अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत का नाम रौशन कर चुका व्यक्ति हमारे प्रदेश के जिला मण्डी के एक छोटे से गांव डल में किराए टूटे फूटे मकान में गुमनामी का जीवन जी रहा है ।उसकी हालत बहुत ही दयनीय है । इनका नाम अमर स्नेह है और यह हमेशा दूसरों के लिए सोचने वाला बहुचर्चित फिल्म निर्देशक, अभिनेता, कवि, लेखक और व्यंग्यकार है।
सामाजिक मुद्दों पर उनकी कहानियां वह व्यंग्य उन्हें मुंशी प्रेमचंद और हरिशंकर परसाई जी के समकक्ष खड़ा करती हैं। उनकी लेखनी उन्हें भीड़ से अलग दिखाती है। अमर स्नेह अनगिनत पत्र पत्रिकाओं में अपनी लेखनी की छाप छोड़ चुके हैं। हिंदुस्तान का कोई भी बड़ा अखबार या पत्रिका नहीं होगी जिन्होंने उनकी रचनाओं को न छापा हो। इधर की दस वर्षों की लगभग हर रचना में हिमाचल की गहरी छाप रहती है। सैंकड़ों कहानियां, व्यंग्य और कविताएं लिखने वाले अमर स्नेह की कलम व्याकुल है लेकिन उनके हाथ कांप रहे हैं।
कोरोनाकाल के बाद अमर स्नेह जी पूरी तरह से बेरोजगार हो चुके हैं और इसी कारण अस्वस्थ से दिखते हैं। उनकी हालत यह हो गई है कि अब कमरे का किराया निकालना भी बेहद मुश्किल हो गया है और वह दाने -दाने का मोहताज हो गया है।
हिमाचल सरकार निराश्रितों को आश्रय दे रही है। सरकार से गुजारिश है कि गुमनामी में जी रहे अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त कलाकार अमर स्नेह को भी सुखाश्रय प्रदान करें जो अपनी कलम के जरिए हिमाचल का नाम भी चमका रहे हैं।
पिछले छह दशकों से नाटक, टेलिफिल्म्स और रंगमंच के पुरोधा आजकल एकाकी जीवन बिताते हुए समस्त जीवन संचालन के सभी संसाधनों से वंचित हैं और असहाय हैं। जीवनयापन बहुत ही कठिन दौर से गुजर रहा है यदि इस समय इस समर्पित रचनाकार, कलमकार और सुप्रसिद्ध फिल्म निर्देशक को कोई सहायता या अवसर किसी भी रूप में नहीं मिलता है तो यह दुर्भाग्यपूर्ण अंत होगा।
अमर स्नेह एक संक्षिप्त परिचय:
एक अभिनेता, निर्देशक और लेखक के रूप में रंगमंच, रेडियो, टेलीविजन, फिल्म और प्रिंट मीडिया से जुड़े। रंगमंच: उन्होंने अपने करियर की शुरुआत एक बाल कलाकार के रूप में 1957 में एक टूरिंग थिएटर नटराजकुंज से की, श्री संतोषीजी के अधीन काम किया। रंगीलिका, प्रेम पत्र, जननी और पखंड विदंबन में अभिनय किया, उनके करामाती प्रदर्शन ने उन्हें एक बड़ा नाम दिया
अमर स्नेह प्रायोगिक नाट्य कंपनी “थिएटर लैब” के संस्थापक हैं। उन्होंने लगभग 12 वर्षों तक निर्देशक के रूप में काम किया। उन्होंने सत्रह नाटकों का लेखन, निर्देशन किया, कुछ लोकप्रिय कृतियाँ ‘शून्य’, कविता कहानी के बीच’, ‘परवर्तन’ हैं, इसके अलावा मूल नाटकों के अलावा उन्होंने लुल्गी पिरांडेलो के छह पात्रों को निर्देशित किया। एक लेखक की खोज और गोडोट के लिए सैमुअल बेकेट की प्रतीक्षा। स्नेह थिएटर लैब के लिए भी नियमित नाटकों का निर्देशन कर रहे थे, उनमें से कुछ हैं ‘आषाढ़ का एक दिन’ (मोहन राकेश), ‘सूरदास’ (बीरेंद्र नारायण द्वारा), हनुश ‘(भीष्म साहनी द्वारा)।’ रस गंधर्व (मणि मधुकर)। ‘स्याह धूप’ और ‘राजा चाहिए’, विराम पर (अमर स्नेह द्वारा)। गीत और नाटक डेविसन के लिए भारत सरकार द्वारा स्याहधूप को खरीदा गया था और उनके नाटक लोक मल्हार को एशिया 72 के लिए लिया गया था, इसका दैनिक शो विदेशियों और थिएटर प्रेमियों हजारों संख्या में आकर्षित करते थे।
टेलीविजन: वह देश में टेलीविजन की स्थापना के बाद से स्वतंत्र अभिनेता, लेखक और निर्देशक के रूप में काम कर रहे हैं और पिछले पैंतीस वर्षों से नियमित रूप से अभिनय कर रहे हैं। कुछ लोकप्रिय नाटक टेली फिल्में टेली सीरीज आखें, गोदान, कफन, टू माइनस टू, सूरदास , बीना दिवारों का घर, गोरा बादल, ठहारा हुआ पानी, और धारावाहिक आसरा, इंद्र धनुष। जौहर के गोहर। माटी के रंग। सूरदास को अन्य स्टेशनों के अलावा मुंबई दूरदर्शन द्वारा चालीस से अधिक बार प्रदर्शित किया गया था।
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गूगल सर्च पर अमर स्नेह की रचनाएं
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पर भी पढ़ सकते हैं।
यह लेख मेरे मित्र हेम ठाकुर , एडवोकेट मण्डी जिला कोर्ट ,ने अपने फेसबुक पेज पर लिखा है। यद्यपि मैं भिन्न सीमाओं के कारण अमर स्नेह की सभी उपलब्धियों को अक्षरश नहीं लिख पाया हूं।उसके लिए क्षमाप्रार्थी हूं।
मैं, जीऊं भी तो कैसे
मुझे जीने के लिए कोई नया चेहरा दे दो
मैं, गिरा दूर बहुत दूर खुद से ही ठोकर खाकर
मुझे कोई छोड़ तो दे, मेरे ही पास लाकर
– अमर स्नेह