आजाद भारत की राजनीति में पनपते भ्रष्टाचार को लेकर राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर ने लिखा था कि “नेताओं की टोपी अब थैला बन गई है” । उस समय में फैले राजनीतिक भ्रष्टाचार की तुलना आज के भ्रष्टाचार से करें तो राजनेताओं की ज़मीर तब से लेकर आज तक अनगिनत पायदान लुढ़क चुकी है। थैला बोरा बन गया और बोरा सुरसा का खुला मुंह जिसमें जीप से लेकर तोप, टैंक ,लड़ाकू जहाज,कोयले की खदान, कामन वेल्थ गेम्स, सिंचाई की स्कीमें, सहकारिता का अनगिनत पैसा, टूटते निर्माणाधीन व निर्मित पुलों, स्विस बैंकों में जमा अकूत धन, जिसकी अब चर्चा ही नहीं होती, सब कुछ कथित भ्रष्ट नेताओं के पेट में समा गया परन्तु इनका पेट नहीं भरा।
राजनीतिक भ्रष्टाचार की इंतहा देखो भ्रष्टाचार इस कदर बढ़ गया है कि सुरसा का मुंह भी बंद हो गया परंतु भ्रष्ट नेताओं की धन इकट्ठा करने की भूख नहीं मिटी। यह देख कर सुरसा की आंखें खुली की खुली रह गई । गांधी टोपी जो कभी अंग्रेजों के लिए खौफ हुआ करती थी, आज के दौर में अधिकतर सियासतदानों की वह टोपी सोना उगलने वाली टोपी हो गई। जिसे पहनते ही धन दौलत की नदियां अचानक राजनीतिज्ञ की ओर बहना शुरू हो जाती हैं । छोटे से छोटा पार्षद ,पंचायत का पंच भी जो बीते कल तक धनाभाव में बस में नहीं चढ़ता था चुनाव जीतने के उपरांत यकायक मोटर गाड़ी का मालिक बन जाता है और फिर ब्रिटानिया की मलिका की तरह ठसक दिखाता है।
राजनीतिक भ्रष्टाचार एक ऐसा संक्रमण है जो कोविड-19 से कहीं अधिक गति से फैलता है और जिस की रोकथाम के लिए कोई भी राजनीतिज्ञ वैक्सीन निकालने की नहीं सोचता है, और सोचे भी क्यों, इसका प्रसार होने से ही तो उसको लाभ मिलता है। पूरी तरह से राजनीतिक भ्रष्टाचार के मुद्दे पर चुनाव जीत प्रधानमंत्री बनने वाले पहले व्यक्ति विश्वनाथ प्रताप सिंह थे। बी पी सिंह राजीव गांधी की कैबिनेट में मंत्री थे और उन्होंने बोफोर्स तोप खरीद में हुए कथित भ्रष्टाचार का जमकर प्रचार किया। चुनाव की बेला में सिंह कांग्रेस से अलग हो गए और नई पार्टी बनाई। वह बोफोर्स में हुई कथित दलाली के नाम पर चुनाव जीते और भारत के प्रधानमंत्री बने। परंतु वह बोफोर्स तोप की खरीद में कथित दलाली लेने वालों को छू नहीं पाए । क्या कारण है कि वह देश के प्रधानमंत्री होने के बाद भी भ्रष्टाचारियों को सजा नहीं करवा पाए?
यद्यपि बोफोर्स तोप ने कारगिल युद्ध में अपना लोहा मनवाया। उसने दुश्मनों के ठिकानों को निस्तेनाबूद करने में कोई कसर नहीं छोड़ी । जनता व सेना, बोफोर्स की मारक क्षमता से गदगद थी। बोफोर्स दलाली का मामला आज भी चुनावी दौर में किसी न किसी नेता का सहारा बन जाता है। मंच से विरोधी नेता इस भूले बिसरे गीत को जरूर गुनगुनाते हैं और आने वाले समय में भी इस तराने को गुनगुनाते रहेंगे, जब तक राजीव गांधी का परिवार राजनीति में है।
पूर्व प्रधानमंत्री वीपी सिंह ने राजनीतिक भ्रष्टाचार को चुनाव जीतने का एक नायाब अस्त्र आविष्कृत किया जिसे बाद की पीढ़ी बखूबी चला रही है और अपने विरोधियों को चारों खाने चित कर रही है। 2014 के लोकसभा चुनाव से पहले देश के चुनिंदा मीडिया हाउस ने यूपीए-2 सरकार में फैले भ्रष्टाचार को इस कदर उछाला कि कांग्रेस पार्टी देशवासियों में लगभग अछूत होगी। यूपीए-2 में टू जी घोटाला, कोयला घोटाला, कॉमनवेल्थ गेम घोटाला व अन्य जमीन खरीद से जुड़े कई भ्रष्टाचार के मामले जनता के मन व देश की मिट्टी में इस तरह से रच बस गए कि स्वर्ग भी पताल लोक में पहुंच गया। लोग त्राहि-त्राहि करते किसी कृष्ण को ढूंढने लगे जो अपनी उंगली पर गोवर्धन पर्वत उठाए और भ्रष्टाचार की हो रही इस मूसलाधार बारिश से उन्हें बचाए ।
2014 के भ्रष्टाचार व इमानदारी के बीच हुए महासमर में लोगों को एक चेहरा मिल गया और लोग उस चेहरे के मुखोटे अपने चेहरे पर पहन कर महासमर में कूद गए और जीत नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली एनडीए की हुई। कथित तौर पर आकंठ भ्रष्टाचार में डूबी यूपीए बुरी तरह से हार गई और लगातार हारती चली जा रही है। जहां हारी नहीं वहां भ्रष्टाचार के केसों का कथित दबाव बनाकर उसकी सरकारें टूटने लगी। कांग्रेस की सरकारें टूटती गई लोगों का आनंद बढ़ता गया क्योंकि उन्हें भरोसा है नरेंद्र मोदी के उस कथन पर कि “ना खाऊंगा ना खाने दूंगा”। लोग भ्रष्टाचार मुक्त भारत का सपना आंखें बंद कर देखने लगे।
राजनीति में भ्रष्टाचार की सियासत का बीज जो बीपी सिंह ने बोया था वह आज के दौर में जबरदस्त फल दे रहा है बल्कि एक पायदान ऊपर चढ़ गया और अपने नए रूप में दिखाई दे रहा है। इसका नया रूप है भ्रष्टाचार की राजनीति अर्थात ताकतवर विरोधी को भ्रष्टाचार के मामलों में लपेटो और अपने पाले ले आओ। भ्रष्टाचार की राजनीति के इस नए दण्ड से कितने ही राष्ट्रीय, क्षेत्रीय व स्थानीय राजनीतिक अपना वाजूद एक दशक खो चुके हैं या खोने की कगार पर हैं।
इस का ताजा उदाहरण है एनसीपी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने चंद दिन पहले भोपाल में भाजपा कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए कहा था कि एनसीपी में भ्रष्टाचारियों का जमावड़ा है। एनसीपी के कुछ नेताओं पर 70000 करोड़ के भ्रष्टाचार के मामले हैं। प्रधानमंत्री ने आगे कहा कि “मैं देश को गारंटी देता हूं कि जिन लोगों ने गरीबों का ,असहाय लोगों का पैसा खाया है , एक- एक को सजा दिलवाकर रहूंगा। प्रधानमंत्री मोदी के इस बयान के 2 दिन बाद ही एनसीपी के अजित पवार जिन पर कथित तौर पर 70000 करोड के भ्रष्टाचार के मामले हैं अपने साथी विधायकों के साथ महाराष्ट्र में शिवसेना-भाजपा की सरकार में शामिल हो गए। एकनाथ शिंदे भी ऐसा पहले कर चुके हैं उन्होंने शिवसेना के 30-40 विधायकों, जिनमें से अधिकतर कथित भ्रष्टाचार के मामलों में शामिल हैं को साथ लेकर भाजपा के साथ सरकार बनाई।
भ्रष्टाचार की राजनीति के इस नए यंत्र ने हर छोटे बड़े चुनाव में अपने विरोधियों को भ्रष्टाचार में संलिप्त होने के दस्तावेज दिखाकर कितने ही क्षेत्रीय व राष्ट्रीय दलों को क्षीण कर दिया है । भाजपा की इस राजनीति को पहला झटका बंगाल के विधानसभा चुनाव में लगा जहां बहुत सारे कथित तौर पर भ्रष्टाचार करने वाले नेता चुनाव से पहले टीएमसी छोड़कर भाजपा में शामिल हो गए, परंतु टीएमसी ने बावजूद इसके चुनाव में जीत दर्ज की। टीएमसी की जीत के बाद कई नेताओं ने घर वापसी भी की। टीएमसी की इस जीत ने एक संकेत दिया कि मात्र भ्रष्टाचार को हथियार बनाकर चुनाव नहीं जीते जा सकते हैं। परंतु यह संकेत लोगों के दिलों दिमाग तक उतरता उससे पहले उद्धव ठाकरे की सरकार के कई शिवसेना के विधायक व लोकसभा के सदस्य टूट गए और उन्होंने अपना समर्थन भाजपा को देकर एकनाथ शिंदे की नेतृत्व में नई सरकार का गठन किया। आज एकनाथ शिंदे और भाजपा की सरकार में अजीत पवार एनसीपी के कुछ विधायकों के साथ सरकार में शामिल हो गए हैं। यह वही अजित पवार जिन पर महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने विगत में कई बार कथित 70000 करोड रुपए के भ्रष्टाचार के आरोप लगा चुके हैं । लेकिन आज वह देवेंद्र फडणवीस के साथ एकनाथ शिंदे की कैबिनेट में उप मुख्यमंत्री हैं ।
प्रधानमंत्री मोदी के भोपाल में भ्रष्टाचारियों को सजा देने की गारंटी व देवेंद्र फडणवीस द्वारा लगाए अजित पवार पर भ्रष्टाचार के आरोपों ने देशवासियों के मन में कुछ प्रश्न पैदा कर दिए हैं । लोग प्रश्न कर रहे हैं कि 2G घोटाला, कोयला स्कैम व कॉमनवेल्थ गेम के दोषियों को अभी तक एनडीए सरकार क्यों सजा नहीं करवा पा रही है? भारत की जनता ने तो इस सरकार को भ्रष्टाचार के विरुद्ध कार्रवाई करने का खुला समर्थन दिया है! इन प्रश्नों की आवाज आमजन के अंदर भी कुलबुलाने लगी है। स्कैम है तो सजा क्यों नहीं? शुभेंदु अधिकारी, विश्वा शर्मा, रेड्डी ब्रदर्स, येदुरप्पा, अमरेंद्र सिंह अजीत पवार, पाटिल, अंसारी व अन्य ऐसे और नेता जिन्हें एनडीए सरकार ने कथित भ्रष्टाचार के केसों में संलिप्त बताया था आज बेधड़क भाजपा व एनडीए घटकों की सरकारों में सत्तासीन है! क्या मौजूदा दौर की राजनीति की धूरी जनहित व राष्ट्रहित के मुद्दों पर घूमने की बजाय भ्रष्टाचार की राजनीति पर घूम रही है? अगर यह सत्य है तो प्रजातंत्र में प्रजा के मत का महत्व शून्य हो जाएगा!