भारत के बीच में श्री की होड़ इसलिए भी है कि उनके बीच ग्लोबल साउथ का नेता बनने की होड़ है।

क्या है ग्लोबल साउथ

भारत चीन ब्राजील और अफ्रीकन महाद्वीप को ग्लोबल साउथ कहा जाता है और भारत व चीन इसके नेता बनने चाहते हैं । अफ्रीकन यूनियन के शामिल होने से पहले भारत, चीन व ब्राज़ील जी 20 के सदस्य थे। चीन ने यह कहीं कई बार कहा कि उसका निवेश अफ्रीकी महाद्वीप में सबसे ज्यादा है इसलिए यह उसका सबसे अच्छा दोस्त है। चीन की विदेश नीति का आधार बास और सेवक है। जबकि भारत की विदेश नीति का आधार पंडित जवाहरलाल नेहरू के समय से ही समावेशी है इसलिए भारत विकासशील देशों में अधिक पैठ रखता है। दुसरा अफ्रीकी महाद्वीप में भारतीय मूल के लोग काफी संख्या में सदियों से रह रहे हैं । यह कारण भी है कि भारत को इसका लाभ मिलता है। अफ्रीकी यूनियन के इन देशों में यूरोपियन देशों से,विशेष तौर पर उन देशों से जिनका वहां पर साम्राज्य रहा है, से दूरी बनाए,दुनिया में नए सहयोगियों को तलाश रहे हैं। इसलिए वह भारत व चीन की ओर देख रहे हैं। भारत एक समावेशी विदेश नीति और प्रजातांत्रिक देश होने के नाते दुनिया के विकासशील देशों को आकर्षित करता है। विकासशील देश, जो यूरोपीय देशों की पराधीनता में से निकले हैं, वह साम्राज्यवादी व विस्तारवादी ताकतों से दूरी बनाकर रखना चाहते हैं।

अफ्रीकी संघ का परिचय व इतिहास

अफ्रीकी महाद्वीप के दशों ने सामाजिक आर्थिक और अंतर महाद्वीपीय विकास को आगे बढ़ाने के लिए 9 सितंबर 1999 को एक मसौदा बनाया । सिर्ते घोषणा में अफ्रीकी संघ के मसौदे की घोषणा के साथ ही और 9 सितंबर 1999 में इसकी नींव पड़ी और 26 सितंबर 2001 में आदीस अबाबा इथोपिया में इस ब्लॉक की स्थापना हुई और 9 जुलाई 2022 में आधिकारिक तौर पर डरबन में पेश किया गया था इससे पहले यह अफ्रीकी एकता संगठन के तौर पर जाना जाता था।
अफ्रीकी संघ का मुख्य उद्देश्य अफ्रीकी राज्यों के बीच एकीकरण और सहयोग व उपनिवेशवाद के खिलाफ लड़ाई है।ए यू अपने स्वयं के नागरिकों से प्रेरित है और विश्व अर्थव्यवस्था में एक प्रेरक शक्ति है। अफ्रीकन देशों में अधिकतर देश विकासशील है अतः इन देशों में निवेश के आपार मौके हैं।चीन की नजर इन देशों पर है और वह इसी नजरिए से यहां बड़े पैमाने पर निवेश करने में प्रयासरत रहा है। इन देशों की भौगोलिक स्थिति भी सामरिक दृष्टि व खनिजों के भंडार के कारण महत्वपूर्ण है। भारत यहां पर निवेश के अवसर देख रहा है। भारत के आज सफल हुए प्रयासों से इन देशों में निवेश की संभावनाएं बढ़ जाएंगी।

4 Responses

  1. G20 summit is well managed show of India/Bharat but not inviting all CMs and leader of opposition to dinner by the President is not of good taste.

  2. Good thougtful decision of our CM Sukhvinder Singh Sukhu who attended dinner hosted by hon’ble President of Bharat

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