18 से 22 सितंबर के संसद के विशेष सत्र में मोदी सरकार वन नेशन वन इलेक्शन का बिल ला सकती है और बिल पास हो जाता है तो तो क्या इंडिया लाइंस के 28 राजनीतिक दल एकजुट होकर लोकसभा का चुनाव और विधानसभा के चुनाव लड़ने की संभावनाएं बहुत कम हो जाती हैं ? यह 28 राजनीतिक दल लोकसभा के चुनाव में तो इकट्ठे हो सकते हैं लेकिन विधानसभा के चुनावों में यह दल अपने-अपने प्रदेशों में टीएमसी, कांग्रेस ,बाम व आप सियासी दल के साथ मिलकर शायद ही इकट्ठे चुनाव लड़ सकेंगे।
दूसरा वन नेशन वन इलेक्शन का मुद्दा तीन बड़ी अखबारों में छपी अदानी के बारे में ख़बरों को गौन करने की चल भी हो सकती है ,ऐसा कुछ राजनीतिज्ञों का कहना है। क्योंकि अगर वन नेशन वन इलेक्शन के बिल को पार्लियामेंट में पास करवाना है तो सरकार के पास दो तिहाई बहुमत होना चाहिए और साथ ही इस बिल को विभिन्न राज्यों की सरकारों द्वारा भी पास करना होगा इस सारी प्रक्रिया में काफी समय चाहिए होगा। इसलिए बलवती प्रश्न यह है कि इंडिया एलाइंस की तीसरी मीटिंग से पहले और अदानी की खबरों के आने के बाद और राहुल गांधी की प्रेस कॉन्फ्रेंस के तुरंत बाद वन नेशन वन इलेक्शन क्यों मीडिया में उछाला गया है? मुद्दा मीडिया में उछलने का मुख्य मकसद क्या हो सकता है या आने वाले समय में स्पष्ट हो जाएगा।