हिमाचल प्रदेश में अनवरत भारी बारिश के कारण जीवन, आजीविका और आधारिक संरचना की क्षति हुई है वह अपूर्णीय है। भारी बारिश से मिले जख्मों को भरने के लिए दशकों की मेहनत व धन चाहिए फिर भी नुकसान की भरपाई मात्रात्मक ही होगी। राज्य सरकार निजी संपत्ति के हुए नुकसान को पूर्ण रूप से तो नहीं दे पाएगी परंतु प्रभावित लोगों के घर-घर पहुंचकर दुख सांझा कर रही है और अपनी संवेदनाएं और यथासंभव सहायता भी दे रही है । लेकिन केंद्र सरकार की तरफ से सरकार को जादू की झप्पी तो खूब मिल रही है परंतु मौद्रिक सहायता में कंजूसी हो रही है।
विडंबना यह है कि केंद्र सरकार राहत सहायता देने में भी हाथ कसे हुए हैं और राष्ट्रीय उच्च मार्ग निर्माण कंपनियां व राष्ट्रीय उच्च मार्ग प्राधिकरण के कारकूनों पर भी कार्रवाई करने से हाथ खींच रही है। प्रदेश के लोग समझ नहीं पा रहे हैं की राष्ट्रीय उच्च मार्ग प्राधिकरण के अफसर निर्माण कंपनियां के क्यों ढाल बने हुए है। जबकि टिकेंद्र पंवर, जिन्होंने परमाणु-सोलन राष्ट्रीय उच्च मार्ग बनाने वाली कंपनी व नाही के खिलाफ एफआईआर दर्ज करवाई है, का कहना है कि नाही के क्षेत्रीय हेड अब्दुल बासित ने यह स्वीकारा है कि रोड बनाते समय पहाड़ काटने में गलती हुई है जिसका कारण जो टिकेंद्र पंवर बताते हैं, की नाही का हिमालय क्षेत्र में रोड बनाने का यह पहला अनुभव था जिसके चलते कुछ खामियां रह गई हैं।
टिकेंद्र पंवर ने जिला सोलन के पुलिस अधीक्षक गौरव सिंह को पत्र लिखा है जिसमें उन्होंने परमाणु थाना में ऑनलाइन राष्ट्रीय उच्च मार्ग प्राधिकरण और जी आर इंफ्रास्ट्रक्चर कंपनी के खिलाफ दर्ज करवाई एफआईआर के बारे में अभी तक कार्रवाई न होने पर खेद व्यक्त किया है।
टिकेंद्र पंवर का यह प्रश्न कोई यक्ष प्रश्न तो है नहीं जिसका उत्तर देने में सोलन पुलिस असमर्थ है।
प्रश्न यह है कि राष्ट्रीय उच्च मार्ग प्राधिकरण यह मानता है, जैसा टिकेंद्र पंवर कहते हैं, कि सड़क निर्माण में गम्भीर गलतियां हुई हैं। जैसे कि “पेव शोल्डर’ और पहाड़ों की कटाई की खामियां। पेव सोल्डर का अर्थ है, सड़क के पक्के कंधे । राष्ट्रीय उच्च मार्गों पर अक्सर ड्राइविंग सतह, सड़क या लेन के बीच श्रेणीबद्ध क्षेत्र होता है ताकि सड़क की सतह को सुख और स्थिर रखा जा सके और साथ ही मोटर चालकों के लिए एक सुरक्षित क्षेत्र दिया जा सके ताकि वह टायर व अन्य कार्यों के लिए सड़क से उतर सकें। सड़क के यह पक्के कंधे सड़क की सतह को सुखा रखने के लिए बनाए जाते हैं।
हिमाचल में किन्हीं कारणों से नहीं बन पाए जिसके कारण राष्ट्रीय उच्च मार्गों को बहुत ज्यादा क्षति पहुंची है। ऐसा नहीं है कि प्रदेश भारी बारिश के कारण अन्य सड़कों को नुकसान नहीं हुआ है। प्रदेश में अन्य सड़कों को भी नुकसान हुआ है लेकिन परवाणु से सोलन के 45 किलो मीटर राष्ट्रीय उच्च मार्ग में 90 से अधिक छोटे-बड़े भूस्खलन हुए हैं, जो अभी भी जारी है,जबकि शिमला से हमीरपुर तक के 130 किलोमीटर के उच्च मार्ग पर 9 या 10 छोटे-बड़े भूस्खलन हुए हैं। भूस्खलनों का यह तुलनात्मक आंकड़ा दर्शाता है कि राष्ट्रीय उच्च मार्ग के निर्माण में भारी खामियां हुई हैं, जिसके कारण लोगों के व्यापार, बागवानी, सब्जी, पर्यटन और सड़कों के बेतरतीब पानी के बहाव से लोगों की सैकड़ो एकड़ भूमि बह गई है। लोगों की जान गई इस सब की भरपाई राष्ट्रीय उच्च मार्ग प्राधिकरण व निर्माण कंपनियों से ली जाए और इन पर अपराधिक मामलों में केस चलाए जाएं।
एक प्रश्न बार-बार उठ रहा है कि केंद्र सरकार को हिमाचल प्रदेश को फौरी राहत देने में कानूनी अड़चन हो सकती है, जोकि नहीं थी,परंतु राष्ट्रीय उच्च मार्ग प्राधिकरण द्वारा सड़क निर्माण में हुई गलती स्वीकारने के बाद तो कार्रवाई में देरी नहीं होनी चाहिए। केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी तो अच्छी छवि वाले नेता हैं । उन्हें इस अतिसंवेदनशील मुद्दे पर तुरंत कार्रवाई करनी चाहिए। उन्हें “मैन ऑफ एक्शन’ कहा जाता है, लेकिन हिमाचल के मामले में उन्होंने क्यों आंखें मूंद लीं यह बात उनकी कार्यशैली पर प्रश्न चिन्ह खड़ा कर रही है।