एचपीएनएलयू, शिमला में चौथा न्यायमूर्ति वी.आर. कृष्ण अय्यर वार्षिक विधि व्याख्यान संपन्न

मोहिंद्र प्रताप सिंह राणा/ ग्राम परिवेश

शिमला : हिमाचल प्रदेश राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय (एचपीएनएलयू), शिमला में “प्रस्तावना और मूल संरचना सिद्धांत: न्यायिक व्याख्या और संवैधानिक प्रगति” विषय पर आयोजित चौथा न्यायमूर्ति वी.आर. कृष्ण अय्यर वार्षिक विधि व्याख्यान न्यायिक गहराई, संवैधानिक विमर्श और बौद्धिक दृष्टिकोण का सशक्त संगम सिद्ध हुआ। यह व्याख्यान भारत के सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश एवं एचपीएनएलयू के विशिष्ट प्रोफेसर माननीय न्यायमूर्ति संजीव खन्ना द्वारा दिया गया।

कार्यक्रम की अध्यक्षता हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश एवं विश्वविद्यालय के कुलाधिपति न्यायमूर्ति गुरमीत सिंह संधावालिया ने की। इस अवसर पर न्यायमूर्ति विवेक सिंह ठाकुर, न्यायमूर्ति अजय मोहन गोयल, न्यायमूर्ति संदीप शर्मा, न्यायमूर्ति रंजन शर्मा, न्यायमूर्ति बिपिन चंद्र नेगी, न्यायमूर्ति राकेश कैंथला, न्यायमूर्ति जिया लाल भारद्वाज और न्यायमूर्ति रोमेश वर्मा सहित न्यायपालिका के अनेक गणमान्य सदस्य, वरिष्ठ अधिवक्ता, विधि शिक्षाविद् और विद्यार्थी उपस्थित रहे।
न्यायमूर्ति खन्ना का संबोधन: प्रस्तावना संविधान की आत्मा

अपने सारगर्भित व्याख्यान में न्यायमूर्ति संजीव खन्ना ने संविधान की प्रस्तावना को भारतीय लोकतंत्र की “आत्मा और आधारशिला ” बताया। उन्होंने कहा कि प्रस्तावना के आरंभिक शब्द — “हम, भारत के लोग” — यह उद्घोष करते हैं कि संविधान की सर्वोच्चता जनता की सामूहिक इच्छा से उद्भूत है। उन्होंने रेखांकित किया कि प्रस्तावना केवल एक प्रारंभिक वक्तव्य नहीं, बल्कि भारतीय गणराज्य के नैतिक, सामाजिक और दार्शनिक दर्शन की दिशा-दर्शिका है।

उन्होंने कहा कि “मूल संरचना सिद्धांत” भारतीय संविधान की स्थायित्व और लचीलापन दोनों का प्रतीक है। यह सिद्धांत उस मर्यादा का निर्धारण करता है जिसके पार कोई भी संशोधन संविधान की आत्मा को नहीं बदल सकता। न्यायमूर्ति खन्ना ने सुझाव दिया कि विधि शिक्षा में इस सिद्धांत पर एक समर्पित विषय के रूप में अध्ययन अनिवार्य किया जाना चाहिए, जिससे भावी विधिवेत्ताओं में संविधान के प्रति गहन संवेदनशीलता विकसित हो।

विभिन्न देशों के संवैधानिक न्यायालयों के तुलनात्मक दृष्टिकोणों का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा कि भारतीय संविधान स्वभावतः समाजवादी, जनोन्मुख और प्रगतिशील दस्तावेज़ है, जो व्यक्ति और समाज के बीच संतुलन स्थापित करता है।

न्यायमूर्ति खन्ना ने न्यायमूर्ति वी.आर. कृष्ण अय्यर के न्यायशास्त्र को श्रद्धांजलि देते हुए कहा कि उन्होंने भारतीय न्यायपालिका में मानवता और करुणा के स्वर को सशक्त किया। उनका दृष्टिकोण यह प्रमाणित करता है कि न्याय केवल विधि नहीं, बल्कि विवेक और संवेदना का संगम है।

न्यायमूर्ति संधावालिया का अध्यक्षीय उद्बोधन

अध्यक्षीय भाषण में न्यायमूर्ति गुरमीत सिंह संधावालिया ने न्यायमूर्ति कृष्ण अय्यर के न्यायिक योगदान को स्मरण करते हुए कहा कि उन्होंने अनुच्छेद 21 के माध्यम से जीवन और स्वतंत्रता के अधिकार को मानवीय गरिमा के विस्तार का माध्यम बनाया। उन्होंने जमानत न्यायशास्त्र, जेल सुधारों और वंचित वर्गों के अधिकार संरक्षण में उनके ऐतिहासिक दृष्टिकोण को भारतीय विधि परंपरा का मील का पत्थर बताया।

डिजिटल लाइब्रेरी का शुभारंभ — विधि शिक्षा में तकनीकी प्रगति की नई दिशा

इस अवसर पर न्यायमूर्ति संजीव खन्ना ने विश्वविद्यालय की अत्याधुनिक डिजिटल लाइब्रेरी का उद्घाटन भी किया। यह लाइब्रेरी हाइब्रिड आरएफआईडी प्रणाली से सुसज्जित है, जो संसाधनों के स्वचालित प्रबंधन, पुस्तक चेक-इन और चेक-आउट की त्वरित सुविधा तथा सुरक्षित प्रवेश-निकास नियंत्रण प्रणाली से लैस है। यह विश्वविद्यालय की डिजिटल रूपांतरण यात्रा में एक ऐतिहासिक कदम है, जो शिक्षकों और छात्रों दोनों के लिए शैक्षणिक संसाधनों की सहज उपलब्धता सुनिश्चित करेगा।

मध्यस्थता पर विशेष व्याख्यान

माननीय न्यायमूर्ति खन्ना ने विश्वविद्यालय के स्नातक छात्रों को मध्यस्थता के विशेष संदर्भ में वैकल्पिक विवाद समाधान (ADR) के उभरते महत्व विषय पर भी संबोधित किया। उन्होंने कहा कि आधुनिक न्यायिक प्रणाली में मध्यस्थता भविष्य का सबसे प्रभावी विवाद समाधान तंत्र बनने जा रही है। उन्होंने NALSA द्वारा विकसित 40 घंटे के प्रशिक्षण मॉड्यूल का उल्लेख करते हुए छात्रों को इस दिशा में सक्रिय भागीदारी हेतु प्रेरित किया।

आभार और समापन

विश्वविद्यालय की कुलपति प्रो. (डॉ.) प्रीति सक्सेना ने अतिथियों का स्वागत करते हुए कहा कि यह व्याख्यान न केवल संवैधानिक विमर्श का विस्तार है, बल्कि न्यायिक और शैक्षणिक जगत के बीच सेतु निर्माण का प्रयास भी है। डॉ. संतोष कुमार शर्मा, डीन (अकादमिक), ने धन्यवाद ज्ञापन प्रस्तुत किया।

संविधान, न्याय और शिक्षा का त्रिवेणी संगम

न्यायमूर्ति संजीव खन्ना का यह व्याख्यान, डिजिटल लाइब्रेरी का शुभारंभ और वार्षिक व्याख्यान श्रृंखला का सफल आयोजन — हिमाचल प्रदेश राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय, शिमला की शैक्षणिक उत्कृष्टता, संवैधानिक चेतना और न्यायिक संवाद को नए आयाम प्रदान करता है। यह आयोजन इस तथ्य का साक्षी है कि जब न्याय, शिक्षा और संवेदना एक सूत्र में बंधते हैं, तभी लोकतंत्र अपनी सच्ची गरिमा में खिलता है।

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