कर्नाटका को भी हिमाचल की तरह हार की ओर ठेल रही है।

भाजपा ने हाल में ही संपन्न हिमाचल प्रदेश विधानसभा चुनावों में जीती हुई बाजी, बड़े पैमाने पर हुई बगावत,जनाधार वाले प्रेम कुमार धूमल जैसे वरिष्ठ नेताओं की उपेक्षा व  वंशवाद के कारण हार दी। ऐसा प्रतीत होता है कि भाजपा हाईकमान व राष्ट्रीय अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा ने हिमाचल की हार से सीख नहीं ली।  भाजपा कर्नाटक विधानसभा चुनाव मे भी उन्हीं गलतियों को दोहरा रही है जो हिमाचल में की थी।

 हिमाचल प्रदेश में भी भाजपा ने 42 सिटिंग विधायकों में से 11 के टिकट काटे और 3 सिटिंग विधायकों की सीटें बदली थी जो 3 सीटें बदली थी उनकी वजह से भाजपा ने 5 सीटें हारी और 11 नए चेहरों में से 6 हारे और 25 बागियों के कारण 11 सीटें भाजपा हारी।  वरिष्ठ नेता की उपेक्षा के कारण कुल मिलाकर 2 से 4% भाजपा का वोट कार्यप्रवृत(mobilize)  न होने के कारण कम हुआ। 

भाजपा ने कर्नाटका में कथित भ्रष्टाचार की कोख से उत्पन्न भाजपा विरोधी लहर को शांत करने के लिए 50 से अधिक विधायकों व मंत्रियों के टिकट बदल दिए हैं इसके अलावा 10 निवर्तमान विधायकों की सीटें बदल कर टिकट दिए और लिंगायत समुदाय के सबसे बड़े  वरिष्ठ नेता येदुरप्पा को राजनीति से बाहर धकेल दिया है। लिंगायत समुदाय के आज तक कर्नाटका में छह मुख्यमंत्री रहे हैं । यह समुदाय 110 विधानसभा सीटों पर प्रभाव डालता है। निवर्तमान विधानसभा में इस समुदाय के 58 विधायक थे जिनमें से अकेले भाजपा के 38 विधायक थे। येदुरप्पा को सियासत से बाहर करने के कारण इस समुदाय में भारी रोष है।

यद्यपि निवर्तमान मुख्यमंत्री लिंगायत ही हैं परंतु इनके नेता येदुरप्पा ही है। इसीलिए भाजपा ने येदुरप्पा के बेटे को टिकट दी है परंतु उसमें भी बहुत से किंतु परंतु हैं । कुछ बड़े नेता टिकट मिलने के बाद भी इसलिए नाराज हैं कि उनको मनचाही सीटों से टिकट ना देकर हिमाचल के प्रोफेसर प्रेम कुमार धूमल की तरह कड़े मुकाबले वाली सीटों पर खड़ा कर दिया है ।वी सोमन्ना और वोक्कालिंगा को सिद्धारमैया और डीके शिवकुमार के सामने खड़ा किया है । हो सकता है इन दो बड़े नेताओं को कांग्रेस के दिग्गज नताओं के सामने इसलिए खड़ा किया हो ताकि भाजपा उनको उन्हीं के चुनाव क्षेत्र में बांध सके लेकिन यह भाजपा की दो धारी रणनीति है ।

भाजपा ने कर्नाटका में सभी दलबदलूओं को टिकट दिए हैं उनमें रमेश जोरकीहाली भी हैं जिन्हें कथित “सेक्स फॉर जॉब स्कैंडल” के कारण इस्तीफा देना पड़ा था । इस बात पर भी भाजपा नेताओं व कार्यकर्ताओं में खासी नाराजगी है। कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि भाजपा ने हिमाचल की हार से कुछ सीखा नहीं और उसी सुर ताल से कर्नाटका की सियासी पटकथा लिख डाली है। अब हो सकता है परिणाम भी हिमाचल जैसे हों, फर्क मात्र इतना होगा कि हिमाचल के विधायक बिकाऊ नहीं है लेकिन कर्नाटका का इतिहास खरीद-फरोख्त का रहा है। विधायक पाला बदलने मे अपने को हकीर (छोटा)नहीं समझते है। हो सकता है कि कर्नाटका चुनाव परिणामों के बाद खरीद-फरोख्त की संस्कृति को  दोहराऐ।

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