सुक्खू सरकार का फैसला एकदम सही परंतु अपने संकल्प के बिल्कुल  उलट 

  सुक्खु सरकार ने 2 मार्च को हुई मंत्रिमंडल की बैठक में मृतप्रायः एग्रो इंडस्ट्री का विलय दूसरी अधमरी पीएसयू एचपीएमसी में कर दिया। कांग्रेस सरकार का या फैसला एकदम सही है परंतु कांग्रेस पार्टी के “व्यवस्था परिवर्तन” के संकल्प के बिल्कुल उलट है। कांग्रेस की सरकार ने विगत 2 महीनों में प्रशासनिक व्यवस्था बदलने व उसमें पारदर्शिता लाने के लिए हिमाचल प्रदेश सेवा आयोग को विश्वविद्यालय व स्कूल बोर्ड एक्ट में लाया। पेपर लीक मामले के विवाद में फंसे हिमाचल प्रदेश कर्मचारी चयन बोर्ड को निरस्त किया, इसके अलावा भी व्यवस्था बदलने के लिए कई ठोस कदम उठाए हैं।  सुक्खू सरकार के सामने मृतप्रायः एग्रो इंडस्ट्री का मसला भी इस  दिशा में एक और ठोस  कदम उठाने का सुनहरा अवसर था। कांग्रेस सरकार द्वारा ऐसा करने से लोगों के  दिलों में सरकार के प्रति भरोसा और बढ़ता । 53 साल 6 महीने पुरानी एग्रो इंडस्ट्री भी कुप्रबंधन और कुव्यवस्था की मार से खत्म हुई। निगम व बोर्ड राजनीति में हारे नकारे नेताओं के पनाहगाह बन गए।

 एग्रो इंडस्ट्री ने शुरू के दो दशकों में तत्कालीन मुख्यमंत्री डॉ यशवंत सिंह परमार के सपने को साकार करने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी। एग्रो इंडस्ट्री ने कृषि व कृषि से जुड़े अन्य धंधों की बढ़ती नई तकनीक और औजारों के आधुनिकीकरण से प्रदेश के किसानों और बागानों को लगातार जोड़े रखा ,परंतु 90 के दशक में इस व अन्य पीएसयू पर राजनीति हावी हो गई। कांग्रेस व भाजपा सरकारों ने सभी निगमों व बोर्ड के निदेशक मंडल में राजनीति में हारे ,निकारे व मारे नेताओं को राजनीतिक पुनर्वास का अड्डा बनाया। मौजूदा सरकार भी यही कर रही है,करेगी और करना भी पड़ेगा क्योंकि आज की राजनीति में राजनीतिक दलों में नेता अधिक और कार्यकर्ता कम हैं, बल्कि यह कहना अतिशयोक्ति नहीं है कि सभी कार्यकर्ता नेता है और वह सत्ता में हिस्सेदारी चाहते है। कांग्रेस की मौजूदा कांग्रेस सरकार भी ऐसे नेताओं को सत्ता में हिस्सेदारी जरूर दें परंतु  बोर्ड और निगमों के प्रबंधन में हस्ताक्षेप करने की इजाजत ना दे। राजनेताओं की के हस्तक्षेप के कारण ही एग्रो इंडस्ट्री के अधिकारी व कर्मचारियों की कर्तव्य परायणता शून्य हो गई और वह अपना लक्ष्य भूल गए, निगम घाटे में फिसलता चलता चला गया । कुशल व काबिल ऑफिसर इस पीएसयू से कन्नी काटने लगे।

काबिल  ऑफिसर खस्ता हालत निगम- बोर्ड की कायाकल्प कर सकते हैं

कुशल व काबिल ऑफिसर घाटे में चल रहे निगम व बोर्ड को लाभ की संस्था बनाने की कुव्वत रखते हैं । इसके जीते जागते प्रमाण हैं एचपीएमसी। धाटे में चल रही एचपीएमसी को अधिकारी जे सी शर्मा ने अपनी दक्षता व कार्यकुशलता से चकाचक कर दिया था । इसी तरह तीन दशकों से खस्ता हालत एग्रो इंडस्ट्रीज को 2021- 22 में एक काबिल व कर्तव्यनिष्ठ अधिकारी कैप्टन जीएम पठानिया मिला। पठानिया ने इस पीएसयू को उसके उद्देश्य पर पुन: लाने का खाका तैयार किया और इस खाखे को लेकर एग्रो इंडस्ट्री किसानों और बागबानों के घर द्वार पहुंची, उनको एग्रो इंडस्ट्री के लक्ष्य और उनसे उनकी जरूरतों और समस्याओं के बारे में जानकर पठानिया इस पीएसयू को पुनः जीवित करने की नई पहल की। इस प्रोजेक्ट में पठानिया ने पालमपुर स्थित सीएसआईआर की हिमालयन जैवसम्पदा प्रौद्योगिकी संस्थान (आईएचबीटी) को शामिल किया । आईएचबीटी ने किसानों को  “अरोमा प्रोजेक्ट” जो केंद्र सरकार का है, के साथ काम करने को प्रोत्साहित किया ।पठानिया ने सैंकड़ों दिक्कतों के बाद भी धर्मशाला के पास करेरी पंचायत के खड़ी बेह में 300 कनाल भूमि पर किसानों से जंगली गेंदा की खेती करवाई और आईएचबीटी ने किसानों के फूलों का तेल निकालने की तकनीक व उपकरण उपलब्ध करवाने और तेल को बाजार में ले जाने का भी भरोसा दिया  परंतु चुनाव आने के कारण काम पूरी तरह सिरे नहीं चढ़ पाया।

 खस्ताहाल पीएसयू का बंद या विलय  करना सही विकल्प नहीं 

वर्तमान में प्रदेश सरकार के जितने भी बोर्ड और निगम हैं उनमें से दो-तीन को छोड़कर सभी खस्ता हालत में है।  अब इन सभी पीएसयू को आर्थिक बोझ समझकर बंद कर देना या एग्रो इंडस्ट्री की तरह किसी दूसरे पीएसयू में विलय कर देना ना तो राजनीतिक तौर पर सही है और ना ही रोजगार और आर्थिक दृष्टि से ठीक। सुक्खू की सरकार “व्यवस्था बदलने “के संकल्प से आई है और इस संकल्प को सिद्ध करने के लिए विलय या बंद करने की नीति नहीं अपितु कुप्रबंधन व राजनीतिक हस्तक्षेप को खत्म कर “कर्तव्य परायणता” की नीति पर काम करने की जरूरत है। सरकार में कैप्टन पठानिया और जेसी शर्मा जैसे कई ऑफिसर हैं जो कांग्रेस के संकल्प को  सिद्धि तक पहुँचा सकते है।

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