चांद सी महबूबा हो मेरी ऐसा मैंने सोचा था।
जब से मानव धरती पर आया है तब से लेकर आज तक मानव ब्रह्मांड को जानने की सोच से वसीभूत है। इसी सोच से वसीभूत तत्कालीन यूएसएसआर के वैज्ञानिकों ने 1957 में स्पूतनिक-1 को अंतरिक्ष की खोज में पहला कदम उठाया। इसके प्रति उत्तर में शीत युद्ध की दूसरी महाशक्ति अमेरिका ने 1962 में एक्सप्लोरर-1 को अंतरिक्ष में प्रक्षेपित किया।
दुनिया की तत्कालीन इन दो महाशक्तियों की अंतरिक्ष होड़ व चीन से बढ़ते भारत के संघर्ष को भारत के युवा वैज्ञानिकों जहांगीर होमी भाभा व विक्रम साराभाई के जुनून व जहानियत और दूरदर्शी राजनीतिक नेतृत्व पंडित जवाहरलाल नेहरू ने मिलकर अंतरिक्ष की खोज में एक नन्हा सा लेकिन मजबूत कदम उठाया जो आज शाम 6:11 पर चांद की धरती पर है।
विक्रम साराभाई ने अपने छात्र कल में ही रॉकेट उड़ने के प्रयोग किया । 1945 में कैंब्रिज विश्वविद्यालय से पीएचडी की उपाधि ली और 1947 में अपने घर में ही एक पीएलआर लैब शुरू की जो धीरे-धीरे अपने सपने (ब्रह्मांड की खोज) और अन्य जिम्मेदारियां के साथ जीने लगे।
1962 में जब दोनों महाशक्तियां अंतरिक्ष की ओर बढ़ चुकी थी उसे समय भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री नेहरू ने इंडियन नेशनल कमेटी फॉर स्पेस रिसर्च की स्थापना की जो बाद में इसरो बनी।
इंडियन नेशनल कमिटी फॉर स्पेस रिसर्च ने अपने काम को शुरू करने के लिए केरल में स्थित एक छोटे से गांव को चिन्हित किया परंतु इस जगह में उन्हें एक समस्या आई। इस जगह पर मैरी मैग्डालेने चर्च थी । युवा वैज्ञानिक विक्रम साराभाई और एपीजे अब्दुल कलाम चर्च के पादरी से मिले और चर्च को वैज्ञानिक गतिविधियों के प्रयोग के लिए देने की गुहार लगाई । जो वहां के ग्रामीणों व पादरी ने स्वीकार कर ली । इस तरह से इसरो की सफल यात्रा चर्च मैरी मैग्डालेने शुरू हुई। 1963 में विक्रम साराभाई और युवा वैज्ञानिक एपीजे अब्दुल कलाम ने इसी जगह से रॉकेट को बैलगाड़ी में ट्रांसपोर्ट कर सफलतापूर्वक प्रक्षेपित किया। दुनिया के वैज्ञानिक, राजनीतिज्ञ और बुद्धिजीवी भारत द्वारा रॉकेट का सफलतापूर्वक प्रक्षेपण करने पर अचंभित भी हुए और सावधान भी।
भारत ने 1979 में एसएलबी-3 का अंतरिक्ष में प्रक्षेपण किया लेकिन असफलता हाथ लगी। वैज्ञानिकों ने हार नहीं मानी और अगले ही वर्ष 1980 में एसएलबी 3 का सफल प्रक्षेपण करने में सफलता हासिल की और रोहिणी सैटेलाइट को अंतरिक्ष में स्थापित किया। इन दोनों प्रक्षेपणों का मुखिया एपीजे अब्दुल कलाम थे। एसएलवी-3 के सफल प्रक्षेपण के बाद भारत के वैज्ञानिकों ने पीछे मुड़कर नहीं देखा।
आज भारत का दुनिया में ऑपरेशनल रिमोट सेंसिंग सैटेलाइट में अग्रणी नाम है। यह ही नहीं भारत के वैज्ञानिकों ने 104 सेटेलाइट एक रॉकेट में भेजने का कारनामा भी अपने नाम दर्ज करवाया है ।भारत ने नासा की 230 से अधिक सेटेलाइट्स अंतरिक्ष में स्थापित किए हैं ।इसके अलावा भारत ने यूरोप के 15 देश जिनमें यूके, जर्मनी व इटली भी शामिल हैं कि सेटेलाइट्स स्पेस में स्थापित की है ।
भारत दुनिया का पहला देश है जिसने मंगल ग्रह पर अपने मंगलयान को पहली कोशिश में ही पहुंचा दिया है और आज भारत दुनिया का पहले देश हो गया है जिसने चांद के दक्षिणी ध्रुव पर विक्रम को उतारने में सफलता हासिल की है भारत के विज्ञान को इस उपलब्धि के लिए बहुत-बहुत बधाई।