देहरा आज तो हर कोई तेरा, लेकिन तूं किस को पहनाएगा जीत का सेहरा। देहरा के लिए कांग्रेस और बीजेपी में आर पार की लड़ाई शुरू हो गई है। सियासत के बड़े-बड़े सूरमे अपने-अपने अस्त्र-शस्त्र और अक्षुण्णी सेना लेकर देहरा के रण में उतर गए हैं। अभी तक कमजोर दिखाई दे रही भाजपा ने अपनी रणनीति में जरूरी बदलाव किए हैं। सियासी योद्धा जो हाथी, घोड़ा, और ऊंट पर सवार होकर जनता के बीच जाकर समर्थन मांग रहे थे, वह अब जनता जनार्दन के चरणों में आ गए हैं। वीरांगना ने योद्धा के लिए मैदान संभाला और भीतरघात के नाग पाश में जड़े अपने योद्धा को मुक्त करवाने के चक्रव्यूह की रचना की। परंतु जिन रथियों, महारथियों, और अधिरथियों को रचित चक्रव्यूह की रक्षा करनी है, वे अभी भी अपने अहंकार के घोड़े पर सवार सियासत के इस चक्रव्यूह से दूर जा रहे हैं। गत दो दिनों में देहरा का सियासी चेहरा बदलने के लिए यानी कांग्रेस से एक कदम आगे निकलने के लिए प्रदेश भाजपा के सभी शीर्ष नेता देहरा में कैंप जमा कर बैठ गए हैं हर बूथ पर नेताओं का जमावड़ा है। मतदाताओं को अपने पक्ष में खड़ा करने के लिए हर संभव प्रयास किया जा रहा है। कुछ भाजपा नेता मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू से वैयक्तिक और राजनीतिक बदला लेने के लिए उनकी धर्मपत्नी कमलेश ठाकुर को हरवाने की हर उचित-अनुचित चाल चल रहे हैं। एक कहावत है “प्यार और जंग में सब कुछ जायज है,” इस कहावत को चरितार्थ किया जा रहा है।

            चुनावी रण में कमजोर पड़ते देख, होशियार सिंह ने आखिरकार भाजपा की पूर्व मंत्री और वरिष्ठ नेता रमेश धवाला को मनाने के लिए शुक्रवार को अपनी धर्मपत्नी को शांति दूत बनाकर उनके पास भेजा। चैंब्याल ने रमेश धवाला को वार्ता के लिए तैयार कर लिया। शनिवार को होशियार सिंह ऊंट से उतरकर रमेश धवाला से समर्थन की अलख जगाई। बातचीत के बीच होशियार सिंह धवाला के कटु प्रश्नों के उत्तर टालते रहे और समर्थन मांगते रहे। अंत में भारत माता की जय और जय श्री राम के नारे भी लगे। विजय चिन्ह के साथ फोटो भी खिंचवाई परन्तु फोटो बयां कर रही है कि धवाला अपनी धुरी पर ही टिके दिखे। अपनी धुरी पर टिके रहने के दो कारण हैं। पहला यह कि जिन भाजपा नेताओं से रमेश धवाला को नाराजगी है, वे अपने अहंकार में ही देहरा में घूम रहे हैं। दूसरा, रमेश धवाला अपनी धुन के पक्के हैं, जो ठान लेते हैं वह कर देते हैं, उसमें वे नफा-नुकसान नहीं देखते हैं।

               धवाला की नाराजगी पूर्व मुख्यमंत्री जय राम ठाकुर, पवन राणा, और विक्रम ठाकुर से है। धवाला का मानना है कि इन तीनों ने उनके राजनीतिक करियर को बंटाधार कर दिया है। देहरा में रमेश धवाला के अलावा पूर्व मंत्री रविंद्र रवि भी एक अच्छी खासी पैठ रखते हैं। भाजपा में गुटबाजी के चलते होशियार सिंह और भाजपा का प्रदेश नेतृत्व उनकी अनदेखी कर रहा है। जिसके कारण उनके समर्थक घर की चौखट के बाहर अभी तक नहीं निकले हैं।

कांग्रेस पार्टी भी देहरा में जीत दर्ज करने के लिए कोई कोर-कसर नहीं छोड़ रही है। कांग्रेस ने रूठों को मनाने का काम पहले दौर में ही कर लिया था, जिसके चलते वह यहां चुनाव अभियान को धार दे पाई है। समूचे चुनाव क्षेत्र को 6 सेक्टर में बांटा गया है। स्थानीय प्रभावशाली नेताओं को उनकी बागडोर दी गई है। बाहर से आने वाले नेताओं के प्रभाव को बहुत ही सावधानी से प्रयोग किया जा रहा है। कमलेश ठाकुर ने लोगों की जरूरत और नेताओं की तासीर को थोड़े से समय में ही आत्मसात करके उसके अनुरूप अपने चुनाव प्रचार को धार दी है।

आर-पार की लड़ाई में मुख्यमंत्री ने कुशलतम स्थानीय नेताओं को रण में उतारा है। दोनों राजनीतिक दलों की आर-पार की लड़ाई में देहरा की जनता ने भी अपने मुद्दों को कसके पकड़ रखा है। जनता सबको सुन भी रही है और सुना भी रही है। हर पहलू पर चौक-चौराहे, हाट-दुकान व खेत-खलिहान को जाते आते चर्चा हो रही है। जनता की सुई अभी भी विकास की आस पर टिकी हुई है। देखना यह है कि 10 जुलाई तक जनता की सुई विकास पर ही टिकी रहती है या अपना रूख बदल देती है।

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