कर्नाटक में नफरत का बाजार बंद हो गया और मुहब्बत की दुकान खुल गई:राहुल गांधी।

सियासी मैदान से उखड़ती राजनीतिक पार्टियों के लिए यात्रा, चाहे रथयात्रा हो यह पदयात्रा हो, हमेशा फलदायक साबित हुई है।  मोहनदास करमचंद गांधी ने दांडी मार्च कर ब्रिटिश साम्राज्य की जड़ों में नमक डालकर उखाड़ दिया था, लालकृष्ण आडवाणी ने रथ यात्रा कर भाजपा को 2 सीटों से 302 सीटों तक पहुंचा दिया और राहुल गांधी ने कन्याकुमारी से कश्मीर तक 4080 किलोमीटर तक पैदल चल कर राजनीतिक चालों का मंत्र सीखा। भारत जोड़ो यात्रा के समय राहुल गांधी ने कर्नाटका की 51 विधानसभा सीटों को अपने कदमों से नापा इन 51 सीटों में से कांग्रेस ने 38 सीटों पर जीत हासिल की है, जबकि प्रधानमंत्री मोदी के 26 किलोमीटर के रोड शो में लोगों ने टनों  फूल पंखुड़ियां की वर्षा की परंतु वोट देने में कंजूसी कर दी। 


         कर्नाटका में कांग्रेस की जीत निश्चित तौर पर कांग्रेस पार्टी उसके कार्यकर्ताओं व शीर्ष नेतृत्व के लिए बड़ी जीत है। होनी भी चाहिए क्योंकि विगत 9 वर्षों में कांग्रेस की या पहली ऐसी जीत है जहां भारतीय जनता पार्टी अपना ऑपरेशन लोटस आसानी से नहीं कर पाएगी। भाजपा ने, राजस्थान को छोड़कर, पूर्व में कई राज्यों में कांग्रेस की कीचड़ से सनी राजनीति में कमल को उगाया है । कर्नाटका में भी शुरुआती रुझान को देखते हुए एक मंत्री ने बयान दाग दिया था की प्लान बी तैयार है, अर्थात घोड़ा मंडी लगेगी और खरीद-फरोख्त होगी परंतु कर्नाटका की जनता ने ऐसा करने की संभावना को ही खत्म कर दी है।

              कर्नाटका में कांग्रेस की शानदार जीत के और भी कई महत्वपूर्ण पहलू हैं। विगत कुछ वर्षों में देश के प्रबुद्ध लोगों की एक जमात, महंगाई से पिसते मध्य वर्ग के लोग, आदिवासी, दलित व अल्पसंख्यक अपने को हाशिए पर महसूस कर रहे हैं । समाज का यह असहाय वर्ग दूर एक कोने में लाचार नजर आ रहा था।  इस  वर्ग के लिए कर्नाटक में कांग्रेस की जीत एक संजीवनी साबित हो रही है। वह यकायक मुखर व उत्साहित नजर आ रहा है। कर्नाटका में कांग्रेस की जीत ने पार्टी के रैंक एंड फाइल मैं एक भरोसा जगया है कि भाजपा अजय नहीं है। इसके अश्वमेध घोड़े को रोका जा सकता है। समूचे देश में कांग्रेसी कार्यकर्ता स्फूर्त और मुस्तैद होता नजर आ रहा है।  ट्विटर पर देखें तो लोग अशोक गहलोत को कर्नाटका फार्मूले पर चलने की सलाह देते नजर आ रहे हैं। कर्नाटक में सभी नेता एकजुट हुए और एक रणनीति तैयार की जिसमें जातीय क्षेत्रीय व सामुदायिक सामंजस्य बैठाया और स्थानीय मुद्दों पर चुनाव लड़ कर भाजपा के ब्लिटसक्रेग तड़ातड़ी वाले चुनावी अभियान को जबरदस्त जवाब दिया।

                 

कर्नाटक की  जीत में हिमाचल की सुक्खू सरकार  द्वारा चुनाव में दी गई गारंटीयों को पहली मंत्रिमंडल की में बैठक पूरा करने की शुरूआत ने महत्वपूर्ण  भूमिका निभाई  है।कर्नाटक की जनता कांग्रेस  द्वारा दी गई पांच गारंटीयो  पर भरोसा किया है कि कांग्रेस जो कहती वह करती है।

        बड़ा प्रश्न यह है कि क्या कांग्रेस की कर्नाटक जीत राष्ट्रीय परिपेक्ष में भाजपा को हराने की राह बना सकती है। उत्तर हां भी है और नहीं भी। राष्ट्रीय सियासी पटल पर कई तरह के रंग है यूपी में लाल नीला हरा पीला बिहार में हरा सफेद नीला बंगाल में हरा सफेद केसरी दक्षिण भारत में गुलाबी काला और लाल रंगों की छटा है। इन अलग-अलग रंगों को इंद्रधनुषी छटा में उकेरना कांग्रेस की दूरगामी सोच और सियासी चतुराई पर निर्भर करता है। अगर कांग्रेस कर्नाटक की जीत की मदहोशी में रंग भरती है तो यह कीचड़ बन जाएगा और कीचड़ में कमल खिलता है।

2 Responses

  1. People accepted, “जय बजरंग्वली तोड़ दे भ्रस्टाचार की नली”
    instead of only, “जय बजरंग्वली”। Wise decision of Karnataka voters. It will also stop dictatorial behaviour of two top bosses in BJP.

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