हरियाली में छिपा है भविष्य का उजास – वृक्षारोपण है युग का श्रेष्ठतम यज्ञ
ग्राम परिवेश/मोहिंद्र प्रताप सिंह
वर्तमान युग के पर्यावरणीय संकट ने मानवता को एक ऐसे मोड़ पर ला खड़ा किया है, जहाँ सांस लेने के लिए शुद्ध वायु और जीवन जीने के लिए सुरक्षित प्रकृति अब विकल्प नहीं, आवश्यकता बन चुकी है। बढ़ते तापमान, जलवायु असंतुलन और प्राकृतिक संसाधनों के क्षरण के इस दौर में वृक्षारोपण मात्र पर्यावरणीय क्रिया नहीं, बल्कि धरती के संतुलन की पुनर्स्थापना का एक धार्मिक, सामाजिक और राष्ट्रीय कर्तव्य बन चुका है।** जब यह कार्य मंदिरों, गुरुद्वारों और शिक्षण संस्थानों जैसी जागरूकता और श्रद्धा के केंद्रों से जुड़ता है, तो यह केवल पौधे रोपने का प्रयास नहीं रह जाता, यह ‘धरा-ध्यान’ और ‘संस्कार-संवर्धन’ की एक प्रेरक पहल बन जाता है।

इसी भाव को मूर्त रूप देने हेतु बी.बी.एन. डिग्री कॉलेज, चकमोह तथा प्राचीन धार्मिक स्थलों पर तीन दिवसीय “आध्यात्मिक वानिकी महोत्सव” का आयोजन किया गया, जो डॉ. पी.सी. शर्मा हेरिटेज फाउंडेशन, बाबा बालक नाथ ट्रस्ट, और वन मंडल हमीरपुर के सहयोग से संपन्न हुआ। कॉलेज परिसर के साथ-साथ चकमोह क्षेत्र के धार्मिक स्थलों पर इस आयोजन ने आस्था और प्रकृति संरक्षण के अद्भुत संगम को जीवंत किया।
इस पावन अवसर पर डॉ. पी.सी. शर्मा, अध्यक्ष डब्ल्यू. हफ ने बतौर मुख्य अतिथि तथा संदीप चंदेल, तहसीलदार एवं मंदिर अधिकारी दियोटसिद्ध ने विशिष्ट सहभागिता निभाई। डॉ. शर्मा ने बताया कि यह अभियान एक पेड़ मां के नाम कार्यक्रम का अभिन्न हिस्सा है, जो देशभर के मंदिरों और गुरुद्वारों में श्रद्धालुओं की भागीदारी से पर्यावरण जागरूकता को जनांदोलन का रूप दे रहा है। उन्होंने विद्यार्थियों को प्रेरित करते हुए कहा कि “वनों की रक्षा में ही जीवन की रक्षा है, और यही भाव हमारी नई पीढ़ी को आत्मसात करना होगा।”
271 से अधिक औषधीय, आध्यात्मिक और छायादार पौधों** (जैसे हरड़, बहेड़ा, नीम, जामुन, रुद्राक्ष, चंदन, गुलर आदि) का रोपण इस महोत्सव की एक बड़ी उपलब्धि रही। कार्यक्रम में एनएसएस इकाई, खेल विभाग पंचायत प्रधान श्रीमती किरण शर्मा सहित स्थानीय पंचायत प्रतिनिधिगण शिक्षकगण व जनसामान्य ने सहभागिता निभाई।
विशेष अतिथि डॉ. मीनाक्षी ठाकुर तथा कॉलेज के प्राचार्य डॉ. नरेश कुमार ठाकुर ने इसे “संवेदना और संकल्प का समागम” बताते हुए युवाओं को प्रकृति संरक्षण के प्रति जागरूक किया।
यह आयोजन न केवल पर्यावरणीय पुनीत कर्तव्य की याद दिलाता है, बल्कि यह दर्शाता है कि जब समाज के विभिन्न स्तंभ — शिक्षा, प्रशासन, अध्यात्म और जनसाधारण एक मंच पर आकर प्रकृति के लिए कार्य करें, तो हर एक पौधा एक प्रार्थना बन जाता है और हर वृक्ष एक जीवंत व्रत।