पूर्व सरकारों द्वारा लिया पहाड़ जैसा कर्ज तथा खाई जैसी देनदारियां, बेतरतीब खनन, सड़क, सुरंग व डैम निर्माण से आक्रोशित प्रकृति के प्रकोप को सुक्खू की सरकार ने सूझबूझ, सब्र व संयम के साथ 19 महीने सराहनीय ढंग से चला रही है । परंतु प्रदेश के राजकोष में ना तो संयम है ना सब्र है वह तो पिशाच के पेट जैसा हो गया है जिसमें जितना डालो अगली बार उससे ज्यादा मांगता है। अगर पूर्व भाजपा सरकार में ऋण लेने का लेखा-जोखा देखा जाए तो प्रदेश को हर महीने 500 करोड रुपए कर्ज लेना पड़ता था। धीरे-धीरे कर्ज लेने की राशि बढ़ती गई और 800 से हजार करोड़ प्रति माह हो गई । जयराम की सरकार ने अंतिम महीनों में तो 1500 करोड़ प्रतिमाह कर्ज भी लिया है अर्थात पूर्व की सरकारों की तुलना में जयराम सरकार की कर्ज लेने की गति 58 प्रतिशत बड़ी। भाजपा सरकार कुल सकल उत्पाद का 41% कर्ज ले रही थी। यह तब संभव हो पाया कि जयराम सरकार को केंद्र सरकार का भी भरपूर समर्थन था । सुखविंदर सिंह सुक्खू सरकार को तो केंद्र सरकार की बेरुखी पहले दिन से ही झेलने पड़ रही है। सुक्खू सरकार ने प्रदेश के राजस्व बढ़ाने की अच्छी कोशिश है कि परंतु केंद्र ने अपना डंडा चलाया और जल- उपकर जैसी नायाब योजनाओं को राज्य सरकार के दायरे से बाहर दिया। पूर्व सरकारों ने सरकारी नौकरियों के चोर दरवाजे खोले और आरएमपी नियमों को ताक पर रखकर अपने चहेतों को कम पैसे पर नौकरियां दी। कुछ अनुबंध पर, कुछ दिहाड़ी पर, कई पैरा तो कई पीटीए न जाने कौन-कौन से चैनल खोल दिए। उसमें बेरोजगार युवा हजार से ₹1500 यहां तक ₹500 में जलवाहक जैसे पदों पर लग गए। परंतु अब यह रिटायरमेंट स्टेज पर पहुंच गए हैं या रिटायर हो गए हैं। अब यह लोग आरएमपी नियमों को लेकर न्यायालय में पहुंच गए हैं। न्यायालय उनको नियमों के अनुरूप न्याय दे रहे हैं । विगत एक पखवाड़े में उच्च न्यायालय से पांच मामलों के फैसले आए हैं । जिसमें सरकार को सुरेंद्र राणा, वालों देवी, शीला देवी, मोहम्मद व लेखराज और डॉक्टर सुनील के मामले में स्पष्ट कहा है कि यदि किसी कर्मचारी या पेंशनर के वित्तीय लाभ तय नियमों व कानून के दायरे में आते हैं तो उन्हें यह हर हाल में सरकार को देना होगा । हाईकोर्ट ने अनुबंध काल को सेवा की अवधि में गिनने और उन्हें वित्तीय लाभ देने के फैसले दिए। यह पांच मामले वरिष्ठता, एरियर व अनुबंध से जुड़े हुए हैं। विगत में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दिहाड़ीदार मजदूरों को नियमित करने के आदेश पर स्वर्गीय वीरभद्र सिंह की सरकार को 50000 से भी ज्यादा मजदूरों को नियमित करना पड़ा था। तत्कालीन सरकार को न्यायालय के आदेशों का पालन करने के लिए अरबों रुपए की आवश्यकता पड़ी। सरकार वित्तीय संकट में फस गई और ऋण का सहारा लिया। वास्तव कर्ज के मर्ज की शुरुआत वहीं से शुरू हुई और आज असाध्य रोग बन गई है। सर्वोच्च न्यायालय व उच्च न्यायालय के फैसले के बाद वर्तमान सुक्खू सरकार भी ठीक उसी स्थिति में है।कहने को तो यह मात्र पांच मामले हैं परंतु ऐसे हजारों कर्मचारी हैं जो अनुबंध पर लगे और बाद की सरकारों ने उन्हें नियमित कर वहा वाही लूटी। विधानसभा में जमकर टेबल पीटे गए। पूर्व की सरकारों की संकीर्ण सोच व तत्कालीन तुच्छ राजनीतिक लाभ के लिए यह करती रही हैं ।परंतु इसके वित्तीय बोझ को सुक्खू सरकार को उठाना पड़ रहा है। आज यह पांच लोग हैं आगे चलकर 50000 भी होंगे। आज सुक्खू सरकार की वित्तीय स्थिति यह है कि कर्ज को चुकाने के लिए कर्ज उठाना पड़ रहा। कर्ज लेने की गति घातीय (exponential) है ,अर्थात आज हजार करोड़ कल 1500 करोड़ इसी तरह हर महीने यह बढ़ती जा रही है। किसी भी राज्य सरकार द्वारा कर्ज उठाने की एक सीमा होती है सुक्खू सरकार के कदम उसे सीमा को लगभग छू रहे हैं। कांग्रेस सरकार दिसंबर 2024 तक 2000 करोड़ का ही कर्ज ले सकती है, जबकि उसे हर महीने हजार से 1200 करोड़ का कर्ज लेना पड़ रहा है। अर्थात अगर पैसा लेने का कोई जुगाड़ नहीं हुआ तो दिवाली वाले महीने में हो सकता है वेतन व पेंशन देने की दिक्कत आ जाए । सुखविंदर सिंह सुक्खू शुरू से कह रहे हैं कि वह व्यवस्था को बदलने आए हैं परंतु वित्तीय और प्रशासकीय व्यवस्था ने उनकी सरकार को ऐसे भंवर में डाल दिया है कि व्यवस्था तो बहुत दूर की बात है फाइल की एक लाइन बदलना भी मुश्किल हो रहा है। मुख्यमंत्री शुरू दिन से यह कह रहे हैं की कड़े फैसले लेने पड़ेंगे परंतु चुनाव के चलते कुछ नहीं कर पाए । जो किया है वह ऊंट के मुंह में जीरा है ।व्यवस्था तभी बदलेगी जब वित्त की गाड़ी पटरी पर होगी। वित्त की गाड़ी को पटरी पर लाने के लिए या केंद्र सरकार से कुछ विशेष हो जो सपने में भी नहीं होता दिखाई दे रहा है। या फिर प्रदेश के भीतर राजस्व बढ़ाने की नए क्षेत्र ढूंढे जाएं। सुक्खू सरकार को प्रदेश के अंदर ही इसका हल ढूंढना होगा कुछ कड़े और और बहुत से सधे व सुलझे निर्णय लेने होंगे। कर प्रणाली को मजबूत व पारदर्शी करना होगा। करों का दायरा बढ़ाना होगा। कृषि, पर्यटन, बागवानी ट्रांसपोर्ट, विशेष कर ट्रक यूनियन और टैक्सी यूनियन व टैक्स का नियमितीकरण करना होगा । मार्केटिंग बोर्ड में पारदर्शिता, होटल उद्योग, पन बिजली परियोजनाओं पर जल उपकार के प्रस्ताव पर जरूरी परिवर्तन कर व उत्पादकों से बातचीत कर पुन:इस दिशा में ठोस कदम आगे बढ़ने होंगे। सरकार जो कड़े कदम उठाने की सोच रही है, जो उसको करना ही पड़ेगा। तो इस दिशा में सबसे पहले घाटे में चल रहे निगमों ,बोर्डों , बैंकों में नियुक्त अध्यक्षों का उपाध्यक्षों और असफल सलाहकारों को स्वयं पद त्याग कर करने की सलाह देनी होगी । जब शुरुआत घर से होती है तो बाहर के लोग जोरदार स्वागत करते हैं और कड़े से कड़े कदम का समर्थन व सहयोग करते हैं। जनता कड़वे से कड़वा घूंट भी पी लेती है अगर सरकार अपनों को पेड़े और जनता को थपेड़े नीति पर न चले।