प्रजातांत्रिक कल्याणकारी सरकार इसका हल ढूंढे

केंद्रीय और राज्य सरकारों के बजट में जैसे-जैसे राजस्व प्राप्ति व खर्चों में अंतर बढ़ने लगा सरकारों ने इस घाटे को पूरा करने के या कम करने के लिए नए-नए तरीके ढूंढने शुरू कर दिए। इन तरीकों को सरकारों ने आर्थिक सुधारों का नाम दिया गया। वास्तव में या आर्थिक सुधार नहीं बल्कि  अंतरराष्ट्रीय मॉनटरी फंड जैसी अन्य फंडिंग ऑर्गेनाइजेशन की  शर्तें हैं जो विकसित या अविकसित देशों के लिए आर्थिक मदद या ऋण देने के लिए रखी गई हैं।

अंतरराष्ट्रीय फंडिंग ऑर्गेनाइजेशन की शर्तों को सरकार ने आर्थिक सुधार का नाम दिया

इन शर्तों को आर्थिक सुधारों का नाम दिया गया अंतरराष्ट्रीय फंडिंग एजेंसियों ने विकसित देशों को अपने प्रशासकीय व अन्य खर्चों को कम करने के लिए दबाव बनाया और इसी दबाव का परिणाम है की सरकारों ने प्रशासकीय खर्चे कम करने के नाम पर कर्मचारियों की नियमित नियुक्तियां करने की बजाय आउट सोर्स कर्मचारियों का नाम देकर सरकारी काम करने के लिए ठेके पर रखना शुरू कर दिया। इन कर्मचारियों को वेतन के नाम पर 7 से 10000 तक की पगार दी जाती है और काम नियमित कर्मचारियों से कहीं अधिक लिया जाता है।



लाचार बेरोजगार युवान का शोषण है आउटसोर्स प्रथा

ठेके पर कर्मचारी रखने की प्रथा वास्तव में पढ़े- लिखें लाचार बेरोजगार युवाओं का शोषण करने का एक नया ढंग सरकारों ने निकाला है। जिससे वह पैसा ही नहीं बचा रही हैं अपितु कर्मचारियों के प्रति सरकार के दायित्वों से भी बड़ी चतुराई से पल्ला झाड़ रही है आउट सोर्स पर रखें कर्मचारियों को पेंशन ,ग्रेच्युटी ,0बीमारी के इलाज के लिए पैसा, मेटरनिटी-फिटरनिटी की छुट्टियां, एलटीसी, स्टडी लीव, ड्यूटी के समय आई  चोट, अपंगता या मौत हो जाने पर मुआवजा व अनुकंपा के आधार पर परिवार जनों को नौकरी का हक व अन्य सुविधाएं नियमित कर्मचारी की तरह नहीं मिलती हैं । आउटसोर्स कर्मचारी एक ठेकेदार द्वारा कुछ पैसों पर कुछ दिनों के लिए हायर किया हुआ व्यक्ति है जिसे वह अपना काम निकल जाने के बाद  उसे निकाल देता है और फिर उसी काम के लिए कुछ दिनों बाद किसी दूसरे लाचार बेरोजगार पढ़े- लिखें युवा को रख लेता है वास्तव में आउटसोर्स कर्मचारी रखने की प्रथा मध्यकालीन भारत में राजे रजवाड़ों द्वारा चलाई गई बेगार प्रथा का प्रतिरूप है। हिमाचल प्रदेश सरकार के लगभग सभी विभागों में आउटसोर्स कर्मचारी रखे गए हैं।

कुछ विभागों की रीढ़ की हड्डी है आउटसोर्स कर्मचारी

कुछ विभाग स्वास्थ्य शिक्षा बिजली जल शक्ति आईटी लोक निर्माण जैसे महत्वपूर्ण विभागों की तो यह आउटसोर्स कर्मचारियों रीड की हड्डी हैं लेकिन इन कर्मचारियों की रीड की हड्डी को सरकार ने अप्रत्यक्ष और ठेकेदार ने प्रत्यक्ष तौर पर तोड़कर रख दिया है आए दिन आउटसोर्स कर्मचारी सरकारों से उनकी सुध लेने की गुहार लगाते रहते हैं सभी सरकारें उनके लिए ठोस नीति बनाने के आश्वासन देती आ रही हैं लेकिन आज तक किसी भी सरकार ने इनके लिए कोई नीति नहीं बनाई और ना ही आगे बनेगी क्योंकि इस प्रथा का अविष्कार ही सरकारी खर्चे कम करने के लिए किया गया है हाल ही में कोविड काल में स्वास्थ्य विभाग में ठेके पर रखी 1800 नर्सेज जिनका ठेका 31 मार्च 2023 को खत्म हो गया है ,ने मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू से उनकी नौकरी बचाने की गुहार लगाई मुख्यमंत्री ने उन्हें आश्वासन दिया है कि वह आउटसोर्स कर्मचारियों के लिए जल्द ही एक नीति लेकर आएंगे ठेके के कर्मचारियों को उम्मीद है की मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू आज मंत्रिमंडल की बैठक में आउटसोर्स कर्मचारियों के लिए कोई नीति बनाने की पहल करेंगे

3 Responses

  1. Outsource basis engagement of staff is a big exploitation of youths and promotion of another class of contractors (i.e. Manpower suppliers ) who are earning big bucks at the cost of young ones. Contractors/suppliers are sharing money with the persons who are at helm of affairs as such it has become breading ground of corruption also.

  2. Employee outsourcing policy is another name of exploitation. A pro-people government must do away such anti-workers system of employment and should make appointment through government agencies instead .

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