विपक्ष यूनिटी का बनेगा मंच या मोदी का विपक्ष भेदने का अमोघ पंच
राहुल गांधी को कोर्ट द्वारा अपराधी ठहराना और लोकसभा सचिवालय द्वारा उन्हें लोकसभा की सदस्यता के लिए अयोग्य घोषित करना, 1975 की एक ऐसी ही मिलती- जुलती घटना का स्मरण करवा रहा है। इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने राज नारायण की रिट याचिका पर तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी का चुनाव रद्द घोषित कर दिया। इस घटना ने तिनकों की तरह बिखरे विपक्ष को एकजुट होने का मौका दिया जिसे विपक्ष ने भुनाया। तत्कालीन प्रधानमंत्री ने देश के बिगड़ते हालात को संभालने के लिए आपातकाल लगा दिया । परंतु उनके इस कदम से आम जनमानस अक्रोषित हो उठा जो मृतप्राय विपक्ष को संजीवनी साबित हुई।
आज संतालीस वर्षों के बाद इतिहास दोहराया जा रहा है। यद्यपि राजनीतिक परिस्थितियां भिन्न है परंतु घटनाक्रम लगभग एक जैसा होता जा रहा है। राजनीतिक परिस्थितियों इसलिए भिन्न हैं कि 1975 की घटना लोकसभा चुनाव के बाद घटी थी और 2023 में यह घटना लोकसभा चुनाव से पहले घटी है। तब कांग्रेस पार्टी का काडर इतना मजबूत नहीं था जितना भाजपा का आज है। तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी बहुत मजबूत नेता थी और आज मोदी भी सशक्त नेता है।उस समय कांग्रेस की 18 राज्यों में सरकारें थी और भाजपा की 19 राज्यों सरकारें है। तब आंध्र प्रदेश, कर्नाटका , वेस्ट बंगाल, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र व यूपी जैसे बड़े राज्य कांग्रेस के पास थे परंतु आज बंगाल, आंध्रा प्रदेश, बिहार ,तेलंगाना, तमिलनाडु जैसे बड़े राज्य विपक्षी दलों के हाथ में हैं और महाराष्ट्र में सरकार तो भाजपा- शिवसेना की है परंतु जनमानस में अपेक्षित पैठ नहीं लगती है। आज विपक्ष में से ज्यादा मजबूत नेता हैं।
राजनीति के धुरंधर नरेंद्र मोदी का गेम प्लान
आज की राजनीति के धुरंधर नरेंद्र मोदी विपक्ष की इस मजबूती को भेदने के लिए राहुल गांधी की डिसक्वालीफिकेशन को अचूक अस्त्र बनाने कुव्वत रखते हैं। जिस तरह से विपक्ष मोदी-अडानी मामले पर एकजुट नजर आने लगा था उसको भेदने के लिए भाजपा ने सूरत कोर्ट के फैसले को एक अवसर में बदलने की रणनीति बना ली है। राहुल गांधी की डिसक्वालीफिकेशन विपक्ष की एकजुटता को वक्त से पहले छिन्न-भिन्न कर सकती है अगर महत्त्वाकांक्षी विपक्षी नेता राहुल गांधी के साथ एकजुट खड़े नहीं होते हैं। भाजपा विपक्षी नेताओं की महत्त्वाकांक्षा को ही अचूक अस्त्र बना कर 2024 के चुनाव बंगाल,तेलंगाना,बिहार ,महाराष्ट्र और कर्नाटक से कुछ अतिरिक्त सीटें निकालें की गेम प्लान पर काम कर रही है। लेकिन भाजपा यह गेम प्लान दोबारी है, अगर विपक्ष 1977 की तरह अपनी महत्वाकांक्षाओं को दरकिनार कर देश हित में एकजुट हो गया तो 2024 के चुनावों की लहर और लय अभी से ही बन जाएगी। एकजुट विपक्ष के साथ जनता जुड़ेगी। एक नया राजनीतिक माहौल बनेगा फिलहाल तो विपक्ष एकजुट नजर आ रहा है।राहुल के मुद्दे पर लोगों के चेहरे और जुबान से भी चिंता झलक रही है। परंतु लोगों की यह चिंता व आक्रोश में तभी परिवर्तित होगई जब विपक्ष एक सुर में दिखाई देगा।।
कांग्रेस यह लड़ाई सड़क पर लड़ती है या कोर्ट में!
राहुल के डिसक्वालीफिकेशन को कांग्रेस किसी तरह एक अवसर में बदलती है यह उसके राजनीतिक कौशल की अग्नि परीक्षा है। क्या कांग्रेस अपने कैडर और विपक्ष पर भरोसा करके और देश को पहले रख कर इस लड़ाई को चौक ,चौराहे और सड़क पर लड़ने की रणनीति बनाती है या ऐकला चलो की ? कांग्रेस और विपक्षी पार्टियों के पास एक मौका है भारतीय जनमानस के दिलो-दिमाग में जगह बनाने का। विपक्ष की एकजुटता कांग्रेस की रणनीति पर ज्यादा निर्भर करेगी।
कांग्रेस के आक्रोश की एक झलक आज हिमाचल प्रदेश विधानसभा दिखाई दी।नेता प्रतिपक्ष जयराम ठाकुर ने राहुल गांधी के संदर्भ में कुछ टिप्पणी करने के लिए प्वाइंट आफ ऑर्डर अध्यक्ष के समक्ष उठाया जिस पर मुख्यमंत्री, उपमुख्यमंत्री सहित समूचा सत्तापक्ष आक्रोश में आ गया दोनों ओर से एक दूसरे के नेता के मुर्दाबाद और तानाशाही के नारों में सदन गूंज उठा ।अध्यक्ष ने सदन की कार्यवाही को 15 मिनट के लिए रोक दी। राहुल गांधी की लोकसभा से डिसक्वालीफिकेशन दो धारी तलवार की तरह है जो काटने वाले को भी काट सकती है ।यह रणनीतिकारों पर निर्भर है कि इसका उपयोग कैसे करते है!