भारतीय संस्कृति की संकल्पना “वसुधैव कुटुंबकम्” से स्फुटित भारत की कूटनीति ने जी-20 के 18 शिखर सम्मेलन को न केवल अन्य अंतरराष्ट्रीय मंचों की तरह बिखरने से बचाया अपितु जी-20 समूह के उद्देश्य को संजीदगी से स्पष्ट किया और भविष्य का मार्ग प्रशस्त किया। आज संसार के सभी देश विकसित, विकासशील और अविकसित देश राष्ट्रवाद की अवधारणा से ग्रसित हैं और एक दूसरे के प्रति प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से हिंसक हैं। कुछ देश सीधे युद्ध में उलझे हैं तो कुछ परोक्ष युद्ध से मानव विकास में बाधक बने हुए हैं । कुछ धर्म के नाम पर हिंसा कर रहे हैं तो कुछ वर्ण के नाम पर विनाश करने में लिप्त हैं। राष्ट्रवाद के नाम पर दुनिया में फैली ऐसी विनाशकारी हिंसा के समक्ष भारत ने धरती पर मानव विकास, शांति और समृद्धि के लिए “वसुधैव कुटुंबकम्” की कूटनीति सूत्रपात किया।
भारत ने विश्व में व्याप्त हिंसक व विनाशकारी सोच व विचारधाराओं के समक्ष वैकल्पिक अवधारणा “वसुधैव कुटुंबकम्” को रखा और उसकी सहज व्याख्या करते हुए कहा की पूरी पृथ्वी एक परिवार है और इस पृथ्वी पर रहने वाले सभी मनुष्य, जीव-जंतु और वनस्पति इस परिवार का हिस्सा है। हम सब एक दूसरे के पूरक हैं और पालक भी। इसलिए हम एक परिवार हैं। ऐसा नहीं कि परिवार में लड़ाई झगड़ा नहीं होता है, मतभेद नहीं होते परंतु इसके बावजूद हम एक दूसरे के सुख-दुख के साथी हैं । हमें एक दूसरे को पीछे धकेल कर नहीं वरन एक दूसरे का सहारा बनते हुए आगे बढ़ाना है।
भारत ने जी-20 शिखर सम्मेलन का मसौदा व मंशा इसी दिशा में स्पष्ट रूप से रख कर, शिखर सम्मेलन का घोषणा पत्र तैयार करने वाली टीम ने “वसुधैव कुटुंबकम्” की संकल्पना की आत्मा का संचार घोषणा पत्र के हर अक्षर में संचारित करने का काम एक कुशलतम भाषा शिल्प की तरह किया। उन्हें भारत के प्रधानमंत्री और शिखर सम्मेलन के अध्यक्ष नरेंद्र मोदी के लक्ष्य का भान था और यह भी ज्ञान था की शिखर सम्मेलन के प्रतिभागी देशों में से कुछ यूक्रेन युद्ध को लेकर रूस की कड़ी निंदा चाहते हैं और कुछ देश रूस के विरुद्ध एक शब्द भी नहीं देखना चाहते हैं और अन्य देश रूस और यूक्रेन की बीच चले युद्ध का समर्थन तो नहीं करते हैं लेकिन साथ ही मानव हित में रूस पर लगी आर्थिक पाबंदियां को भी नहीं चाहते हैं।
1999 में स्थापित जी-20 के दिल्ली शिखर सम्मेलन से पहले 17 सम्मेलन और लगभग 200 से ऊपर बैठकें हो चुकी थी। परंतु जी-20 के सदस्यों के बीच विभिन्न मुद्दों पर आपसी टकराव के चलते कभी भी संयुक्त घोषणा पत्र पर सहमति नहीं बनी। संयुक्त घोषणा पत्र की जगह गोलमोल दस्तावेज थमा दिया जाता रहा है। जिसके चलते इस समूह की आलोचना भी होती रही है। परंतु भारत की अध्यक्षता में हुए 18 में शिखर सम्मेलन में, जब दुनिया अमेरिका व पश्चिमी देशों और रूस, चीन व उत्तर कोरिया के दो ध्रुवों में बंटी हुई है, संयुक्त घोषणा पत्र पर सभी देशों की सहमति बनी,यह भारत के नेतृत्व,कूटनीतिज्ञों व हर भारतीय के लिए गौरवमई क्षण बना। यह भारत की कूटनीति की सफलता का उम्दा उदाहरण है कि कैसे यूक्रेन पर रूस द्वारा युद्ध थोपने और अमेरिका व यूरोपीय यूनियन के देशों द्वारा रूस पर आर्थिक पाबंदियां लगाने के बीच सामंजस्य बैठा कर संयुक्त घोषणा पत्र सहमति बनाई। घोषणा पत्र की हर पंक्ति हर अक्षर भारत की श्रेष्ठ कूटनीति का साक्ष्य है ।
भारत ने जी-20 समूह के गठन के उद्देश्यों की व्याख्या करते हुए कहा कि भू-राजनीतिक व सुरक्षा के विषयों को सुलझाने के लिए यह मंच नहीं है परंतु मानव विकास व आर्थिक समृद्धि में यह झगड़े एक बड़ी अड़चन है । इस अड़चन को साधने के लिए भारत ने संयुक्त राष्ट्र के चार्टर को जोड़ते हुए कहा कि सभी देशों को दूसरे संप्रभु देश पर किसी भी तरह का अग्रेशन व धरती पर अतिक्रमण से बचना चाहिए। संयुक्त घोषणा पत्र के मसौदे में आर्थिक पाबंदियों की बात तो नहीं की परंतु युद्ध के नकारात्मक प्रभावों की बात करते हुए बिगड़ती आर्थिकी की बात बेधड़क रखी ।
ब्लैक सी ग्रेन समझौते की बहाली करने पर जोर दिया।
यूक्रेन-रूस युद्ध के कारण संसार में खाद्यान्नों की कीमतों को नियंत्रण में रखना व दुनिया को भुखमरी की स्थिति से बचने के लिए ब्लैक सी ग्रेन समझौता जो जुलाई 2023 में खत्म हो गया है को बहाल करने में सभी सदस्य देशों की सहमति प्राप्त की। इस समझौते के पुनर्स्थापित होने से यूक्रेन व रूस की खाद्यान्नों व फर्टिलाइजर्स को ब्लैक सी से सुरक्षित मार्ग उपलब्ध होगा जिससे संसार के अन्य देशों, विशेष तौर पर यूरोपियन मुल्कों को भी लाभ होगा, और रूस और यूक्रेन को भी। इस मार्ग को बहाल करने पर यूक्रेन व रूस के साथ सभी देश सहमत हुए हैं।
अफ्रीकन संघ के देशों की जी-20 की सदस्यता
अफ्रीकन संघ के देश को जी-20 का सदस्य बनाने का मामला लंबे समय से लटका हुआ था भारत ने नई दिल्ली के 18 जी-20 के शिखर सम्मेलन में इस विषय को गंभीरता से आगे बढ़ाया और कामयाबी पाई । चीन अफ्रीकन संघ को सदस्यता देने वाली बैठक से अनुपस्थित रहा परंतु श्रेय लेने का दवा कर रहा है
इंडिया-मिडल-ईस्ट-यूरोप आर्थिक गलियारा (I M E C)
भारत में जी-20 शिखर सम्मेलन की मुख्य बैठकों से हटकर के भी काफी बैठकर मेहमान देश के कूटनीतिज्ञ महाराष्ट्र अध्यक्षों के साथ की हैं। इन इज़ाफ़ी बैठक में भारत ने इंडिया-मिडल- ईस्ट-यूरोप आर्थिक गलियारा बनाने पर सहमति बनाना भारत की बहुत बड़ी सफलता है। चीन ने इस गलियारे का समर्थन किया है लेकिन चेताया भी है कि इसका भू राजनीतिक (geo-political )उद्देश्य नहीं होना चाहिए। इसके अलावा बायो फ्यूल की बात हुई है जलवायु परिवर्तन पर यद्यपि कोई ठोस नीति उभर कर सामने नहीं आई है परंतु सहमति की राह पर चलने के लिए कुछ कदम बढ़ाए हैं।