अंकित व अनुज ने दीपावली की खुशियां व उपहार बांटने को चुने जनेड़धाट वाले आश्रम के बच्चे
वर्तमान पीढ़ी के अधिकतर युवा भारतीय संस्कृति के त्योहारों व जन्मदिन की खुशियों को अपने मित्रों के संग आलीशान पंच तारा होटल, रेव पार्टियों, नौका विहार व अन्य डेस्टिनेशंस पर मानते हैं । लेकिन ऐसे भी कुछ संवेदनशील युवा हैं जो अपनी इन खुशियां को बांटने के लिए समाज के वंचित, निरीही व असहाय बच्चों को चुनते हैं और उनके मुरझाए चेहरों पर मुस्कुराहट देख कर सुख की अनुभूति करते हैं। ऐसे युवाओं में से एक हैं अंकित और अनुज।
भारतीय संस्कृति तीज त्योहारों से अटी पड़ी है और इसका हर त्योहार किसी न किसी संदेश या समृद्ध परंपरा का वाहक है । दीपावली के पांच दिवसीय पर्व भी समाज में पनप रही विकृतियों को भारतीय संस्कृति द्वारा प्रशस्त मार्गो में डालकर समाज में खुशहाली बखेरने का काम करता हैं। यह पर्व हमें स्मरण करवाते हैं कि हमें समाज के हर व्यक्ति को इस खुशी में शामिल करना है। लेकिन भौतिक युग की भाग-दौड़ में अधिकतर लोग त्यौहार के इस मूल संदेश “कि समाज के हर व्यक्ति को इस खुशी में शामिल करने को भूल जाते हैं।
दुर्भाग्यवश , हमारे समाज में आज भी करोड़ों लोग ऐसे हैं जो दीपावली की चकाचौंध में भी अंधेरे के किसी एक कोने में सिसकते रहते हैं। इन्हीं सिसकियां को मुस्कान में बदलने का प्रयास कर रहे हैं समरहिल के डा. मल्होत्रा दंपति का बेटा अंकित और बेटी ।
अंकित और निकिता ने अपनी दिवाली की खुशियां व उपहार बांटने के लिए चुने जनेड़घाट स्थित “नया जीवन चिल्ड्रन होम” बाल आश्रम के 30 बच्चों को। दोनों बहन भाइयों ने दीपावली त्यौहार का पूरा दिन इन बच्चों के बीच में बिताया और उन्हें उनकी मनपसंद के उपहार दिए। अंकित और अनुज दिवाली से पूर्व इन बच्चों के पास गए और उन्हें क्या पसंद है बातों-बातों में जानकारी ली और वह सब कुछ बाजार से खरीदा और उन्हें दीपावली के दिन भेंट किया।
अंकित और अनुज बच्चों के बीच खुशियां बांटने का काम लगभग एक दशक से कर रहे हैं। अंकित मल्होत्रा ने एमबीए की डिग्री हासिल करने के बाद “रॉयल बैंक आफ स्कॉटलैंड” में मैनेजर की पोस्ट पर नौकरी की, परंतु इनका ध्यान वंचितों के उत्थान में ही केंद्रित रहा। अंकित ने कुछ निरीही बच्चों को शिक्षा देने के लिए चुना और उनकी शिक्षा की जिम्मेदारी उठाई। धीरे-धीरे अंकित ने इसी क्षेत्र को अपना जीवन लक्ष्य बना लिया। अंकित ने नौकरी छोड़ दी और अपने दादा-दादी, जो जीवन पर्यंत ऐसे परोपकारी कार्यों से जुड़े रहे, के नाम पर “हसवीं” एनजीओ की स्थापना 2 वर्ष पूर्व की और गीता के एक श्लोक “”निराशीर्यतचित्तात्मा त्यक्तसर्वपरिग्रहः ।
्शारीरं केवलं कर्म कुर्वन्नाप्नोति किल्बिषम् ” को चरितार्थ करने में जुट गए। श्लोक का अर्थ है कि ” जो आशा रहित है तथा जिसने चित्त और आत्मा (शरीर) को संयमित किया है, जिसने सब परिग्रहों का त्याग किया है, ऐसा पुरुष शारीरिक कर्म करते हुए भी पाप को नहीं प्राप्त होता है”
इस प्रशस्त कर्म में अंकित की बड़ी बहन व उनके कुछ मित्र जुड़ गए हैं । वह अपने वेतन का आधे से ज्यादा भाग ऐसे पुण्य कर्मों में खर्च करती हैं।
अंकित की हसवीं एनजीओ इसके अतिरिक्त दूर दराज व दुर्गम क्षेत्रों के वासियों के बच्चों को पाठ्यक्रम सामग्री जैसे पेन, पेंसिल, कॉपी क्रेयॉन, पेंसिल बॉक्स आदि व इन क्षेत्रों की किशोरियों व महिलाओं को सेनेटरी पैड भी बांटते हैं। अंकित ने कुछ ऐसे परिवारों को भी गोद लिया है जिन्हें वह हर महीने गुणात्मक राशन भी देते हैं। इस पुण्य कार्य में उनके माता-पिता भी शामिल है।
युवा पीढ़ी के अनुज, अंकित व उनके मित्र जो अवदान कर्मों में जुड़े हैं अपनी वरिष्ठ व पूर्वजों को पुख्ता भरोसा दिलवा रहे हैं कि उनके द्वारा प्रशस्त पुण्य कर्मों की परंपरा को वह भौतिक युग की तमाम बाधाओं अवरोधन, हताश-निराशा के बावजूद एक प्रकाश पुंज की तरह प्रज्वलित रखेंगे और इन संस्कारों व संस्कृति को भविष्य की पीढ़ी में भी रोपित कर निरंतरता बनाए रखेंगे।