पर्यटन कृषि बिजली व बागवानी मे राजस्व की अपार क्षमता
प्रदेश के मुख्यमंत्री सुखविन्द्र सिंह सुक्खू ने प्रदेश की कमान संभालते ही पूर्व सरकार द्वारा उनको विरासत में दिए भारी कर्ज व अन्य लाइबिलिटियों की चर्चा हर पत्रकार वार्ता, जनसभाओं व विधानसभा में की है। उन्होंने तो यहां तक कह दिया कि अगर कड़े कदम नहीं उठाए तो प्रदेश के हाल श्रीलंका जैसे हो जाएंगे। कर्ज की बात उनके हर पूर्ववर्ती मुख्यमंत्री चाहे वह वीरभद्र सिंह हो, प्रेम कुमार धूमल या फिर जयराम ठाकुर लेकिन कड़े कदम उठाने की बात किसी ने नहीं कही। हां, शांता कुमार ने जरूर “‘सरकारी खजाना खाली है” का खूब राग अलापा था जिसका परिणाम उन्होंने भुगता भी है। वह दोबारा प्रदेश की राजनीति में स्वीकार्य नहीं हुए।
कड़े निर्णय या खजाना खाली जैसे आख्यानों से जनता त्रास हो रही है ।
प्रदेश का मुखिया जब खजाना खाली, कड़े निर्णयों या लंका जैसे हालात की बात बार-बार करते हैं तो नागरिकों में आर्थिक असुरक्षा और भय का माहौल बन जाता है, जो की बन रहा, उद्योगपति, कारोबारी व व्यापारिक गतिविधियां कम हो जाती है। जो अर्थव्यवस्था को और कमजोर करती है। सकल घरेलू उत्पाद घट जाता है। ऐसी स्थिति में लोगों के रोजगार खत्म हो जाते है। आम आदमी में जमाखोरी की मानसिकता पनपती है वह पैनिक खरीददारी करते है, व्यापारी कीमते बढ़ा देते है। अफरा-तफरी का माहौल पैदा होता है। वास्तव में ‘कठोर निर्णय या ‘कड़े कदम जैसी भाषा कभी राजनीतिज्ञों या सरकार के मुख्या की होती ही नहीं है या भाषा बड़े बाबुओं( अफसरशाही) की होती है। मुख्यमंत्री सुखविन्द्र सिंह जैसे मंझे हुए सियासतदान के मुंह में या शब्द बड़े बाबुओं ने डाल दिए हैं। जब मुख्यमंत्री कड़े निर्णयों की बात करते हैं तो लोग उन द्वारा विगत 50-55 दिनों की गई धड़ाधड़ सियासी नियुक्तियों की भी चर्चा जोर पकड़ रही है।
बड़े बाबुओं के शब्दों को सियासी फलकर्म तौल कर बोलना जरूरी
बड़े बाबुओं ने पूर्व मुख्यमंत्री शांता कुमार के जहन में भी खजाना खाली का भय भरा और कड़े कदम उठाने को उकसाया, उन कड़े कदमों में एक कड़ा कदम था कि दफ्तरों में चाय व बिस्किट परोसने की प्रथा को बंद कर दो लेकिन अपने को मिलने वाले अतिथि सत्कार भत्ते उसी क्षण 500 रुपए बढ़वा लिया। मालूम नहीं आजकल या अतिथि सत्कार भत्ता कितना है या है भी कि नहीं? लेकिन उस समय था और अफसरशाही ने बाकियों की चाय-बिस्किट बंद करवा अपने भत्ते को बढ़वा लिया था। बड़े बाबू दो धारी कटार है जो आम भी काटती है और आम काटने वाले के हाथ भी और इसी स्थिति का लाभ उठाकर वो आम को खुद खा लेती है। इसलिए इनकी बात सुनो लेकिन उनको समझो अपनी ही बात । ऋण लेना बुरी बात नहीं पर उसका दुरुपयोग करना हानिकारक है, जो इस अफसरशाही को लगाम लग कर रोका जा सकता है। एक बड़ा बाबू के सारे खर्चे व नखरे मिला कर हर महीने वह लगभग दस लाख का पड़ता है और वो, कुछ को छोड़कर, काम का न काज ढाई सेर अनाज का होता है।
जनता में सरकार के कड़े निर्णयों के आख्यान से भय व निराशा पनपी है।
जनता में, प्रदेश सरकार द्वारा अभी तक लिए गए कड़े निर्णयों की श्रृंखला से निराशा ही फैल रही है। सरकार ने हाल ही में निर्णय लिए जिसमें जिलाधीशों द्वारा खर्च किए जाने वाले फंड को फिलहाल बंद कर दिया है। यह फंड क्यों बंद किया इसकी जानकारी नहीं परंतु इसका जबरदस्त नुक्सान पंहुच रहा है निर्धन व निरीह लोगों को। बहुत से ऐसे बच्चे-बूढ़े जिनके पास बीमारी की हालत में दवाई लेने के लिए पैसे नहीं होते हैं वह जिलाधीश के पास फरियाद करते थे, कुछ ऐसे गरीब जो हस्पताल या सरकार द्वारा दी जाने वाली अन्य सुविधाओं के कागज पत्र भरने आते थे परंतु घर वापसी के लिए पैसे नहीं होते तो जिलाधीश का दरवाजा खटखटाते है। इस फंड से एकल नारी, लाचार, विधवा या कोई अन्य जरूरतमंद की मदद जिलाधीश कर देते थे परंतु अब इस फंड पर रोक लगा दी, इससे लोग निराश है।
लोगों को आशंका है कि बजट में सरकार असहनीय कर लगाएगी।
जब से कड़े कदम उठाने पर बार-बार ब्यान आ रहे हैं लोगों को आशंका हो रही है कि राज्य सरकार का इशारा कर लगाने का है। जनता पहले से ही केंद्र सरकार द्वारा कागज, किताब, कलम, दवात, स्याही, दूध, दही, मक्खन व अन्य खाने पीने तक की हर वस्तु पर लोगों की सहन करने की सीमा से कुछ अधिक कर लगा चुकी है । अगर राज्य सरकार भी कर लगाती है तो उसका हाल रेगिस्तान के उस ऊंट की तरह है जिस पर केंद्र सरकार ने पहले से ही अठारह मन का कर का बोझा लाद रखा है अब प्रदेश सरकार एक छननी भी रखेंगी तो उसकी कमर टूट जाएगी और कर के सारे बोझे की जिम्मेदारी सुक्खू सरकार पर आएगी। 2024 के लोक सभा चुनाव में लोग कांग्रेस को कोसेंगे।
प्रदेश में राजस्व बढ़ाने की अपार क्षमता है।
प्रदेश के राजस्व बढ़ाने के कर अलाव बहुत से अन्य क्षेत्र हैं। हिमाचल प्रदेश को बिजली राज्य भी कहा जाता है। लाखोंलोगों ने अपने घर बार, खेत खलिहान का
बलिदान कर भाखड़ा, पौंग व अन्य बांध बनवाए। एक लंबी कानूनी लड़ाई के बाद भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने हिमाचल प्रदेश को वी वी एम बी में 7.8 हिस्सा दिया है जो पंजाब सरकार और केंद्र सरकार को देना है। इस हिस्से का एक अंश जो लगभग 3500 करोड़ रुपए बनता है हिमाचल सरकार को मिलना है उसके लिए सरकार को बड़े बाबुओं व अच्छे वकीलों की टीम बना कर कोर्ट में रखना होगा। मार्च में इसकी पुन: सर्वोच्च न्यायालय में पेशी है। बड़े बाबू व राज्य सरकार हमेशा ही इस केस में सुस्ती दिखाती रही हैं। सुक्खू सरकार को इस बार पूरी ताकत के साथ अपना पक्ष रख कर अपने हिस्से की राशि लेने को पैरवी करनी होगी।
इसी तरह पंजाब सरकार की शानन पॉवर हाऊस जोगिंदर नगर की अप्रैल में खत्म हो रही है। हिमाचल सरकार को तुरंत प्रभाव से शानन पॉवर हाऊस को अपने नाम पर हस्तांतरित कर लेना चाहिए यह भी प्रदेश के राजस्व में वृद्धि करेगा और कुछ रोजगार भी पैदा करेगा।
पर्यटन के क्षेत्र में राजस्व बढ़ाने की असीम क्षमता है।
पर्यटन विभाग एक ऐसा विभाग है जो सबसे निकम्मा है। उनके पास पर्यटन को बढ़ावा देने की बहुत सी परियोजनाएं आती है परंतु वह उस पैसे को भवन बनाने, स्मार्ट सीटी के गमले खरीदने, कोई नाच गाने के कार्यक्रम को प्रायोजित करने में उड़ा देते है। पर्यटन विभाग ने सोलन, शिमला, सिरमौर में व्यापार की दृष्टि से बहुत उम्दा जगहों पर भवन बनाए है परंतु रिर्टन तो क्या उनकी देखरेख के लिए उल्टा खर्च करना पड़ रहा है। यह शानदार भवन बर्षों या तो खाली पड़े रहे या मामूली भाड़े पर किसी को किराए दिए हैं।पर्यटन के क्षेत्र को विकसित करने के लिए सरकार को एक बृहद योजना के तहत ऋण ले और हिमाचली युवाओं को स्टार्टअप के लिए आगे ऋण दे। सरकार की कांगड़ा में टैंट सीटी की योजना है। इसे बाहर के धन्नासेठों को न देकर हिमाचली युवाओं को दें। पर्यटन, बिजली के अलावा कृषि के क्षेत्र में स्टार्टअप के अंतर्गत बहुत अवसर है।
सभी सरकारें अपना ढांचागत विकास ऋण लेकर ही करती है। मौजूदा कांग्रेस सरकार भी ऋण ले लेकिन इस ऋण से पूर्व की सरकारों की तरह मुफ्त की रेबड़ियां न बांट कर एक बृहद योजना तहत पर्यटन, कृषि बागवानी व अन्य क्षेत्रों के विकास के लिए हिमाचली निवेशकों को आगे लाकर कड़ाई से काम करवाए ।बाहरी तिजारती तो जे पी ,अंबुजा और अडानी अन्य सैंकड़ों की तरह अपनी तिजोरी भरेगे और फुर्र हो जाएंगे। यह सही है कि हिमाचल सरकार के ऊपर 75 हजार करोड़ रुपए का ऋण है लेकिन इसका राग अलापने से मोदी सरकार पसीजने वाली नही है । आप दिल्ली के सैंकड़ो चक्कर काट लो , जय राम ने भी काटे वीरभद्र ने भी काटे परन्तु परिणाम शून्य रहा। दिल्ली जा कर समाचारपत्रों की हैडलाईन और परिचय तो हो जाता परन्तु परिणाम न पहले निकला और न अब निकलेगा , बस अगर कुछ निकलेगा तो वक्त हाथ से निकल जाएगा । सरकार को व्यवस्था बदलनी है तो नजर और नजरिया भी बदलना होगा।
Great judgement. In fact maximum leaders comes in politics to earn money except few. All bureaucrats act more then leaders just passes time for a new govt to come..there were so many honest leaders in past but those were the stories .at last public becomes fool.in begining leaders searches public with folding hands and after winning public searches them with folding hands and bureaucrats passes good time .public becomes football and poor chamchaa keep on strolling. Hahaha
Very true sir. We can do our bit which I am trying and your comments will boost my energy
आप ने अपने लेख “कड़े नही सहज ” मे हिमाचल सरकार को जो समझाने का प्रयास किया है , बहुत ही प्रशंसनीय है, अक्सर देखा गया है, कि जो भी मुख्यमंत्री डा ,परमार के पश्चात हिमाचल में रहे उनका उदेश्य केवल किसी तरह से केवल 5 वर्ष पूरे करने तक सीमीत रहा, और पर्यटन, बागवानी और कृषि में आपर समभावना नही देख पाये, जिससे हिमाचल प्रदेश आत्म निर्भर नहीँ हो पाया, केवल बाबू लोग ( IAS ) जो जिआदातर अन्य राज्यों से संबंद रखते थे अपने हित सादते रहे, परंतु ये जो वयस्था परिवर्तन करना चाहते हैं, उनेह आप के इस लेख को गम्भीरता से समझना आवश्यक है
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कोविड के बाद काफी युवाओं ने कृषि क्षेत्र में रोजगार के अवसर खोजे है l इस क्षेत्र मैं युवाओं को नई तकनीक के प्रशिक्षण के प्रावधान की आवश्यकता है l हिमाचल मैं ग्रामीण परयटन के लिए सुदृढ़ योजना की आवश्यकता l