निवेश को सुविधा एवं रोजगार सृजन, उन्नत हिमाचल की कुंजी

शिमला : मुख्यमंत्री सुखविन्द्र सिंह सुक्खू ने मंगलवार को भारतीय उद्योग परिसंघ (सीसीआई) हिमाचल प्रदेश के वार्षिक अधिवेशन 2022-23 एवं हिमाचल प्रदेश की आगामी पांच वर्षों का विकास एजेंडा की अध्यक्षता करते हुए कहा कि “उन्नत हिमाचल”की कुंजी निवेश को सुविधा एवं रोजगार सृजन हैप्रचार वाक्य (टैग लाइन) ”निवेश को सुविधा एवं रोजगार सृजन” आकर्षित, व्यवस्थित है और सर्वमान्य भी लगता है। किसी भी व्यक्ति, समाज, राज्य, देश या दुनिया की उन्नति निवेश पर आधारित होती है, लेकिन यह तभी संभव है जब निवेशक की मंशा, उसकी निवेश की क्षमता, उसकी व्यापारिक योग्यता और उसके निवेश द्वारा राज्य को मिलने वाले लाभ व दी जाने वाली सुविधाओं व रियायतों के बीच संतुलन हो। अगर इन बिंदुओं को पहले अच्छे से जांचा-परखा नहीं और केवल थोथी वाहवाही लूटने के लिए निवेश का आंकड़ा मीडिया में उछालने से, जो अभी तक की सरकारें करती आ रही है, न तो प्रदेश से बेरोजगारी दूर होगी और न ही कर्ज उठाने की गति कम होगी। पूर्व में कांग्रेस व भाजपा की सरकारें अरबों रुपयों के निवेश का दावा करती रही परंतु बेरोजगार युवाओं की फौज के विवर्ण चेहरे व बुभुक्षित आंखे रोजगार ढूंढते-ढूंढते थक हार कर अपने बाप-दादा द्वारा सहेजे छोटे से भूखंड पर अपना पालन पोषण तलाश करने का प्रयास कर आ रही है

सरकारें कृषकों के इस भूखंड को हथियाने का छल कपमट करती आ रही है।


डॉ. यशवंत सिंह परमार पांच दशक पहले हिमाचली कृषकों के इन छोटे-छोटे भूखंडों का महत्व समझ गए थे। उन्होंने प्रदेश के भोले-भाले व गरीब किसानों की भूमि को बाहरी धनिकों से बचाने के लिए धारा 118 का ठोस “सुरक्षा कवच” पहनाया और प्रदेश के विकास का मॉडल पहाड़, पहाडिय़ों व पहाड़ी संस्कृति के अनुरूप तैयार किया। हिमाचल ने उनके मॉडल की राह पर चलते हुए बिना कर्ज लिए विकास की गति को शिखर पर पहुंचाया जो हिमाचली 60 व 70 के दशक में अपने परिवार का पालन पोषण करने के लिए दिहाड़ी मजदूरी की तलाश  मे पंजाब, दिल्ली, मुंबई में होटल, ढाबों, चाय की दुकानों व रिक्शा चलाने जाते थे उन्होंने 70-80 के दशकों में अपने खेत-खलिहानों, बाग-बागीचों, दुकान-मकान पर काम करने के लिए मजदूर नेपाल, बिहार, यूपी व अन्य राज्यों से लाने शुरू कर दिए। यह कमाल था डॉ. परमार की दूरगामी सोच का, कि कैसे इस भूमि से सोना उगाया जा सकता है। 

यह दु:खद है कि डॉ. परमार की इस सोच को उनकी उत्तरोत्तर कांग्रेस व भाजपा सरकारें नहीं समझ पाई और न ही कोई अपना मॉडल ला सकीं। उल्टा डा परमार द्वारा किसानों की भूमि को पहनाए सुरक्षा कवच को विकास  में बाधक मान कर लगातार दंतक्षत प्रहार  कर उखाड़ने  लगी है। भाजपा व कांग्रेस सरकारों की बौद्धिक संकुचता को देखते हुए अफसरशाही उन पर हावी हो गई। जब भी नई सरकार आती है यह अफसर उनको सूट-बूट पहना कर जहाज में बैठाकर निवेशकों को ढूंढने निकल पड़ते है। निवेशक सरकार को समझाते है कि जब तक धारा 118 है तब तक हिमाचल में काम करना मुश्किल है। मुख्यमंत्री व मंत्री भी बिना सोचे समझे ब्यान दाग देते हैं कि धारा 118 में बिना छेड़छाड़ किए उसको निवेश उन्मुख बनाया जाएगा। कृषकों के इस कवच को बिना छेड़छाड किए कैसे निवेश उन्मुखी बनाया जा सकता है? यह यक्ष प्रश्न है। 

आश्चर्य की बात है कि 6-7 माह पहले जब जयराम सरकार मेें धारा 118 में कुछ परिवर्तन करने का प्रस्ताव विधानसभा में लाया तो नेता प्रतिपक्ष और समूची कांग्रेस आगबबूला हो गई और विधानसभा की कार्यवाही को स्थगित किया लेकिन 6 महीनों में ही कांग्रेस की सोच बदल गई और वह धारा 118 में परिवर्तन की बात करने लगी और अब यह भी निश्चित है कि अब मौजूदा नेता प्रतिपक्ष इसका विरोध करेंगे। यह बात अब हिमाचल की प्रबुद्ध जनता को  तह करनी है कि प्रदेश में निवेश न आने का कारण कृषकों का कवच धारा 118 है यह फिर राजनीतिक नेताओं का संकुचित दृष्टिकोण या प्रशासन में फैला भष्टाचार?

प्रदेश में हिमाचली निवेशकों की कमी नहीं है।


हिमाचल प्रदेश का आर्थिक परिदृश्य 1960-70 वाला नहीं है। प्रदेश में ऐसे सैंकड़ों धनिक है जो करोड़ रुपए का निवेश करने की कुव्वत रखते है। हम अपनी विधानसभा में ही नजर दौड़ाए तो दो-चार विधायक इस क्षमता वाले मिल जाएंगे। देहरा के विधायक होशियार सिंह, जोगिन्द्रनगर के विधायक राणा, चौपाल के विधायक बलवीर वर्मा, सुजानपुर के विधायक राजेन्द्र राणा है। देहरा के विधायक ने तो अपने चुनाव क्षेत्र में निवेश करने का प्रस्ताव विगत सरकार में रखा था परंतु संभवत: सरकार का उन्हें सहयोग न मिलने पर उन्होंने अपने बूते ही उद्योग स्थापित कर दिया और अपने क्षेत्र के युवाओं को रोजगार दिया है। हमीरपुर, कांगड़ा, ऊना व कई अन्य जिलों में ऐसे कई हिमाचली सेठ हैं जो करोड़ों-अरबों रुपयों का निवेश कर सकते हैं। मुख्यमंत्री सुखविन्द्र सिंह के अपने ही चुनाव क्षेत्र में सुभाष चौधरी प्रदेश में कारोबार करना चाहते है परंतु सभी राजनीतिक दल उनका सियासी उपयोग तो करते रहे परंतु निवेश वाली बात से पीछे हटते रहे।

पर्यटन के क्षेत्र में समूची सेब पट्टी में हजारों युवा निवेश करने को तैयार है परंतु सरकारें उनकी तरफ नजर डालने को तैयार नहीं है। मुख्यमंत्री खुद जानते हैं कि किस तरह से स्वर्गीय पंडित सुखराम ने बीएसएनएल में बाहरी ठेकेदारों को दरकिनार कर हिमाचली युवाओं को छोटे-छोटे ठेके देकर बड़ा निवेशक बनाया है। इसे नेता की दूरदृष्टि कहते हैं। सरकार सुखाश्रय कोष की तरह एक मुख्यमंत्री स्टार्टअप कोष की स्थापना करें और पर्यटन के क्षेत्र में हिमाचली युवाओं व निवेशकों को मौका दें। अंबानी-अडानी व जेपी तो अंबुजा और एसीसी की तरह ही करेंगे। सरकार ने अंबुजा के लिए किसानों की जमीन 9000 रुपए प्रति बीघा अधिग्रहण कर और सरकारी जमीन एक रूपाया प्रति बीघा लीज पर दी और वह उसको 8300 हजार करोड़ में बेच गया। जमीन हमारी, जैव सम्पदा हमारी, भूसम्पदा हमारी सुविधा के नाम पर पैसा हमारा और करोड़ों का फायदा अडानी अंबुजा और  जेपी का। सरकार अपनी निवेश नीति पर पुनर्विचार करें और पहले हिमाचलियों में निवेश की संभावना को तलाशे। प्रदेश में कंडवाला से पांटवा तक एक्सक्लूसिव उद्योग पट्टी बनाने का खाका तैयार  करे ।यह खाका विभिन्न तरह के उद्योगों की जरूरतों के अनुरूप तैयार करे। इस उद्योग पट्टी को एक बार में धारा 118 से मुक्त करे, न कि 118 को सहज करें जिस भी निवेशक ने निवेश करना है यहां बेरोक टोक जमीन खरीदे। पर्यटन का क्षेत्र तो 100 प्रतिशत हिमाचलियों के लिए सुरक्षित कर देना चाहिए।

One Response

  1. अधूरे सपनों से कार्य नहीं होते हैं
    सभी सरकारें प्रशासनिक बाबूओं की रखैल की तरह काम करती आयी हैं न कोई नीति, न दूरदृष्टी केवल स्वार्थपरता और घूसखोरी चाहे वह नेताओं के स्तर पर हो, चाहे प्रशासनिक बाबुओं के स्तर पर, हर तरफ लूटमार चोरबाजारी। जो हिमाचली पीढ़ी दर पीढ़ी प्रदेश में रह रहे हैं उनको अधिकारों से वंचित किया गया और मनी शार्क वर्ग को धारा 118 मैं हर तरह से छूट देकर जमीन खरीदने की और लूट करने की छूट दी गई। और यह छूट सरकार के स्तर पर दलालों के माध्यम से इन मनी शार्क क्लास को मनमर्जी की छूट मिली हुई है केवल जो हिमाचली पीढ़ी दर पीढ़ी यहां रह रहे हैं केवल वही पिस रहे हैं। यही हिमाचली प्रदेश को उन्नति के शिखर पर ले जाने का माद्दा रखते हैं पर घूसखोरी के चक्कर में ही परमिशन नहीं मिलती है। और इनकी सुनने वाला कोई नहीं है बीजेपी अपने स्तर पर राजनीति करती है कांग्रेसी अपने स्तर पर राजनीति करते हैं और यह प्रवासी का दर्जा प्राप्त प्रदेश छोड़ने को मजबूर रहते हैं। यह आर्टिकल अधूरा आर्टिकल है।

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