राहुल ने उठाए “क्रोनी कैपिटलिज्म” पर गंभीर सवाल ।

2014 के लोकसभा चुनावों में राहुल गांधी को राजनीतिक पप्पू कहकर जमकर व्यंग कसे और खुलकर परिहास उड़ाया गया। नेताओं के साथ- साथ लोगों की बड़ी संख्या भी इस नाम से उन्हें पुकार कर खूब चटकारे लेते दिखाई देती थी। लेकिन राहुल अपने पिता राजीव गाँधी की तरह मधुर सुमित मुख और अपनी दादी इंदिरा की तरह दृढ़ संकल्पित राहुल गांधी “पप्पू” नाम के व्यंग व परिहास के अपमान का घूंट पीता चला गया और 2023 में मोहनदास करमचंद गांधी की तरह गांधी बनकर भारत के राजनीतिक पटल पर उभरकर सामने आया। देशवासियों के मन-मस्तिष्क को टटोलने के लिए देश को एक कोने से दूसरे कोने तक  कदमों से नापा  दिया । जब देशवासियों की दुश्वारियां और आशंकाओं को अच्छी तरह भांप लिया तो प्रजातंत्र के मंदिर में कदम रखते ही साम, दाम, दंड व भेद की नीति को चुनौती देते हुए कुछ कठोर प्रश्न किए । जब प्रश्न के उत्तर प्रजातंत्र की मां के मंदिर में नहीं मिले तो राहुल गांधी प्रजा की ओर मुड़े और अपने प्रश्नों व शंकाओं को उसके समक्ष रखा । भारत की जनता, विशेषतौर पर उच्च मध्यम, मध्यम वर्ग व निम्न मध्यम वर्ग, को राहुल गांधी द्वारा पूछे प्रश्न व शंकाऐं कुछ को तो समझ रहे है, या फिर जनता इनको समझने के लिए इन प्रश्नों का लगातार पीछा कर रही है। इस संदर्भ में खास बात यह है कि इन प्रश्नों व शंकाओं की वजह मौजूदा सरकार की सतत खामोशी ही है । 

  राहुल गांधी के अनुत्तरित प्रश्न

         देश की अधिकतर जनता राहुल गांधी द्वारा एलआईसी के 37000 करोड, एसबीआई बैंक के 27000 करोड, बैंक ऑफ बड़ौदा के 6000 करोड़ व अन्य बैंकों द्वारा अदानी समूह में निवेश करने के  प्रश्नों के उत्तर मौजूदा सरकार से पाना चाहती है। यह कथित पैसा जिसका जिक्र अदानी समूह में निवेश किया बताया जा रहा है, भारतीय समाज के उस वर्ग का है, जो सुबह से रात तक मेहनत करता है, अपना पेट काटकर और बच्चों की इच्छाएं मारकर इस पैसे को अपने भविष्य को सुरक्षित करने के लिए वर्षों से जांची परखी जीवन बीमा कंपनी एलआईसी(LIC), देश के सबसे भरोसेमंद बैंक एसबीआई मैं जमा करवाता है । कंपनी व बैंक के हर खाताधारक को भरोसा होता है कि उसका बैंक व बीमा कंपनी उसके पैसे को सही जगह निवेश करेगा और जरूरत के समय उसे लाभांश के साथ लौटा देगा। वह यह अच्छी तरह जनता  है कि इसी तरह से  देश की आर्थिक खुशहाली आती है और धन का संचार किया जा सकता है ।

जीवन बीमा कंपनी एलआईसी इसलिए वर्षों से जीवित है और बैंक इसलिए फल फूल रह है क्योंकि इनकी रक्त धमनियों में इन मेहनत कश लोगों का रक्त बह रहा है। लेकिन  खाताधारकों को चिंता भी है, अगर हिंडनवर्ग का कथित आख्यान और राहुल गांधी की शंका सही है , तो जीवन बीमा कंपनी एलआईसी, एसबीआई बैंक व अन्य बैंकों का पैसा अदानी समूह में जो लगाया है अगर वह सुरक्षित नहीं है तो   देश की लगभग 38 % जनता आर्थिक गर्त में डूब जाएगी। देश की बाकी 62% जनता  तो इन मेहनतकशों के टैक्स व निवेश पर या तो पल रही है या फल फूल रही है। 

सेल कम्पनियां द्वारा निवेश की शंका   

       राहुल गांधी का दूसरा प्रश्न है कि क्या अदानी समूह में  विदेश में स्थापित सेल कंपनियों ने 20000 करोड रुपयों का  का निवेश किया है? कौन लोग हैं इन सेल कंपनियों के पीछे सरकार को या देश को बताना चाहिए। सरकार को यह बताने में कोई दिक्कत भी नहीं हो सकती क्योंकि एनडीए 0.1 सरकार के तत्कालीन वित्त मंत्री स्वर्गीय अरुण जेटली ने अपने विधि व वित्तीय कौशल से विदेशों में सैकड़ों सेल कंपनी चिन्हित कर उनको खत्म किया था। यह काम आज भी हो सकता है। मोदी सरकार के लिए यह काम किसी भी तरह से नामुमकिन नहीं है।

राहुल गांधी के इन प्रश्नों को भाजपा जिस तरह भी राजनीतिक मंच पर निपटन चाहे निपटे, लोगों को उससे कोई ज्यादा सरोकार नहीं है। परन्तु उन्हें निश्चित तौर पर अपना पैसा सुरक्षित हाथों में चाहिए।  लोगों की इस जमा पूंजी के बल पर ही सरकार ने  इस शताब्दी की सबसे बड़ी आपदा कोरोना से सफलतापूर्वक निपटा है और भविष्य के लक्ष्य भी इसी जमा पूंजी पर निर्भर है। 

One Response

  1. बहुत ही बड़िया आंकलन किया है, राहुल गान्धी के प्रश्नों ने बाक्या ही सता पक्ष को चिंतित कर दिया है और सतापक्ष उन प्रश्नो को दूसरी तरफ ले जाने की, कि राहुल गान्धी प्रशन कर के ओबीसी का अपमान कर रहे हैं, भरपूर कोशिश कर रहे हैं। जब की उस के वक्त्व्या ऐसी बात दूर दूर तक नही है ।

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