3 दिसंबर को चार राज्यों की विधानसभा चुनाव में भाजपा ने भारी जीत दर्ज की। तीन में से दो राज्य राजस्थान व छत्तीसगढ़ जहां कांग्रेस सत्तारूढ़ थी भाजपा ने उसे सत्ताच्युत कर दिया और मध्य प्रदेश में भारी जीत के साथ लगातार चौथी बार विजय पताका लहराई। मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में भाजपा मुख्यमंत्री का चेहरा नहीं बदल रही है अर्थात छत्तीसगढ़ में रमन सिंह और मध्य प्रदेश में शिवराज चौहान की ताजपोशी करने का मन भाजपा हाइकमान बना चुकी है, ऐसा सूत्रों व राजनीतिक शास्त्री बता रहे हैं। लेकिन राजस्थान के नेता के चुनाव को लेकर अभी भाजपा हाई कमान वसुंधरा राजे के विकल्प तलाशने पर मंथन कर रही है।
यह तो जग जाहिर है कि वसुंधरा राजे और हाई कमान के संबंधों में खटास है और कई बार विगत में राजे को हटाने या कोई और जिम्मेदारी देने की चर्चाएं होती रही है। विशेष तौर पर जब कांग्रेस के सचिन पायलट ने अशोक गहलोत सरकार के विरुद्ध विद्रोह किया और हरियाणा में डेरा जमा दिया था तो मीडिया ने और हाईकमान के कुछ जिम्मेदार नेताओं ने उनको मुख्यमंत्री बनाने का गेम प्लान बनाया था। परंतु वसुंधरा राजे के तीखे तेवर और उनकी विधायकों पर पकड़ के कारण सब कुछ धरे का धरा रह गया पायलट खाली हाथ राजस्थान लौट गए।
वसुंधरा राजे को चुनाव से पहले भी हाशिए पर डालने का प्रयास हुआ। उसके काफी समर्थकों के टिकट काटे गए या उनकी पसंदीदा सीटों से टिकट नहीं दिए गए थे। परिणाम स्वरूप लगभग 30 भाजपा बागी आजाद लड़े। आठ तो उनमें से जीत कर विधानसभा भी पहुंच गए हैं। वसुंधरा का कद कम करने के लिए जयपुर की राजकुमारी दिया कुमारी को वसुंधरा समर्थक नरपत सिंह राजवी की सीट पर टिकट दिया और वह वहां से चुनाव लड़ी और जीत गई। सियासत के माहिर लोग कह रहे हैं कि भाजपा राजकुमारी और महारानी के बीच में शह- मात का खेल सकती है । दिया कुमारी, जो मौजूदा एमपी भी हैं, को मुख्यमंत्री बनाया जा सकता है। इसके अलावा योगी बाबा बालक नाथ का नाम भी मुख्यमंत्री की दौड़ में चल रहा है। बाबा बालक नाथ साफ सुथरी छवि के हैं ।प्रदेश की राजनीति में विवादित नहीं है ।इनके अतिरिक्त गजेंद्र सिंह शेखावत भी मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठने की होड़ में है। शेखावत की सचिन पायलट के विद्रोह के पीछे मुख्य भूमिका बताई जाती है। इनका वसुंधरा से 36 का आंकड़ा है । यह सब नाम चर्चा का हिस्सा है,भाजपा के रणनीतिकार नाम किसी का चलते हैं और फिर अचानक एकदम किसी अबूझ नाम वाले का राज्याभिषेक करवा देते हैं, तो ऐसे में ओम बिड़ला भी हाई कमान की पसंद हो सकते हैं।
यह सब सोच -विचार तो हाई कमान का है । मसला तो वसुंधरा का है क्या उनकी पकड़ विधायकों पर कमजोर पड़ गई है? क्या बीजेपी हाई कमान की बढ़ती ताकत के सामने वह घुटने टेक देगी? अगर वसुंधरा राजे की पृष्ठभूमि देखें तो वह दृढ़ संकल्प व अटल राजनीति देय में विश्वास रखती हैं। विधायकों पर भरोसा रखती हैं और विधायक उन पर भरोसा रखते हैं ।115 जीते विधायकों में लगभग आधे उन उनके हैं और आठ निर्दलीय भी उन्हीं के ही हैं। इस स्थिति में हाईकमान हिंदी पट्टी में भाजपा में किसी तरह की तोड़फोड़ 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले नहीं चाहती हैं ।क्योंकि नरेंद्र मोदी के लिए सबसे महत्वपूर्ण 2024 का लोकसभा चुनाव है। वह तब तक अपनी पसंद ना पसंद को फिल वक्त भूल सकते हैं और 2024 के बाद संकल्प से सिद्धि का सफर शुरू कर सकते हैं । परंतु वसुंधरा तो वसुंधरा है वह हर सफरकर्त्ता के हर कदम को पहचानती हैं और परखती हैं। वह अमृत कल की अमृत वेला में अमृत पीना ही पसंद करेंगी ना कि विषपान करेंगी ,और वह अमृत पाने के लिए हर चाल चलेंगी।आज दिन भर की राजनीतिक हलचल में लगभग 70 से अधिक विधायक उनके यहां हाजिरी दे चुके हैं और उन पर भरोसा जाता चुके हैं।अब देखना यह है कि भाजपा हाई कमान जो इस वक्त तीनों राज्यों के मुख्यमंत्री के नाम पर चर्चा कर रही है, राजस्थान से वसुंधरा का विकल्प तलाशती हैं या वसुंधरा पर ही टिकी रहती हैं।