मोहिंद्र प्रताप सिंह राणा

राष्ट्रीय राजमार्ग विकास की आड़ में जब नियोजन की नींव पर निजी स्वार्थों की दीवारें खड़ी होने लगें, जब अधिग्रहण से लेकर मुआवज़ा वितरण तक की प्रक्रियाएं योजनाबद्ध भ्रष्टाचार के दलदल में धंस जाएं, और जब सरकारी योजनाएं आमजन की सेवा के बजाय चंद अधिकारियों और उनके नज़दीकी लाभार्थियों के लिए ही ‘स्वर्ण द्वार’ बन जाएं, तब यह न केवल जनधन का दुरुपयोग है बल्कि राज्य की प्रशासनिक निष्ठा पर एक गहरा प्रश्नचिन्ह है। एनएचएआई की फोरलेन परियोजना में उजागर हो रहे तथ्य एक भयावह यथार्थ की ओर संकेत कर रहे हैं—जहां ‘सार्वजनिक परियोजना’ के नाम पर ‘निजी स्वार्थ’ की खुली बोलियां लगाई गईं और ज़मीन, मकानों, खसरों व अभिलेखों की हेराफेरी में कानून व नैतिकता दोनों को धता बताया गया।
अनियमितताओं का समग्र चित्र
इस पूरे प्रकरण में मुआवज़ा आवंटन, अलाइनमेंट में हेरफेर, गैर-अधिग्रहित भूमि की रजिस्ट्री, मूल्यांकन में फर्जीवाड़ा, और सरकारी भूमि में बने अवैध ढांचों को मुआवज़ा बांटने जैसी गंभीर विसंगतियाँ उजागर हुई हैं।
1. राईट ऑफ वे (ROW) के भीतर और बाहर मौजूद मकान:
400 ढांचों की मुआवज़ा अनियमितता: सच्चाई से परे भागती रिपोर्टें और जांच की अनिवार्यता
किरतपुर से पंडोह तक फोरलेन परियोजना की परिधि में आने वाले लगभग 400 ऐसे ढांचे आज भी पूर्ववत खड़े हैं, जिनका मुआवज़ा वर्षों पूर्व आबंटित किया जा चुका है। यह स्थिति केवल एक प्रशासनिक चूक नहीं, बल्कि एक सुनियोजित अनदेखी की ओर संकेत करती है। जब इन ढांचों को लेकर आपत्तियाँ उठीं, तो भू-अर्जन अधिकारी द्वारा प्रस्तुत की गई रिपोर्ट ने स्थिति को और अधिक संदेहास्पद बना दिया—रिपोर्ट में कहा गया कि इन मकानों को आंशिक रूप से ध्वस्त किया गया था, परंतु मकान मालिकों ने उन्हें पुनः मरम्मत कर लिया है, और अब यह स्पष्ट नहीं हो पा रहा कि ये ढांचे पुराने हैं या नवनिर्मित।
इस तरह की अस्पष्ट और आधारहीन रिपोर्ट किसी जिम्मेदार अधिकारी की नहीं, बल्कि एक ‘संदिग्ध मंशा’ की उपज प्रतीत होती है। यह तकनीकी युग है—जहां उपग्रह चित्रों और जियो-टैग्ड दस्तावेज़ों की सहायता से वर्षवार स्थिति की सटीक पुष्टि की जा सकती है। वर्ष 2015 से पूर्व इन संरचनाओं की भौगोलिक स्थिति, निर्माण की दशा और उपस्थिति को स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है।
इसलिए भू-अर्जन अधिकारियों द्वारा दी गई यह रिपोर्ट न केवल तथ्यों को ढांकने का प्रयास है, बल्कि मुआवज़ा वितरण में हुई व्यापक अनियमितताओं और संभावित मिलीभगत को ढाल देने की रणनीति भी प्रतीत होती है। यदि इन 400 संरचनाओं की वास्तविक स्थिति तकनीकी साक्ष्यों के आधार पर जांची जाए, तो यह संभव है कि कई मुआवज़ा आबंटन न केवल अनुचित पाए जाएं, बल्कि उनके पीछे छिपे हितसंपन्न तंत्र की भी परतें खुलें।
यह समय है कि तथ्यों से बचने के बजाय, उन्हें तकनीकी संसाधनों के माध्यम से उजागर किया जाए—क्योंकि यह न केवल करदाताओं के धन का सवाल है, बल्कि राज्य की संस्थागत ईमानदारी पर भी खड़ा होता हुआ गंभीर प्रश्न है। अतः इस पूरे मामले की निष्पक्ष और तकनीकी जांच अनिवार्य है, ताकि सत्य और स्वार्थ के बीच की रेखा स्पष्ट रूप से उजागर की जा सके।
मुआवजा घोटाले की स्याह परतें: अलाइनमेंट बदलकर चहेतों को करोड़ों की सौगात
राष्ट्रीय राजमार्ग परियोजना के अधीन भूमि और मकान अधिग्रहण की प्रक्रिया में घोर अनियमितताओं और सत्तासीन मिलीभगत की परतें अब एक-एक कर खुल रही हैं।
बगैर स्वीकृत स्ट्रक्चर प्लान के बाहर स्थित भूमि और भवनों का पहले तो एक विशेष मूल्यांकनकर्ता की संलिप्तता से मनमाने ढंग से अधिग्रहण कराया गया। इन अवैध अधिग्रहणों का मूल्यांकन कर उन्हें मुआवजा आबंटित किया गया। फिर खेल शुरू हुआ अलाइनमेंट बदलने का। पहले एक तरफ मुआवजा वितरित हुआ, फिर जब दूसरी दिशा में निर्माण की योजना बनी तो वहीं पुनः कुछ अन्य मकानों को योजना में घसीट लिया गया — और मूल्यांकनकर्ता ने एक मकान मालिक को लगभग 6 करोड़ रुपये का मुआवजा दिलवाया। यही नहीं, एनएचएआई ने एक बार फिर अलाइनमेंट बदला और अधिग्रहित क्षेत्र में खसरा नंबर 730, मौजा मल्यावर तहसील घुमारवीं जहां वर्ष 2015 में एक टनल धंसने से तीन लोगों को जान गंवानी पड़ी थी वहां न सड़क बनी, न योजना का कोई अंश दिखाई देता है।

इतना ही नहीं, खसरा नंबर 735 का मकान 736 में दर्शाकर लगभग 5.70 करोड़ रुपये का मुआवजा आबंटित किया गया। यह प्रकट करता है कि भूमि रिकॉर्ड में मनचाहे फेरबदल कर किस तरह मुआवजा लूटा गया।
इसके अलावा, बीबीएमबी द्वारा किए गए मूल सर्वेक्षण को भी बदल दिया गया और निजी भूमि की रजिस्ट्री करवा कर सड़क बना दी गई — यह पूरी प्रक्रिया योजना और अनुमति के विरुद्ध गई।
परियोजना निदेशक को नियमतः कुल अधिग्रहण की गई भूमि का केवल 5% क्षेत्र निजी रजिस्ट्री या सेल डीड से प्राप्त करने का सीमित अधिकार होता है — वह भी तब जब अधिग्रहित खसरा नंबर में कोई उपयोगी भूमि शेष न रह गई हो। परंतु इस मामले में तो पूरा रूट ही निजी स्वार्थ और चहेतों के हित में मोड़ दिया गया, जिससे मुआवजा वितरण की पूरी प्रक्रिया ही सवालों के घेरे में आ गई है।
मौजा धराड़सानी तहसील झण्डूता में तो एक मकान-भूमि को 66 लाख का मुआवजा देने के बाद अलाइनमेंट बदलकर बीबीएमबी की भूमि में ही मार्ग निर्धारित कर दिया गया यह अपने आप में दुर्घटनाग्रस्त नियोजन और सुनियोजित भ्रष्टाचार का उदाहरण है। यह पूरा घटनाक्रम न केवल नियमन और पारदर्शिता पर प्रश्नचिन्ह लगाता है, बल्कि यह भी दर्शाता है कि किस तरह निजी लाभ और तंत्र की मिलीभगत से जनधन को लूटा जा रहा है।