मोहिंद्र प्रताप सिंह राणा

हरियाणा में कांग्रेस की हतप्रभ हार को कुछ लोग हैकिंग, प्रोग्रामिंग, हेरा फेरी व EVM के कारण बता कर बगलें झांक रहे हैं तो कुछ लोग बेहतर रणनीति और राजनीति की जीत बता कर बगलें बजा रहे हैं। हरियाणा में कांग्रेस की हार प्रोग्राम्ड है या बेहतर रणनीति यह पड़ताल का विषय है। निस्संदेह, इस हार ने निश्चित तौर पर राहुल गांधी व कांग्रेस की मजबूत पकड़, जो 2024 के लोकसभा चुनाव के बाद भारतीय राजनीति पर बनी थी को ढीला कर दिया है । राहुल गांधी ने 7 सितंबर 2022 को भारत जोड़ो यात्रा, एक ऐसी विचारधारा से लड़ने के लिए शुरू की जिसे वह भारत व भारतीयों के हित में नहीं मानते हैं। इस यात्रा से राहुल गांधी ने भारतीयों के दिलों में एक जगह बनाई और एक उम्मीद बनकर भारतीय राजनीति के क्षितिज पर उभरे भी । परंतु हरियाणा के स्थानीय नेताओं के अहम, अहंकार और मैं-मैं ने राहुल गांधी की मेहनत पर पानी फेर दिया ।

बात केवल हरियाणा कांग्रेस की ही नहीं है देशभर के सभी राज्यों व केंद्र शासित प्रदेशों में कांग्रेस के झुंड बन गए हैं जो चुनाव के पर्व पर नए सूट पहन कर, अति महंगी गाड़ियों में बैठकर 24 अकबर रोड पर आते हैं और अपने विरोधी झुंड के कपड़े फाड़ते हैं और टिकट लेकर चुनाव के मैदान में उतरते हैं। जिन विरोधियों के उन्होंने 24 अकबर रोड पर कपड़े फाड़े होते हैं वह नंगे होकर कांग्रेसी उम्मीदवार को हराने में लग जाते हैं। चुनाव का पर्व खत्म होने के बाद यह झुंड जनता, समर्थक व कुछ सच्चे कांग्रेसी सिपाहियों को लात मार कर गायब हो जाते हैं। कांग्रेस के ऐसे नेता अपने जन्मदिन पर तो हजार 1500 की भीड़ इकट्ठी कर लेते हैं लेकिन राहुल गांधी के जिला स्तरीय भारत जोड़ो यात्रा में 10 से 15 लोग भी नहीं जुटा पाते हैं।

हरियाणा में कांग्रेस की हार के मुख्य करणों में से एक यह भी है। हरियाणा की हार में EVM पर किए जा रहे सवाल ठीक भी हो सकते हैं, परंतु इसका मतलब यह नहीं है कि EVM ना हो तो कांग्रेस सारे चुनाव जीत जाएगी । वास्तव में कांग्रेस 20वीं सदी के उत्तरार्द्ध तक पहुंचते-पहुंचते आजादी के दौरान गढ़ी विचारधारा व सांगठनिक महत्व से भटक गई और तदर्थवाद की राह पर चल पड़ी है। तदर्थवाद का मतलब है तत्कालिक जरूरत व लक्ष्य को पूरा करने के लिए चिन्हित नीति। सोचने वाली बात यह है, कि महाराष्ट्र-झारखंड के चुनाव के लिए दिन बचे हैं 23 लेकिन कांग्रेस के कार्यकर्ता व उम्मीदवार को पता नहीं है कि उसकी सीट पर कांग्रेस लड़ेगी या गठबंधन का उम्मीदवार । जहां सीट का मालूम है वहां टिकटार्थी को पता नहीं है कि चुनाव वह लड़ेगा या कोई और लड़ेगा। 15 दिन पहले उम्मीदवार तय होगा, चार-पांच दिन वह मुंह फुलाए लोगों को मनाएगा फिर उसके हाथ में 5 से 7 गारंटियों का पोस्टर व बैनर दे दिए जाएंगे। फंड के नाम पर किसी हुड्डा, कमलनाथ, भूपेश बघेल, डीके शिवाकुमार, अशोक गहलोत का नाम थमा दिया जाएगा। वह अपनों को कुछ फंड देगा और दूसरों को फंड के नाम रेगिस्तान की मृगतृष्णा। बस इसी मृगतृष्णा व लेन-देन में चुनाव खत्म और कांग्रेस की जीतने की संभावनाएं भी खत्म।

वास्तव में राहुल गांधी के नेतृत्व तक पहुंचते-पहुंचते कांग्रेस नाम की कोई विचारधारा या पार्टी ही नहीं बची है। यह तो मात्र चुनाव लड़ने वाले लोगों का झुंड है और हर सीट पर इस तरह के 10 से 20 झुंड हैं जिसके नेता को टिकट, मंत्री या मुख्यमंत्री शपथ का अवसर नहीं मिला तो पूरे का पूरा झुंड दूसरे दल में शामिल हो जाएगा।ऐसे सैकड़ों ही नहीं हजारों-हजार उदाहरण हैं ,हिमाचल प्रदेश व हरियाणा इसका ताजा-तरीन और जीवंत उदाहरण है।

विडंबना देखिए कांग्रेस के 90 से 95% लोग 370 हटाने का समर्थन करते हैं, कॉमन सिविल कोड के पक्ष में हैं, पाकिस्तान विरोधी, हिंदुत्व के समर्थक, जातिगत आरक्षण के विरोधी हैं। कांग्रेस का नेतृत्व खुद सॉफ्ट हिंदुत्व की हामी भरता रहा है। अब जो नेता या कार्यकर्ता खुद ही पार्टी की विचारधारा से सहमति नहीं रखता है वह दूसरों को विचारधारा के बारे में क्या समझाएगा? इस स्थिति में उसकी रणनीति एक ही है टिकट लो चुनाव जीतो, जीत गए तो अपने को सेट करो, खुद सेट हो गए तो बच्चों को सेट करो। अब बच्चों को सेट करने की जगह या सीट पर अगर अपनी पार्टी का ही समर्थक बेहतर योग्यता वाला भी है तो उसका सर काट दो ।

दूसरी ओर भाजपा है वह यथार्थवाद की नीति पर चलती है। यथार्थवाद मतलब “शक्ति संतुलन सिद्धांत” राजनीति में शक्ति संतुलन सिद्धांत का अर्थ है की सत्ता तक पहुंचने में जो भी बाधा आए उसको साम, दाम, दंड- भेद की नीति से हटाओ और सत्ता पर काबिज हो जाओ। हरियाणा में भाजपा की जीत में यह नीति एकदम सफल रही है और इस जीत ने राहुल गांधी की छवि और कांग्रेस के यूफोरिया को जबरदस्त ठेस पहुंचाई है।

क्या कांग्रेस आज गांधी-नेहरू की अहिंसा, सत्यवादिता , धर्मनिरपेक्षता, अपरिग्रह (जरूरत से ज्यादा चीजें इकठ्ठी न करना), गांधीवाद और राहुल गांधी की मोहब्बत की दुकान के प्रति उतनी ही समर्पित व संकल्पित है जितनी भाजपा हिंदुत्व के प्रति? कांग्रेस का तदर्थवाद, आनन-फानन दी गारंटियों और जातियों का ध्रुवीकरण तात्कालिक रूप से कुछ वोट प्रतिशत बढ़ा सकता है। हो सकता है, एकाध बार सत्ता में भी पहुंचा दे परंतु पुन स्थापित होने के लिए मजबूत संगठन, विचारधारा की तेज धार, प्रशिक्षण, जनता का चंदा ही एकमात्र विकल्प है ।दुर्भाग्यवश कांग्रेस अभी इस विकल्प से कोसों दूर खड़ी है

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