प्रकृति ने पृथ्वी की संरचना इस तरह से की है कि इस पर मौजूद हर पेड़-पौधे, वनस्पति ,पहाड़-घाटी, जीव-जंतु, जानवर, कीड़े-मकोड़े सब एक दूसरे पर आश्रित भी हैं और सहायक भी ।इन सभी में जब तक संतुलन है तो सबका जीवन सहज है और संतुलन बिगड़ते ही संकट। पृथ्वी पर मौजूद सभी जीव व प्राणियों में मनुष्य सबसे बुद्धिमान और सामर्थ्यवान है इसलिए मनुष्य का दायित्व है कि वह इन सब में सामंजस्य बैठाए और धरा पर विद्यमान सभी को धरोहर समझे। जो जीव-जन्तु व जानवर खुद को अभिव्यक्त नहीं कर सकते हैं उनके प्रति संवेदनशील रहे उनको सहेजें और संवारे। 

    आज मनुष्य में मनुष्यता का पतन होता जा रहा है। 

मनुष्य अपनी जरूरतों और लालच को पूरा करने के दुष्चक्र में अपने सहायक प्राणियों के संहार में  जुटा हुआ है।  विशेषकर जानवरों के प्रति उसकी क्रूरता व संवेदनहीनता बढ़ती जा रही हैं। मनुष्य भूलता जा रहा है कि वह भी जीवित प्राणी हैं। विगत 4 दशकों में मनुष्य पालतू पशु, गाय ,भैंस व बैल के प्रति अति क्रूर हो गया है । वह इन्हें अनुपयोगी होते ही रात के अंधेरे में कहीं दूर लावारिस ,निराश्रित,  बेसहारा ,आवारा छोड़ आता है।

देश में पांच लाख निराश्रित पशु व तीन करोड़ कुत्ते हैं।

राष्ट्रीय पशु जनगणना की रिपोर्ट के अनुसार देश में 5000000 से ज्यादा आवारा पशु और तीन करोड से ज्यादा आवारा कुत्ते हैं। आवारा पशु व कुत्ते नागरिकों के लिए ऐसा खतरा बन गए हैं जो कभी भी उनकी जान-माल को नुकसान पहुंचा सकते हैं। एक तरफ तो आए दिन कुत्तों के काटने और पशुओं द्वारा राहगीर को घायल करने की घटनाएं होती हैं और दूसरी ओर पशुओं व कुत्तों के साथ अमानवीय क्रूरता व संवेदनहीनता के मामले सामने आते हैं ।

         जनवरी 2020 की राष्ट्रीय पशु संगणना की प्रक्रिया में देश के 660000  गांव और शहरों के 89000 वार्डों को शामिल किया गया। आवारा पशुओं की सबसे ज्यादा संख्या राजस्थान, उत्तर प्रदेश व मध्य प्रदेश में है। हिमाचल प्रदेश में  इस संगणना के अनुसार 36311 आवारा पशु हैं। 

बेसहारा पशुओं चर्चा  तो खूब होती है परन्तु हल शून्य।  आवारा पशुओं की बढ़ती समस्या को लेकर ग्राम पंचायत, नगर निगम, नगर परिषद से लेकर विधानसभा और  संसद तक में चर्चाएं हुई है ।परंतु सभी स्तर की चर्चाएं अभी तक मात्र चाय पर चर्चा तक ही सीमित है ।अर्थात समस्या का समाधान नहीं हो पाया है। हर दिन आवारा पशुओं में वृद्धि हो रही है । जहां आवारा पशुओं के चलते शहरी व ग्रामीण क्षेत्रों के लोगों को भारी असुविधा हो रही है वहीं बेजुबान पशुओं की भी दुर्गति हो रही है।  शहरी क्षेत्रों में आवारा पशु अपना पेट भरने के लिए कूड़े के ढेरों पर आश्रित हैं। वह प्लास्टिक सड़ी- गली सब्जी, कागजों व कूड़े से पेट भरते हैं जिसके चलते वह अनेकों पीड़ादायक व असहनीय बीमारियों से जूझते हुए मर रहे हैं।  20 से 30% शहरी आवारा पशु मोटर कार की टक्कर से हड्डी पसली तुड़वा कर सड़क के बीच या सड़क के किनारे पीड़ा से करहाते रहते हैं। 
ग्रामीण क्षेत्रों में यह आवारा पशु किसानों की फसलों को नुकसान पहुंचाते हैं , किसान मजबूरी में इन जानवरों को डंडों से पीट-पीटकर भगाते हैं। डंडों के प्रहार से कई बार जानवर बुरी तरह से घायल हो जाते हैं। कई पशुओं की भागते हुए या डंडों की पिटाई से टांग व हड्डी पसली टूट जाती है। जो बैल और गाय- भैंस कभी किसान की शान हुआ करते थे आज वही सबसे बड़ी परेशानी बन चुके हैं। 


    लगातार आवारा पशुओं की संख्या बढ़ रही है।
किसान व पशुपालक को खास किस्म की गाय-भैंस चाहिए जो उसे आर्थिक तौर पर लाभदायक हो। वह दूसरी किस्म के पशुओं को छोड़ देता है। जो गाय दूध नहीं देती है उसे भी बाहर की हांक देता है ।आवारा पशुओं में बैलों की संख्या बढ़ती जा रही है । जो बैल कभी किसान का खेत जोतता था और उसका बोझा ढोता था वह कृषि की नई तकनीक आने के बाद उसके लिए बोझ बन गया है।

 केंद्र व राज्य सरकार इस समस्या से निजात पाने के लिए क्या कदम उठा रही हैं। 
राष्ट्रीय स्तर पर केंद्र सरकार ने राष्ट्रीय पशुपालन कल्याण बोर्ड का गठन किया है। यह बोर्ड उन स्वयंसेवी संस्थाओं को आर्थिक मदद देता है जो छुट्टा पशुओं की देखभाल करते हैं  और  उन्हें आश्रय देते हैं। एडब्ल्यूबीआई पशुओं के कल्याण से जुड़ी पंजीकृत संस्थाओं को गौशाला, चारा, एंबुलेंस ,घायल व बीमार पशुओं के इलाज के लिए आर्थिक मदद देता है । 

विभिन्न राज्य सरकारों ने भी अपने स्तर पर निराश्रित पशुओं के लिए कई योजनाएं चलाई हैं । मध्य प्रदेश में मुख्यमंत्री गौ सेवा योजना, छत्तीसगढ़ में गोदान न्याय योजना, हिमाचल प्रदेश में गौ संवर्धन आयोग गौ संरक्षण बोर्ड बनाया है। हिमाचल में राष्ट्रीय पशु कल्याण बोर्ड की तर्ज पर राज्य पशु कल्याण बोर्ड का भी गठन पिछली सरकार ने किया था। लेकिन उसकी कभी कोई मीटिंग नहीं हुई। पूर्व में जयराम सरकार ने छुट्टा पशुओं की देखभाल के लिए धन एकत्रित करने के लिए शराब की प्रति बोतल पर पर सैस लगाया था। सैस से अर्जित धन कहां गया सुखविन्द्र सिंह ठाकुर की सरकार  बताना चाहिए कि यह पैसा बेजुबान  लाचार  जानवरों का आश्रय व चारा बना या तत्कालीन सरकार के चहेते लागों के स्वयंसेवी संगठन की जुगाली।


सरकारों के प्रयास  सराहनीय हैं परन्तु धरातल पर अदृश्य हैं।
केंद्र व राज्य सरकारों के प्रयास विधानसभा की चर्चाओं व प्रैसवार्तों में तो सराहनीय दिखाई देते हैं परंतु खेत-खलियान  व सड़कों पर डटे गौजातीय झुंड व गौशाल में सड़ते-मरते पशु सरकार के हर दावे को नकारते हैं ।बजट सत्र में घुमारवीं के विधायक राजेश धर्मानी ने अपने क्षेत्र में एक गौशाला में रखे गौजातिए पशुओं की मार्मिक स्थिति का वर्णन किया था यह वर्णन पूर्व की सरकार द्वारा किए गए पशु कल्याण के दावों को पूरी तरह से झूठलाता है। विभाग के अधिकारी ने ग्राम परिवेश के एक प्रश्न के उत्तर में बताया की नवनियुक्त सरकार को राज्य पशु कल्याण बोर्ड गठन करने के लिए प्रस्ताव भेज दिया है। सुखविन्द्र सिंह ठाकुर की सरकार ने हाल ही में निराश्रित पशुओं के लिए एक हेल्पलाइन नंबर 1100 जारी किया है।  कोई भी व्यक्ति इस नंबर पर कॉल करके आवारा पशुओं के बारे में जानकारी दे सकता और विभाग उस पर कार्यवाही  करते हुए निराश्रित पशुओं को आश्रय उपलब्ध करवाएगी।

   आवारा कुत्तों को भी आश्रय दे सुक्खू की सरकार 
गौ जातीय पशुओं के अतिरिक्त छोटे जानवरों में कुत्तों की भी दुर्दशा है । गौ जातीय पशुओं की तरह सरकार ने अभी तक आवारा कुत्तों के लिए कोई भी शेल्टर हाउस नहीं बनाए । यद्यपि प्रदेश में कुछ संवेदनशील लोग स्वयंसेवी संस्था बनाकर यह फिर  एकल प्रयास से

आवारा कुत्तों की देखभाल का बीड़ा उठा रहे हैं। परंतु इनको अभी तक सरकार से अपेक्षित सहयोग नहीं मिल पा रहा है सुक्खू की सरकार बेसहारों की सरकार की छवि  बना चुकी है। उनकी सरकार से स्वयंसेवी संस्थाओं, संगठन व एकल प्रयासकर्त्ता को उम्मीद है कि यह सरकार आवारा कुत्तों की दुर्दशा को सुधारने के लिए शेल्टर हाउस बनाने व  उनकी देखभाल  के लिए आर्थिक मदद करेगी। 

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