मणिपुर बंगाल बिहार में महिलाओं को निर्वस्त्र कर सड़कों पर घुमाना उनके साथ कुकर्म करने पर देश के राष्ट्रपति द्रोपदी मुर्मू, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, मणिपुर के मुख्यमंत्री वीरेंद्र सिंह, बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी, महिला आयोग की अध्यक्षा, देश के प्रेरणास्रोत भारत रतन, “क्रिकेट के भगवान” सचिन तेंदुलकर, सदी के महानायक अमिताभ बच्चन, धार्मिक गुरुओं की जमात और देश की 140 करोड़ जनता द्वारा चुप्पी साधने पर मन घोर व्याकुलता की स्थिति में है। बार-बार एक प्रश्न दिलो-दिमाग में कौंध रहा है कि क्या यह हमारी संस्कृति है या मौन सहमति जो सहस्त्र वर्षों पहले धृतराष्ट्र के राज दरबार में स्थापित हुई थी?
इस प्रश्न का उत्तर ढूंढते-ढूंढते इतिहास के कई पन्ने पलट दिए। इतिहास के पन्नों ने गवाही दी कि हमारे भारत की संस्कृति तो “है यत्र नार्यस्तु पूज्यंते रमंते तत्र देवता”। इतिहास ऐसे साक्ष्यों से भरा पड़ा है कि जब भी नारी की अस्मिता पर हमला हुआ तो मनुष्य तो मनुष्य पेड़-पौधे पशु-पक्षी तक रक्षा के लिए खड़े हुए। जब सीता का अपहरण हुआ तो जंगल के पेड़-पौधे, पशु-पक्षी, वानर, भालू रीछ सभी सीता की रक्षा के लिए खड़े हुए। लेकिन दौर बदला यह संस्कृति धुंधला कर कहीं खो गई। महिलाओं के साथ अभद्रता राज दरबारों में होने लगी द्रौपदी के “चीर हरण” को गंगापुत्र भीष्म पितामह, कुलगुरू कृपाचार्य द्रोणाचार्य, स्वयं धर्मराज युधिष्ठिर ने तर्कों को ढाल बनाकर द्रोपदी के चीर हरण की मौन सहमति थी। महिलाओं के चीरहरण पर राज दरबारों की मौन सहमति का दौर जो महाभारत काल से शुरू हुआ आज भी उसी बेशर्मी, शब्द का प्रयोग करने के लिए क्षमा प्रार्थी हूं, से विद्यमान है।
महाभारत काल में भी राजनीतिक पदों व हितों को पोषित करने के लिए धर्मराज, धर्मगुरु व राजा दरबारी महिलाओं पर हो रहे बर्बरता को मौन सहमति देते रहे और आज भी राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री, धर्मगुरु मौन सहमति दे रहे हैं ।पीड़ा व शर्मिंदगी इसलिए भी है कि बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी जो कभी महिला के साथ हुई बर्बरता पर अकेली सीपीएम सरकार से भीड़ गई थी आज प्रांत की मुख्यमंत्री होते हुए पंचायत चुनावों में महिला उम्मीदवारों को निर्वस्त्र करने की घटना पर सुविधानुसार मौन साधे हुए हैं । वह मणिपुर की घिनौनी घटना पर तो मुखर हैं परंतु माल्दा ,बंगाल, की घटना के लिए धृतराष्ट्रीय तर्कों का सहारा ले रही है और अपराधियों को कथित राजनीतिक संरक्षण दे रही हैं। यूपी में भी हाथरस मामले में योगी सरकार पर आरोपियों का कथित राजनीतिक संरक्षण के घने आरोप लगे थे।अन्य राज्यों में ऐसे मामले हैं जहां राज दरबारी चुप्पी साधे लिए और आरोपियों को सरकार अपनी मौन सहमति देती रही है।
विगत दिनों में जो यह शर्मनाक घटनाएं घटी हैं इनमें एक प्रतिमान देखने को मिल रहा है जो और भी पीड़ादायक है । बंगाल की घटना कथित राजनीतिक है तो मणिपुर की बर्बरता देखने में तो कुकी और मैतेई कबीलों के बीच में आपसी संघर्ष का मामला है परंतु मैतेई ट्राइब सोशल एक्टिविस्ट बीना लक्ष्मी नेपराम कुक्की ट्राइब की 2 महिलाओं को निर्वस्त्र करने की शर्मनाक घटना को राजनीति का घिनौना रूप बताती हैं। विपक्ष भी इस घटना को राजनीतिक संरक्षण का परिणाम बता रहा है। विपक्ष मणिपुर मामले पर जमकर चीख चिल्ला रही हैं परंतु बंगाल में लगातार हो रहे महिलाओं के “चीर हरण” पर खिसया रही है।
उत्तर प्रदेश में हाथरस के बलात्कार और हत्या का मामला भी यूं तो स्वर्ण व दलित का मामला था परंतु पुलिस की कार्यवाही में ढील और मृतिका के पार्थिव शरीर का दाह संस्कार में हड़बड़ी को विपक्ष, मीडिया व लोग कथित राजनीतिक संरक्षण का मामला मानते हैं। इसी तरह बिल्किस बानो का कथित धार्मिक उन्माद का परिणाम था, परंतु इसके नेपथ्य में भी राजनीति रही है।
धार्मिक डेरों, आश्रम, साधु-संतों, पादरियों या मुल्ला-मौलवियों जिनके ऊपर बलात्कार और हत्या के आरोप न्यायालयों में स्थापित हो चुके हैं, को जन्मदिन ,बीमारी या फिर किसी अन्य बहाने पर लंबी-लंबी परोल पर भेजना एक तरह से अपराधियों को राजनीतिक संरक्षण ही है । सजायाफ्ता अपराधियों का फूल मालाओं से स्वागत करना बलात्कारियों के छूटने पर मिठाईयां बांटना इस तरह के अपराधों को, विशेष तौर, पर धर्म, जाति , संप्रदाय व राजनीतिक पैरवी में हो रहे अपराधों को ना केवल बढ़ावा मिलता है बल्कि बलात्कारियों को दुस्साहसी बनाता है।
मणिपुर व बंगाल पंचायत चुनावों में हुई महिलाओं पर बर्बरता व यौन शोषण की घटनाओं से पहले महिला पहलवान जिन्होंने अंतरराष्ट्रीय मंच पर भारत को गौरवान्वित किया। मंत्री व प्रधानमंत्री ने उनकी खेल की तुरंत फोन प्रशंसा की और उनके स्वदेश लौटने पर उनके साथ फोटा खिंचवाने कि आतुरता दिखाई,परंतु जब महिला पहलवानों ने रेसलिंग फेडरेशन के अध्यक्ष बृज भूषण, जो भाजपा के सांसद भी हैं, के खिलाफ यौन उत्पीड़न की शिकायत दर्ज कराई तो लम्बे समय तक सरकार द्वारा चुप्पी साध ली । यह बृजभूषण को उनके कथित यौन दुराचार को मौन सहमति देना ही है।

देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने के भाषणों में कहते हैं कि मुझ पर देश की आधी आबादी यानी महिलाओं, मां-बेटियों के आशीर्वाद कवच है जिसको कोई भी भेद नहीं सकता है । प्रधानमंत्री का यह दावा काफी हद तक सही भी है। महिलाएं चुनावों में जमकर मोदी के साथ खड़ी होती हैं। परंतु यह दुःखद है जब उन्हें बलात्कारियों से बचने के लिए इस तरह के कवच की जरूरत होती है तो वह भीष्म पितामह, कृपाचार्य द्रोणाचार्य की तरह चुप हो जाते हैं। यहां तक महिला आयोग जो केवल और केवल महिलाओं पर हो रहे अपराधियों को की जांच पड़ताल करवाने के लिए और उन्हें न्याय दिलवाने के लिए ही बने हैं वह भी अपने कर्तव्य से भागते नजर आते हैं।
महिलाओं को गांव की गलियों, चौक-चौराहों ,सड़कों व भीड़ के सामने निर्वस्त्र करने व बलात्कार करने की घटनाओं को शासन की कथित मौन सहमति या संरक्षण दूसरे महाभारत की नींव रख रहा है। इस महाभारत में जातीय संघर्ष, धार्मिक उन्माद, समुदायों के बीच भीषण टकराव व ट्राइबल मारकाट ” एक भारत श्रेष्ठ भारत” को खंड-खंड कर देगा अगर केंद्रीय व राज्यों के राज दरबारों का मौन नहीं टूटा है तो।

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