समीकरणों की गूढ़ बिसात पर कांग्रेस का निर्णायक दांव, सैनी को भी दिया मान।

मोहिंद्र प्रताप सिंह राणा/ग्राम परिवेश

पटना, बिहार की सियासत ने आज एक निर्णायक करवट ली है। लंबे समय से जारी कयासों और अंदरूनी खींचतान के बीच महागठबंधन ने आखिरकार राजद नेता तेजस्वी यादव को सर्वसम्मति से मुख्यमंत्री पद का चेहरा घोषित कर दिया है। जातीय संतुलन, सामाजिक समीकरण और सभी घटक दलों की राजनीतिक हिस्सेदारी का सूक्ष्म विश्लेषण करने के बाद यह निर्णय लिया गया। इसी क्रम में मुकेश सैनी को उपमुख्यमंत्री पद की जिम्मेदारी सौंपे जाने के साथ अन्य सहयोगी दलों के प्रभावशाली नेताओं को भी उपमुख्यमंत्री के रूप में स्थान देने की घोषणा की गई है।

पिछले कुछ दिनों से मीडिया और सोशल मीडिया पर महागठबंधन की “ढीली पड़ती गांठों” को लेकर खूब अटकलें लगाई जा रही थीं। भाजपा इन खबरों को हवा देकर अपने मुद्दाहीन राजनीतिक परिदृश्य को ढकने का भरसक प्रयास कर रही थी। लेकिन इन सभी अटकलों पर विराम उस समय लग गया जब राहुल गांधी ने बिहार पहुंचते ही सियासत के सूत्र अपने हाथों में ले लिए। उन्होंने सभी घटक दलों के नेताओं से अलग-अलग और सामूहिक संवाद कर *विश्वास और सहमति की वह डोर पुनः मजबूत कर दी, जो हाल के दिनों में ढीली पड़ती दिखाई दे रही थी।

इसी क्रम में राहुल गांधी का झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) के वरिष्ठ नेता शिबू सोरेन से संवाद कर उन्हें बिहार चुनाव में अपनी अलग दावेदारी न करने के लिए सहमति में लेना, उनकी राजनीतिक परिपक्वता और समन्वय कौशल की बानगी** माना जा रहा है। इस कदम से महागठबंधन के भीतर संभावित असंतोष को समय रहते शांत कर लिया गया और बिहार की साझा लड़ाई को एकजुट स्वर प्रदान किया गया।

सूत्रों के अनुसार राहुल गांधी ने गठबंधन की रणनीति को केवल चुनावी मोर्चे तक सीमित न रखकर सामाजिक न्याय, आर्थिक समानता और संघीय संतुलन के व्यापक परिप्रेक्ष्य में जोड़ा है। उन्होंने यह स्पष्ट किया कि बिहार का चुनाव केवल सत्ता परिवर्तन का नहीं बल्कि राजनीतिक संस्कृति में शुचिता और संवेदनशीलता की पुनर्स्थापना का संघर्ष होगा।

इस घोषणा के साथ ही महागठबंधन ने एक ओर जहां अपने संगठनात्मक एकजुटता का प्रदर्शन किया है, वहीं दूसरी ओर भाजपा खेमे में *रणनीतिक असहजता* बढ़ती दिख रही है। राजनीतिक पर्यवेक्षकों का मानना है कि राहुल गांधी के सीधे हस्तक्षेप और शिबू सोरेन के साथ संवाद जैसी समझदारी भरी पहल ने महागठबंधन को न केवल नई ऊर्जा दी है, बल्कि विपक्षी खेमे के लिए एक सशक्त चुनौती भी तैयार की है।

राहुल गांधी की यह रणनीति केवल बिहार की सीमाओं तक सीमित नहीं है; इसे व्यापक रूप में राष्ट्रीय विपक्षी एकता की पुनर्संरचना के संकेत के रूप में देखा जा रहा है। जिस कुशलता से उन्होंने विभिन्न क्षेत्रीय दलों के बीच संवाद साधा और परस्पर असहमति को समन्वय में बदला, वह उनकी राजनीतिक परिपक्वता और रणनीतिक समझ का परिचायक है। राहुल गांधी का यह कदम न केवल बिहार में कांग्रेस की सक्रिय केंद्रीय भूमिका को स्थापित करता है, बल्कि यह संदेश भी देता है कि विपक्ष अब *साझा विचारधारा और साझा जिम्मेदारी के आधार पर आगे बढ़ना चाहता है। आने वाले महीनों में बिहार महागठबंधन का यह मॉडल, देशभर में विपक्षी एकजुटता के प्रयोगशाला मॉडल के रूप में उभर सकता है।

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