डॉक्टर परमार की कलम से

  (विधानसभा स्मारिका व गिरिराज से साभार)

हिमाचल के गठन से पहले छोटे-मोटे पहाड़ी राजाओं और रानाओं की हुकूमत थी। पहाड़ी लोगों की जिंदगी देश की दूसरी रियासतों की रियाया से बहुत बदतर थी। बाकी मुल्क में हो रही तब्दीलियां और नए खयालात बेबहरा हमारे दूरदराज इलाकों में बसने वाले लोग जहां पर सड़कें और संचार के दूसरे साधन नहीं थे यह भी नहीं जानते थे कि उनकी हालत वास्तव में क्या है। छोटी मोटी रियासतों के हुक्मरानों के पास ना तो इतने साधन थे कि इलाकों का विकास किया जाए और ना ही उनका ध्यान कभी इस तरफ जाता था । कहीं-कहीं कोई राजा इक्का-दुक्का प्रगतिशील कदम उठाता था। कई रियासतों के हुकमरान तो यह भी नहीं चाहते थे कि उनकी रियाया को कुछ शिक्षा की सुविधा प्राप्त हो। सिरमौर या कुछ रियासतों के अलावा सब जमीन राजाओं की हुआ करती थी । विशेषाधिकार के कारण बेहतरीन जमीन राजा के पास होती थी उसके बाद उसके परिवार के लोग और रिश्तेदार आते थे और आम लोग के पास यह तो जमीन होती ही नहीं थी या फिर बंजर पहाड़ियां हुआ करती थी। अपनी यादों को बाहर के भ्रष्ट प्रभाव से दूर रखने के लिए कई रियासतों को बाहर के लोगों के लिए बंद कर दिया गया था। सड़कों वगैरह के अभाव के कारण सिर्फ कुछ दिलेर किस्म के लोग ही मुश्किल से पैदल चल कर वहां पहुंचते थे। कुदरती और इंसान की बनाई बंदिशों की वजह से बाकी भारत से कटे हुए पहाड़ी लोग मध्यकालीन जीवन व्यतीत कर रहे थे । इन हालात के पेशेनजर कोई हैरानी की बात नहीं कि भारत की आजादी के संघर्ष की गूंज यहां कोई ज्यादा सुनाई नहीं दी । इसमें शक नहीं कि लोगों की नाराजगी और मुखालिपत के इक्के दुक्के मुज़ाहिरे जहां तहां कुछ रियासतों में हुए लेकिन इनको बेरहमी से दबा दिया गया। रियासतों के बाहर तालीम हासिल करने वाला या तालीम प्राप्त किए हुए नौजवान दिल में घुटन महसूस करते हुए भी बहुत हालातों में मजबूर होकर रह जाते थे। जिन्होंने जरा भी सिर उठाने की कोशिश की उनको कुचल दिया गया रियासतबदर कर दिया गया
मुल्क की आज़ादी से कुछ साल पहले अखिल भारतीय स्टेट्स पुपिल्स कॉन्फ्रेंस का एक सम्मेलन लुधियाना में हुआ जिसमें पहाड़ी रियासतों के लोगों को एक नई प्रेरणा मिली और 1939 के करीब मुख्तलिफ रियासतों के राजनीतिक और सामाजिक कार्यकर्ताओं की गतिविधियों में तालमेल करने के लिए शिमला हिल्स स्टेटस हिमालया रियासती प्रजामंडल की स्थापना कर दी गई। पहाड़ी रियासतों के राजनीतिक कार्यकर्ता दमन के डर से या तो रियासतों के बाहर रहकर काम करते थे या वे भूमिगत रहते थे। 15 जुलाई 1939 में धामी रियासत के प्रजामंडल ने एक प्रस्ताव पास करके राजा को कहा कि बेगार खत्म की जाए और संवैधानिक सरकार कायम की जाए। अगले दिन प्रजामंडल का एक प्रतिनिधि मंडल राजा से मुलाकात करना चाहता था। धामी के सैंकड़ों लोग इस प्रतिनिधिमंडल के साथ चल दिए। राजा ने प्रतिनिधि मंडल के नेताओं को गिरफ्तार कर लिया। इस पर हुजूम में गम और गुस्से की लहर दौड़ गई राजा ने खता महसूस करते हुए गोली चलाने का हुक्म दे दिया, जिसमें 2 आदमी मारे गए और कई जख्मी हो गए। यह शायद पहाड़ी रियासतों में आम लोगों की पहली संयुक्त बगावत थी। इसके बाद छोटे-मोटे विद्रोह और भी कुछ जगह पर हुए, जिनमें से सिरमौर में हुआ पंझौता विद्रोह काबिले जिक्र है। राजा ने दूसरी आलमी जंग में अंग्रेजी सरकार की मदद करने के लिए 1942 में लोगों को पनैज में भर्ती करने और साथ में चंदा जमा करने की मुहिम जोर से शुरू की। इस सिलसिले में जब्र की इंतहा हो गई। तो पंझौता के लोगों ने एक किसान सभा बनाई और राजा से दर्खास्त की कि वह खुद इन पर ढाये गए अलहकारों के जुल्म की कहानियां सुने जब उनकी सुनवाई ना हुई तो आजाद सरकार बना ली और नारा दिया कि “भाई दूना पाई”। इस बगावत को बहुत बुरी तरह से कुचल दिया गया इलाके में मकानों को बारूद से उड़ा दिया गया और कई कार्यकर्ताओं की जयादादें जब्त कर ली गई।
एक तरफ ऐसी इक्का-दुक्का बगावत और दूसरी तरफ हिमालयन हिल स्टेट के प्रादेशिक परिषद की बढ़ती हुई सर गर्मियों से पहाड़ी रियासतों के विलय करने का आंदोलन तेज हो गया । मैं उन दिनों रियासतों के विलय कमेटी का सदस्य था जो कि ऑल इंडिया स्टेट्स पुपिल्स कांफ्रेंस ने बनाई थी। मुल्क में आजादी मिलने से जहां पहले और बाद में राजाओं ने विलय का आंदोलन बढ़ते देखकर यह फैसला किया कि हिमालय की रियासतों में भी सौराष्ट्र की तरह रियासतों की एक यूनियन बनाई जाए। इस सिलसिले में सोलन में 23 जनवरी 1948 को एक कॉन्फ्रेंस बुलाने का फैसला हुआ इस कॉन्फ्रेंस से लोगों में जो गलतफहमी फैल सकती थी, हम उससे खबरदार थे। हम जानते थे कि सदियों से राजाओं की हकूमत के सताए हुए लोग फिर किसी दूसरी शक्ल में उनके चुंगल में फसना नहीं चाहते थे। कुछ लोग लोगों ने यह प्रस्ताव भी फेंका था कि इन रियासतों को पंजाब में मिला दिया जाए। लेकिन पहाड़ी लोग मैदानी लोगों से घबराते थे क्योंकि इनका वास्ता उनके राजाओं के कुछ अफसरान की शक्ल में पड़ चुका था। चुनांचे लोगों के जज्बात को देखते हुए मैंने 25 जनवरी 1948 को शिमला के गंज मैदान में एक मीटिंग बुलाई जिसमें साफ तौर पर या प्रस्ताव पास किया गया की व्यक्तिगत रूप से किसी रियासत का वजूद रहना नहीं चाहिए और सबको मिलाकर उनको देश का एक प्रांत बनाया जाए जिसमें शक्ति लोगों को सौंप दी जाए । दूसरी तरफ सोलन कॉन्फ्रेंस में 28 जनवरी 1948 को जैसा कि आशा थी यह प्रस्ताव पास किया गया कि हिमाचल में सौराष्ट्र के तर्ज पर की हकूमत बनाई जाए जिसमें राजप्रमुख वगैरह हों।
मुख्तलिफ किस्म के प्रस्तावों से प्रजामंडल के कार्यकर्ताओं और राजाओं में दरअसल जंग शुरू हुई। जहां हुक्मरानों के पिट्ठू अपने षड्यंत्र में मशगूल हो गए हमने दिल्ली की राह ली ताकि केंद्रीय नेताओं से संपर्क करके उन्हें सूरते हाल से आगाह किया जाए।
हमें पूरी तरह पता था की राजाओं से बातचीत के जरिए कोई मसला हल न हो सकेगा जैसा कि पिछले तजुर्बे ने बताया था हुकमरान लोगों के खिलाफ जुल्मों तसददुद का सहारा लेने से बाज नहीं आएंगे।
सरदार वल्लभभाई पटेल उन दिनों उप प्रधानमंत्री थे और गृह और राज मंत्रालय उनके पास थे । सरदार पटेल को यह मालूम था कि अब वह पॉप फूटने से पहले अपनी बेटी मुन्नी बहन के साथ सुबह की सैर को निकलते थे तो उनके साथ लोग खुलकर मिल सकते और बातचीत कर सकते थे। मैं सर्दियों की ऐसी एक सुबह को उनसे उनके सैर के वक्त मिला । मैंने अर्ज किया कि सरदार साहब हमारे हुक्मरान तसददुद से बाज नहीं आएंगे और हमें भी उनकी हिंसा का जवाब में हथियार इस्तेमाल करने की इजाजत दी जाए । सरदार ने झट से जवाब दिया तुम्हें किसने रोका है। मैं देखता ही रह गया और वह आगे चले गए ।उस दिन में राज मंत्रालय के सेक्रेटरी वीपी मैनन से मिला और उन्हें सरदार से हुई भेंट के बारे में बतलाया साथ में मैंने दरख़ास्ता की कि हमें देहरादून में जो कि भारत सरकार का इलाका है हथियार जमा करने की इजाजत दी जाए और अगर हमारे हथियार पकड़े जाएं तो हमारे खिलाफ कोई कार्यवाही ना की जाए । श्री मेनन हमारी अजीब सी दरखास्त पर हैरान रह गए । बोले अरे भाई ऐसा मत करें हम हिंसा की इजाजत कैसे दे सकते हैं। हां अगर तुम एक हजार लोग इकट्ठा करके यह मांग करके दिखा दो कि इन पहाड़ी रियासतों को विलय किया जाए तो बाकी मेरा काम है। मैंने कहा कि हां देखना लोग मारे ना जाए। दिल्ली से इस तरह हरी झंडी मिलते ही हमने शिमला का रुख किया हमने अपना आंदोलन चलाने के लिए कायम मुकाम सरकार बना दी जिसके सदर पंडित शिवानंद रमोल थे हमने एक खुफिया मीटिंग की जिसमें पंडित शिवानंद रमोल ,पंडित पदम देव और एलडी वर्मा ने भाग लिया। इसमें यह फैसला किया गया कि प्रजामंडल के 30-40 वर्कर लोरी के नजदीक फिरन के मुकाम से रियासत सुकेत की करसोग तहसील में दाखिल हूं और रियासत के दफ्तर पर कब्जा कर लें 18 फरवरी 1948 को अलग सभा हमारे कार्यकर्ता जिसमें पंडित शिवानंद जी मोर पंडित पदम देव शामिल थे करसोग तहसील में दाखिल हुए। मुझे यह ड्यूटी दी गई थी कि मैं संजौली में बैठकर चोरी से टेलीफोन के जरिए हमला के सिलसिले में मिलने वाली खबरों को अखबारों और न्यूज एजेंसियों के पास पहुंचाऊं। हमारे वर्कर असलाह वगैरह से लैस थे। उनके पास इसके अलावा नकली हथगोले वगैरह भी थे।आगे बढ़ते हुए हर पांचवें मील पर हमारे एक कार्यकर्ता को छोड़ दिया जाता था, ताकि मेरे साथ पूरा संपर्क बना रहे।
हमारे वर्करों के हौसले बुलंद थे और जैसा ही वह आगे बढ़ते गए काफिला बढ़ता गया ,मार्च करने वाले सैकड़ों से हजारों हो गए और उन्होंने बढ़कर थाना और फिर तहसील पर कब्जा कर लिया थानेदार और तहसीलदार हिरासत में ले लिए गए । सुंदरनगर से करसोग तहसील का ताल्लुक बिल्कुल कट गया। राजा को जो संदेश देने वाला आता पकड़ लिया जाता । किसी के बूट में किसी की जेब में राजा का संदेश मिलता। एक तरफ लोग आगे बढ़ रहे थे दूसरी तरफ अखबारों में बड़ी-बड़ी सुर्ख़ियों से यह खबरें छप रही थी कि हिमालय हिल रहा है । राजा को सिर्फ अखबार की खबरों से पता चल रहा था कि उसकी रियासत मैं क्या हो रहा है। उसने घबराहट में भारत सरकार से शिकायत की कि उसकी रियासत में डाकू घुस आए हैं और उसकी मदद की जाए भारत सरकार का राज मंत्रालय सारे हालात पर नजर रखे हुए था । उसने राजा को हुकुम दिया की रियासत का इंतजाम भारत के सुपुर्द कर दिया जाए और अनाने हकूमत हाथ लेने के लिए जालंधर से जनरल श्री नागेश को सुंदर नगर जाने का हुक्म दिया सुकेत का हाल देखते हुए दूसरे राजाओं ने, जिन्होंने घबराहट में किसी न किसी तरह प्रजातंत्र प्रणाली लागू करने की कोशिश की थी, घुटने टेक दिए और कुछ ही दिनों में कोई चीज बड़ी छोटी रियासतें नेम विलय पत्र पर दस्तखत कर दिए। विलय से कुछ अरसा पहले 15 मार्च 1948 को सरदार पटेल ने एक तारीखी खत लिखा कि जब इलाका इंतजामिया और साधनों की दृष्टि से काफी विकसित हो जाएगा तो इसका संविधान भारत के दूसरे प्रांतों की तरह होगा। प्रजामंडल के कार्यकर्ताओं को इससे बहुत राहत महसूस हुई क्योंकि इसमें वह जरासीम मौजूद थे जो कि भविष्य में हिमाचल को मुनासिब शक्ल और दर्जा दिला सकते थे। इस तरह 15 अप्रैल 1948 को हिमाचल प्रदेश का जन्म 30 रियासतों के विलय के बाद चीफ कमिश्नर के एक प्रांत की शक्ल में हुआ।
इन रियासतों का नाम था चंबा, मंडी, सुकेत, बिलासपुर, बुशहर ,खनेती, देलथ ,कियोंथल कोटी, ठियोग, मधान घुण्ड रतेश बाघल,जुब्बल,राविन घाड़ी, बघाट, कुमारसैन भज्जी,मेहलोग,बलसन,धामी,क्योंदल,कुनिहार,मांगल,बेज,दरकोटी थरोच सांगरी और सिरमौर।

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