कर्नाटका में कांग्रेस सरकार की ताजपोशी वहां की राजनैतक ,समाजिक व 2024 के लोकसभा चुनावों को ध्यान में रखते हुए शनिवार को एक भव्य समारोह में हो गई। प्रजातांत्रिक सरकारों की ताजपोशी को राजशाही भव्यता देने की परंपरा भाजपा ने मोदी के समय में शुरू की और अब अन्य क्षेत्रीय व राष्ट्रीय दल भी इस राजशाही भव्यता के दलदल में सन होते नजर आ रहे हैं। स्वतंत्रता की लड़ाई को धोती, लंगोटी और टोपी से लड़ने वाली कांग्रेस ने भी कर्नाटक में कांग्रेस सरकार की ताजपोशी में एक राजशाही भव्यता का रंग जमाने के लिए राष्ट्रीय राजनीति के विभिन्न रंगो व अंगों को भरा और दक्षिण भारत से दिल्ली के सिंहासन पर बैठने के चक्रव्यूह की रचना रची है । इतिहास गवाह है कि राजा रामचंद्र से लेकर अभी तक उत्तर-पश्चिम भारत के राजे, महाराजे व सम्राट दक्षिण भारत में अपना प्रभुत्व बनाते रहे या बनाने का प्रयास करते रहे हैं। यह पहला अवसर है कि सत्ता के हाशिए पर पड़ी कांग्रेस दक्षिण भारत से उत्तर भारत पहुंचने की उल्टी गंगा बहाना का भागीरथी प्रयास कर रही है। सभी राजनीतिक पण्डित, प्रबुद्ध लोग, सियासी विद्वान व चाणक्य यहां तक, भाजपा भी ,कर्नाटक में कांग्रेस की प्रचंड जीत को कांग्रेस के लिए संजीवनी मान रही है।
बड़ा प्रश्न यह है कि क्या कांग्रेस की कर्नाटक जीत राष्ट्रीय परिपेक्ष में भाजपा को हराने की राह बना सकती है? उत्तर हां भी है और नहीं भी। राष्ट्रीय सियासी पटल पर कई तरह के रंग है। यूपी में लाल नीला हरा पीला, बिहार में हरा सफेद नीला, बंगाल में हरा सफेद केसरी, दक्षिण भारत में गुलाबी, काला और लाल रंगों की छटा है। इन अलग-अलग रंगों को इंद्रधनुषी छटा में उकेरना कांग्रेस की दूरगामी सोच और सियासी चतुराई पर निर्भर करता है। अगर कांग्रेस कर्नाटक जीत की मदहोशी में रंग भरती है तो यह कीचड़ बन जाएगा और कीचड़ में कमल खिलता है ।
कर्नाटका की जीत को अगर कांग्रेस पार्टी 2024 के चुनावों के लिए एक सीख के रूप में लेती है और राष्ट्रीय परिपेक्ष में इसे राजनीतिक परिस्थितियों के अनुरूप थोड़ा-बहुत जोड़-तोड़ करके तालमेल बैठाती तो दुनिया की सबसे बड़े राजनीतिक दल भाजपा को गंभीर चुनौती दे सकती है।
दक्षिण भारत में के पांच राज्य में 129 लोकसभा सीट हैं और पांचों राज्यों में अलग-अलग राजनीतिक दलों का शासन है। लेकिन यहां की समजिक संरचना में दलित, आदिवासी,अल्पसंख्यक और भाषा सियासत के केंद्र बिंदु हैं। शिव-रामैया की जोड़ी ने खरगे के नेतृत्व में समाज व सियासत के इन्ही कमजोर धागों कसकर भाजपा की विचारधारा पर चतुराई से प्रहार किया और सफलता अर्जित की। इसलिए कांग्रेस का कर्नाटक मॉडल राष्ट्रीय परिपेक्ष में सफल होने जोरदार संभावना है।
दक्षिण भारत के अलावा महाराष्ट्र ,बिहार, पश्चिम बंगाल बंगाल ,पंजाब, दिल्ली, छत्तीसगढ़ , मध्य प्रदेश, राजस्थान और झारखंड की 229 सीटें हैं। जहां कांग्रेस की सूझबूझ,सहजता और सियासी परिपक्वता भाजपा को पीछे धकेल सकती है, अर्थात 14 राज्य में 358 सीटों पर कांग्रेस व अन्य विपक्षी दल भाजपा को तड़ित युद्ध में पछाड़ सकते हैं। इन सीटों पर ना तो एक क्षेत्र नेता का मुद्दा है ना ही मुफ्त सौगातों का।
यहां के मुद्दे और विवाद समझने को भाजपा विगत 9 वर्षों से असहज रही है और रहेगी भी क्योंकि यहां पर विचारधाराओं का जबरदस्त संघर्ष है। कांग्रेस ने कर्नाटक जीत से कितनी सीख ली है इसका पता समय आने पर लगेगा परंतु भाजपा ने कर्नाटक हार से निश्चित तौर पर सबक सीखा है और 2024 की रणनीति को नया रंग रूप देने में जुट गई है। कांग्रेस की कर्नाटक जीत ने 2024 के चुनाव को दिलचस्प मोड़ पर खड़ा कर दिया है।